जयपुर: चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को लक्ष्मी पंचमी के नाम से जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि धन की अधिष्ठात्री देवी मां लक्ष्मी का पूजन और व्रत इस दिन विशेष फलदायी होता है और लक्ष्मी मां की स्तुति सभी लक्ष्मी स्तोत्रों के द्वारा करनी चाहिए. इस दिन व्रत रखने वाले साधकों को लक्ष्मी स्तोत्र, लक्ष्मी सूक्त, देव्यपराधक्षमा स्तोत्र, कनकधारा स्तोत्र आदि से पूरा दिन महालक्ष्मी का स्तवन करना चाहिये. सायंकाल में विशेष पूजन कर निर्धनों को दान आदि देना चाहिए.
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि लक्ष्मी पंचमी व्रत 26 मार्च को पड़ रहा है. पंचमी पर ग्रहों की शुभ स्थिति से प्रीति और रवियोग बन रहा है. जिससे इस दिन की गई लक्ष्मी पूजा से सुख और समृद्धि बढ़ेगी. वहीं, खरीदारी और निवेश का फायदा लंबे समय तक मिलेगा. लक्ष्मी पंचमी व्रत मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी पर भी करते हैं. जिसका महत्व भी अलग होता है. लेकिन हिंदु नववर्ष की पहली श्री पंचमी होने से चैत्र महीने की इस पांचवी तिथि को बहुत खास माना गया है. इस दिन मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए मां लक्ष्मी की विधि विधान पूजा की जाती है. इसे श्री पंचमी के नाम से भी जाना जाता है.
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि नवरात्रि की पांचवी तिथि देवी स्कंदमाता की पूजा करने का विधान है. वहीं, इस तिथि के स्वभाव के मुताबिक लक्ष्मीजी की भी पूजा करनी चाहिए. ज्योतिष में इसे पूर्णा तिथि कहा गया है. यानी इसमें किए गए कामों में सफलता मिलना लगभग तय होता है. ऐसा माना जाता है इस दिन मां लक्ष्मी की अराधना करने से घर परिवार में सुख समृद्धि बनी रहती है. शास्त्रों में देवी लक्ष्मी के स्वरूप को अत्यंत सुंदर और प्रभावी दर्शाया गया है. देवी लक्ष्मी की पूजा से दरिद्रता दूर होने की मान्यता है.
पूजा विधि:
भविष्यवक्ता डॉ अनीष व्यास ने बताया कि चतुर्थी तिथि को नहाकर साफ कपड़े पहने और व्रत का संकल्प लें. घी, दही और भात खाएं. पंचमी को नहाकर व्रत रखें और देवी लक्ष्मी की पूजा करें. पूजा में धान्य (गेहूं, चावल, जौ आदि), हल्दी, अदरक, गन्ना व गुड़ चढ़ाकर कमल के फूलों से हवन करने का भी विधान है. कमल न मिले तो बेल के टुकड़ों का और वे भी न हों तो केवल घी का हवन करें. इस दिन कमल से युक्त तालाब में स्नान करके सोना दान करने से लक्ष्मीजी अति प्रसन्न होती है.
महत्व:
कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि श्रीपंचमी का व्रत करने से महिलाओं को सौभाग्य प्राप्ति होती है. घर में समृद्धि और सुख बढ़ता है. दरिद्रता और रोग नहीं होते. इस व्रत के प्रभाव से परिवार के सदस्यों की उम्र बढ़ती है. कई जगह ये व्रत मनोकामना पूरी करने के संकल्प के साथ किया जाता है. चैत्र माह के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को लक्ष्मी जी पूजा और व्रत करने से हर तरह की सिद्धि प्राप्त होती है और सोचे हुए काम भी पूरे हो जाते हैं.
व्रत कथा:
भविष्यवक्ता डॉ अनीष व्यास ने बताया कि पौराणिक ग्रंथों में जो कथा मिलती है उसके अनुसार मां लक्ष्मी एक बार देवताओं से रूठ गई और क्षीर सागर में जा मिली. मां लक्ष्मी के चले जाने से देवता मां लक्ष्मी यानि श्री विहीन हो गये. तब देवराज इंद्र ने मां लक्ष्मी को पुन: प्रसन्न करने के लिये कठोर तपस्या कि व विशेष विधि विधान से उपवास रखा. उनका अनुसरण करते हुए अन्य देवताओं ने भी मां लक्ष्मी का उपवास रखा, देवताओं की तरह असुरों ने भी मां लक्ष्मी की उपासना की. अपने भक्तों की पुकार मां ने सुनी और वे व्रत समाप्ति के पश्चात पुन: उत्पन्न हुई जिसके पश्चात भगवान श्री विष्णु से उनका विवाह हुआ और देवता फिर से श्री की कृपा पाकर धन्य हुए. मान्यता है कि यह तिथि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि थी. यही कारण था कि इस तिथि को लक्ष्मी पंचमी के व्रत के रूप में मनाया जाने लगा.