जयपुर: हिंदू धर्म में निर्जला एकादशी व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है. सभी 24 एकादशी व्रतों में निर्जला एकादशी व्रत को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति निर्जला एकादशी व्रत रखता है, उसे सभी 24 एकादशी व्रतों का फल प्राप्त हो जाता है. शास्त्रों के अनुसार, इस विशेष दिन पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की उपासना करने से और निर्जला उपवास रखने से विशेष लाभ मिलता है और जीवन में आ रही सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं. पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 6 जून 2025 को देर रात 2:15 बजे से शुरू होकर, अगले दिन 7 जून को सुबह 4:47 बजे तक रहेगी. चूंकि तिथि का उदय 6 जून को हो रहा है, इसलिए व्रत भी इसी दिन रखा जाएगा. उदया तिथि के अनुसार 6 जून को निर्जला एकादशी व्रत रखा जाएगा. इस व्रत का बड़ा महत्व है. इस साल निर्जला एकादशी का व्रत 2 दिन रखा जाएगा. इसमें पहले दिन निर्जला एकादशी स्मार्त होगी और दूसरे दिन निर्जला एकादशी वैष्णव होगी. इस दिन व्रत करने से सालभर की एकादशी का पुण्य मिल जाता है. महाभारत काल में पांडव पुत्र भीम ने भी इस एकादशी पर व्रत किया था. इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं. इस एकादशी पर पूरे दिन पानी नहीं पिया जाता. हस्त नक्षत्र और रवियोग के साथ सिद्ध योग के संयोग में निर्जला एकादशी व्रत मनाया जाएगा.
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि 6 जून को निर्जला एकादशी व्रत है. स्कंद पुराण के विष्णु खंड में एकादशी महात्म्य नाम के अध्याय में सालभर की सभी एकादशियों का महत्व बताया गया है. हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है. एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित मानी जाती है. यही कारण है कि एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है. निर्जला एकादशी व्रत ज्येष्ठ शुक्ल की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है. पौराणिक शास्त्रों में इसे भीमसेन एकादशी, पांडव एकादशी और भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. नाम से ही आभास हो रहा है कि निर्जला एकादशी व्रत निर्जल रखा जाता है. इस व्रत में जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं की जाती है. व्रत के पूर्ण हो जाने के बाद ही जल ग्रहण करने का विधान है. ज्येष्ठ माह में बिना जल के रहना बहुत बड़ी बात होती है. मान्यता है कि जो व्यक्ति निर्जला एकादशी व्रत को रखता है उसे सालभर में पड़ने वाली समस्त एकादशी व्रत के समान पुण्यफल प्राप्त होता है. इस व्रत करने वालों को जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है. यह व्रत एकादशी तिथि के रखा जाता है और अगले दिन यानी द्वादशी तिथि के दिन व्रत पारण विधि-विधान से किया जाता है.
निर्जला एकादशी 06 जून स्मार्त, 07 जून वैष्णव:
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि दशमी तिथि द्वारा के दोनों स्थितियों में यह नियम समान रूप से प्रभावी होगा. इस प्राणोदय के वेदो कवियों में एकमत नहीं है.
अत्रशुद्धत्वात्स्मार्तानाम् एकादश्यामेवोपवासो न द्वादश्यामिति माधव. यहाँ माधव के अनुसार द्वादशी तिथि की वृद्धि हो जाने पर स्मार्त द्वादशीयुता एकादशी वाले दिन और वैष्णव सम्प्रदाय वाले षष्ठीपट्यात्मक द्वादशी के दिन व्रत करते है. हेमाद्रि, पद्मपुराण व नारद के मतानुसार स्मार्त व वैष्णव सम्प्रदाय वालों का व्रत षष्ठीघट्यात्मक द्वादशी को होना चाहिए. यथा सर्वत्रैकादशी कार्या द्वादशीमिश्रिताः नरे. मार्कण्डेय के अनुसार संधिग्धेषु च वाक्येषु द्वादशीं समुपोषयेत् .. तथा विवादेषु च सर्वेषु द्वादश्यां समुपोषणम्. पारणं च त्रयोदशयामाज्ञेयं .
परन्तु यहाँ माधव के मत को ही मान्यता दी गयी है. इस वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी की वृद्धि हुई है. यह 07 जून 2025 को अहोरात्र व्यापिनी है. अतः उपरोक्त बहुसम्मत माधवमतानुसार इस वर्ष निर्जला एकादशी स्मार्त हेतु 06 जून 2025 एवं वैष्णव हेतु 07 जून 2025 को श्रेयस्कर है.
निर्जला एकादशी पर बन रहे शुभ योग:
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल निर्जला एकादशी पर काफी शुभ योग बन रहे हैं. शिव योग दिनभर रहकर रात 9:39 मिनट तक रहेगा. इसके बाद सिद्ध योग लग जाएगा. इसके साथ ही दोपहर में 3:56 मिनट से लेकर अगले दिन सुबह 5:24 मिनट तक त्रिपुष्कर योग है.
निर्जला एकादशी:
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 6 जून 2025 को देर रात 2:15 बजे से शुरू होकर, अगले दिन 7 जून को सुबह 4:47 बजे तक रहेगी. चूंकि तिथि का उदय 6 जून को हो रहा है, इसलिए व्रत भी इसी दिन रखा जाएगा.
निर्जला एकादशी व्रत स्मार्त: शुक्रवार 6 जून 2025
निर्जला एकादशी व्रत वैष्णव: शनिवार 7 जून 2025
दो दिन पड़ेगा निर्जला एकादशी व्रत:
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि अधिकतर यह व्रत एक दिन पड़ता है, लेकिन इस बार यह दो बार मनाया जा रहा है. 6 जून को एकादशी व्रत हस्त नक्षत्र में रखा जाएगा. वहीं, 7 जून को व्रत चित्रा नक्षत्र में यह व्रत किया जाएगा, जो कि बेहद पुण्यदायी माना जा रहा है. दरअसल, 6 जून को गृहस्थ व्रती व्रत का पालन करेंगे. इसके साथ ही 7 जून को वैष्णव संप्रदाय यानी साधु-संत व्रत करेंगे.
निर्जला एकादशी पर तुलसी पूजन:
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि तुलसी की पूजा हिंदू धर्म में काफी समय पहले से चली आ रही है. हिंदू घरों में तुलसी के पौधे की खास पूजा की जाती है. सभी एकादशी के दिन तुलसी की खास पूजा की जाती है. वहीं यदि बात निर्जला एकादशी की करें तो इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है और भगवान विष्णु को तुलसी अति प्रिय है इसलिए इस दिन तुलसी पूजन का काफी महत्व होता है. तुलसी को माता लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है. माना जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है वहां देवी-देवताओं का वास होता है.
भीम ने रखा था निर्जला एकादशी व्रत:
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि कथा के अनुसार भीमसेन को अधिक भूख लगती थी. जिसके कारण वे कभी व्रत नहीं रखते थे. लेकिन वे भी चाहते थे कि मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति हो, उनको पुण्य प्राप्त हों. वे चाहते थे कि कोई एक ऐसा व्रत हो, जिसे करने से वे पाप मुक्त हो जाएं और मोक्ष भी मिल जाए. तब उनको निर्जला एकादशी व्रत रखने को कहा गया. ऋषि-मुनियों के सुझाव पर उन्होंने निर्जला एकादशी का व्रत रखा. व्रत के पुण्य प्रभाव और विष्णु कृपा से वे पाप मुक्त हो गए और अंत में मोक्ष को प्राप्त हुए.
ये कार्य करे अवश्य:
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि निर्जला एकादशी के दिन दूध में केसर मिलाकर अभिषेक करने से भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है. निर्जला एकादशी के दिन विष्णु सहस्त्र का पाठ करने से कुंडली के सभी दोष समाप्त होते हैं. निर्जला एकादशी के दिन भोग में भगवान विष्णु को पीली वस्तुओं का प्रयोग करने से धन की बरसात होती है. निर्जला एकादशी के दिन गीता का पाठ भगवान विष्णु की मूर्ति के समाने बठकर करने से पित्रों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. भगवान विष्णु की पूजा तुलसी के बिना पूरी नहीं होती है. इसलिए निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु को भोग में तुलसी का प्रयोग अवश्य करें.
न करें ये गलती:
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि माता तुलसी को विष्णु प्रिया कहा जाता है.शास्त्रों के अनुसार एकादशी पर तुलसी में जल अर्पित नहीं करना चाहिए. इससे पाप के भागी बनते हैं क्योंकि इस दिन तुलसी भी एकादशी का निर्जल व्रत करती हैं. साथ ही विष्णु जी को पूजा में अक्षत अर्पित न करें. श्रीहरि की उपासना में चावल वर्जित हैं.
पूजा विधि:
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं. घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें. गवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें. भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें. अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें. भगवान की आरती करें. भगवान को भोग लगाएं. इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है. भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें. ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं. इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें. इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें.
व्रत विधि:
कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि सुबह जल्दी उठकर नित्यकर्म के बाद स्नान करें और व्रत का संकल्प लें. इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए. पूरे दिन भगवान स्मरण-ध्यान व जाप करना चाहिए. पूरे दिन और एक रात व्रत रखने के बाद अगली सुबह सूर्योदय के बाद पूजा करके गरीबों, ब्रह्मणों को दान या भोजन कराना चाहिए. इसके बाद खुद भी भगवान का भोग लगाकर प्रसाद लेना चाहिए.
पौराणिक कथा:
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत काल के समय एक बार पाण्डु पुत्र भीम ने महर्षि वेद व्यास जी से पूछा- हे परम आदरणीय मुनिवर! मेरे परिवार के सभी लोग एकादशी व्रत करते हैं और मुझे भी व्रत करने के लिए कहते हैं. लेकिन मैं भूखा नहीं रह सकता हूं अत: आप मुझे कृपा करके बताएं कि बिना उपवास किए एकादशी का फल कैसे प्राप्त किया जा सकता है. भीम के अनुरोध पर वेद व्यास जी ने कहा- पुत्र! तुम ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन निर्जल व्रत करो. इस दिन अन्न और जल दोनों का त्याग करना पड़ता है. जो भी मनुष्य एकादशी तिथि के सूर्योदय से द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक बिना पानी पीये रहता है और सच्ची श्रद्धा से निर्जला व्रत का पालन करता है, उसे साल में जितनी एकादशी आती हैं उन सब एकादशी का फल इस एक एकादशी का व्रत करने से मिल जाता है. तब भीम ने व्यास जी की आज्ञा का पालन कर निर्जला एकादशी का व्रत किया था.