जयपुर: मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने चार साल के कार्यकाल में कई बड़े फैसले किए हैं, लेकिन सबसे क्रांतिकारी फैसला है, जिसने न केवल देश की राजनीति में हलचल मचा दी, बल्कि एक राज्य में तो सरकार की बदल दी. जी हां हम बात कर रहे है ओल्ड पेंशन स्कीम की. राजस्थान में सबसे पहले इसे लागू किया गया, लेकिन चुनावी मुद्दा बना हिमाचल में. मुद्दा भी ऐसा कि भाजपा की सरकार बदल गई और गहलोत के इस फैसले से वहां कांग्रेस की सरकार बन गई. क्या ओल्ड पेंशन स्कीम गहलोत सरकार की भी वापसी कराएगी ?
23 फरवरी 2022 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जब विधानसभा में बजट पेश कर रहे थे, तब दो व्यक्तियों के अलावा किसी को अंदाजा तक नहीं था कि आज ऐसी घोषणा होगी, जो देश का मुद्दा बनेगी. ये दो व्यक्ति थे खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और दूसरे थे प्रमुख वित्त सचिव अखिल अरोड़ा. मुख्यमंत्री लगातार बजट पढ़ रहे थे, लेकिन जब वे 126वें बिंदु पर पहुंचे, तो न केवल सदन में तालियां गूंज उठी, बल्कि प्रदेश का कर्मचारी जगत व उनके परिजन खुशी से उछल पड़े. दरअसल मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रदेश में न्यू पेंशन स्कीम खत्म करके ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने का एलान कर दिया.
जी बिलकुल सही सुना आपने एक जनवरी 2004 और इसके बाद नियुक्त सभी कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम लागू कर दी गई है. पहले ऐसे कर्मचारियें के लिए नेशनल पेंशन स्कीम यानी एनपीएस लागू थी, जो शेयर मार्केट पर आधारित है. एनपीएस के तहत कर्मचारी का बेसिक वेतन और महंगाई भत्ते यानी डीए का 10 फीसदी हिस्सा काट लिया जाता है. शेयर मार्केट पर बेस्ड होने की वजह से इसे सुरक्षित नहीं माना जाता है. नई पेंशन योजना के तहत पेंशन प्राप्त करने के लिए एनपीएस फंड का 40 फीसदी निवेश करना होता है. इस योजना में 6 महीने बाद मिलने वाले डीए का कोई प्रावधान नहीं है. हालांकि, इस योजना में कर्मचारी को टैक्स डिडक्शन क्लेम करने का लाभ भी मिलता है.
वहीं ओपीएस यानी पुरानी पेंशन योजना में पैसे का भुगतान सरकार की ट्रेजरी के जरिये होता है. इस योजना के तहत रिटायरमेंट के वक्त कर्मचारी के वेतन की आधी राशि पेंशन के तौर पर दी जाती है. रिटायर्ड कर्मचारी की मृत्यु होने के बाद उनके परिजन को पेंशन की राशि दी जाती है. इस योजना में 20 लाख रुपये तक ग्रेच्युटी की रकम मिलती है. इसके अलावा इसमें 6 महीने बाद मिलने वाले DA का भी प्रावधान है. ओल्ड पेंशन स्कीम के तहत सरकारी कर्मचारियों को उनकी पेंशन में योगदान देना नहीं होता है.
फायदों में एक यह शामिल है कि कर्मचारी के रिटायर होने के बाद उन्हें पेंशन की राशि मिलेगी. ऐसे में रिटायरमेंट के बाद के वक्त के लिए पैसे की बचत करके फंड बनाने की जरूरत नहीं पड़ती है. इस स्कीम को बंद करने से करोड़ों कर्मचारी प्रभावित हो रहे थे, लेकिन राजस्थान में अब इसे फिर से लागू कर दिया है. इस घोषणा के बाद तो जैसे मुख्यमंत्री आवास पर कर्मचारियों का सैलाब सा उमड़ पड़ा. हर कोई सीएम गहलोत का आभार जताने मुख्यमंत्री आवास पहुंचा. बारां में तो ओपीएस के लिए आभार जताने हुए प्रतिनिधिमंडल ने गीत तक बना डाला.
नारदपुरा बस्सी के राजकीय वरिष्ठ उपाध्याय संस्कृत स्कूल में पुस्तकालयाध्यक्ष के पद से रिटायर्ड हुई राजकुमारी जैन का कहना है कि ओपीएस से तो सरकार ने हमारी किस्मत ही बदल दी. घोषणा के बाद भ्रम भी फैलाया गया कि राजस्थान में इस योजना का लाभ नहीं मिल रहा, लेकिन सच सुनिए 2011 में राजकीय सेवा में आकर कॉलेज शिक्षा से 2022 में रिटायर लेक्चरर डॉ रोजी शाह से, जिन्हें NPS की जगह OPS का लाभ मिलना शुरू हो गया है.
गहलोत ने कर्मचारियों के लिए एक घोषणा करके कांग्रेस को उम्मीद की एक नई किरण दिखाई है, क्योंकि ओपीएस के मुद्दे पर हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने भाजपा से विधानसभा का रण जीत लिया. कर्मचारियों की नाराजगी के चलते गहलोत ने पहली बार अपनी सरकार गंवाई थी, ऐसे में प्रदेश में सरकार के वापसी के मद्देनजर इस बार कर्मचारियों पर खासा फोकस है. मुख्यमंत्री गहलोत का दावा है कि उनकी सरकार वापसी करेगी और इस वापसी में 'ओल्ड पेंशन स्कीम' का अहम योगदान माना जा रहा है.
ओल्ड पेंशन स्कीम को बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने दिसंबर 2003 में बंद कर दिया था. कई संगठन और विपक्षी दल इसे लागू करने पर जोर दे रहे हैं. 2023 का विधानसभा चुनाव और साल 2024 के आम चुनाव के दौरान ओपीएस को लागू करने का मुद्दा बड़ा बन सकता है. राजस्थान के बाद छत्तीसगढ़ और झारखंड की सरकारें इस स्कीम को लागू कर चुकी हैं. हिमाचल प्रदेश में भी इसे लागू करने की तैयारी है.