बीकानेर: चुनावी साल में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत लगातार महंगाई राहत कैम्पो पर फ़ोकस कर रहे हैं. मुख्यमंत्री भरसक कोशिश कर रहे है कि इस बार मिथक टूटे और कांग्रेस की वापसी हो. इसलिए नेताओं को भी नसीहत दे रहे हैं कि आपसी मनमुटाव को भुलाकर कांग्रेस के अनुरूप काम करें हालांकि ये अलग बात है कि प्रदेश में वे ख़ुद भी इसी खींचतान में उलझे है बीकानेर में कांग्रेस नेताओं के बीच किचकिच किसी से छिपी हुई नहीं है. ऐसे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कोशिश है कि कांग्रेस के नेता आपसी भेदभाव को बुलाकर इस बार फिल्ड में एकजुट नज़र आए.
2018 के चुनाव में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई लेकिन बीकानेर में कांग्रेसी नेताओं की लड़ाई के चलते 7 में से महज़ तीन विधायक ही जीत पाए हालांकि इन तीनों विधायकों को मंत्री पद से नवाज़ा गया. सबसे चौंकाने वाला परिणाम नोखा का रहा और उसका एक बड़ा कारण बताया गया कि रामेश्वर डूडी, गोविंद मेघवाल, वीरेन्द्र बेनीवाल, मंगला राम गोदारा की आपसी खींचतान के चलते कांग्रेस 3 सीटों पर रह गई थी.
इस बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जबकि बार बार ही राग अलाप रहे हैं कि हमने इतना काम किया है जनता मिथक तोड़ेगी. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बीकानेर पर फ़ोकस भी किया हुआ है. जोधपुर के बाद बीकानेर में मुख्यमंत्री के ख़ूब दौरे हो रहे हैं. CM के दौरे में पिछले दिनों रामेश्वर डूडी ने भारी भीड़ जुटायी लेकिन यहां भी मंत्री गोविंद मेघवाल नहीं पहुंचे. प्रभारी की मौजूदगी और मुख्यमंत्री के रहते मंत्री का नहीं आना चर्चा का विषय तो था ही. दोनों नेता की जातिगत पकड़ इन्हें मजबूत बनाती है. आइए डालते है इन दोनों नेताओं के सियासी सफ़र पर नज़र !
रामेश्वर डूडी- एग्रो बिजनस बोर्ड के अध्यक्ष
- एक बार प्रधान, दो बार जिला प्रमुख
- बीकानेर से एक बार सांसद रहे
- नोखा से एक बार विधायक और प्रतिपक्ष नेता
- बीकानेर की देहात की राजनीति पर पकड़, जाट मतदाताओं पर प्रभाव
गोविंद मेघवाल- कैबिनेट मंत्री
- दो बार विधायक
- नोखा जब सुरक्षित सीट थी तो भाजपा से विधायक बने
- बाद में खाजूवाला सुरक्षित सीट बनी तो भाजपा छोड़ निर्दलीय चुनाव लड़ा, अच्छे मत हासिल किए लेकिन चुनाव हार गए.
- कांग्रेस से भी एक चुनाव हारा
- इस बार चुनाव जीते CM गहलोत गुट के पक्के सिपाही बन गए
- बेटे गौरव चौहान को प्रधान बनाया, बेटी सरिता और पत्नी भी जिला परिषद सदस्य
सुनते हैं एक ज़माने में रामेश्वर डूडी और गोविंद मेघवाल की ख़ूब पटरी बैठती थी.बातें तो यहां तक होती है कि डूडी ने तब पार्टी से हटकर मेघवाल की मदद की और मेघवाल भी रामेश्वर डूडी के साथ खड़े नज़र आते थे. लेकिन प्रधान को लेकर अनबन हो गई. उसके बाद गोविंद मेघवाल ने सदन में रामेश्वर डूडी के ख़िलाफ़ ऐसा बयान दिया जिसे विधानसभा की कार्रवाई से हटाना पड़ा. बाद में खाजूवाला से कांग्रेस की टिकट के लिए एक बार फिर कुछ मध्यस्थों के ज़रिए समझौता हुआ लेकिन सियासी महत्वकांक्षाओं ने पटरी नहीं बैठने दी. पिछले दिनों नोखा के जसरासर में मंत्री मेघवाल के नहीं जाने को लेकर CM भी ज्यादा खुश नहीं दिखे. हालांकि बाद में मंत्री मेघवाल मुख्यमंत्री से मिलने पहुंचे और फोटोशूट हुआ और उसके बाद मुख्यमंत्री ने हेलीकॉप्टर में पीसीसी अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा के साथ दोनों नेताओं को एक दूसरे से मिठाई भी खिलवाई. एक तरह से हवा में एक समझौता हुआ और मिठाई के ज़रिये दोनों की कड़वाहट दूर करने की कोशिश भी हुई.
क्या यह हवाई समझौता धरातल पर उतर पाएगा !
चर्चा इस बात की है कि क्या यह हवाई समझौता धरातल पर उतर पाएगा ! हालांकि कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोमेज़ लौटा सारा अक्सर ये बात कहते दिख रहे हैं कि यदि नेताओं ने आपसी मतभेद भुलाकर चुनाव नहीं लड़ा तो इससे कांग्रेस को नुक़सान होगा. आसरा चाहते हैं कि बीकानेर संभाग में रामेश्वर डूडी और गोविंद मेघवाल के बीच पटरी बैठेगी ताकि किसान बाहुल्य इस संभाग में दलितों के सहारे से कांग्रेस अच्छा परफ़ॉर्म कर सके. दूसरी तरफ़ भाजपा में भी पार्टी से बाहर चल रहे देवीसिंह भाटी अर्जुन मेघवाल के ख़िलाफ़ है. ऐसे में भाजपा में भी ये बात चल रही है. इन दोनों नेताओं के बीच भी कोई सूर्य का फ़ॉर्मूला लाया जाए.