जयपुर: राजस्थान की सात सीटों पर विधानसभा उपचुनाव की जंग में चुनावी शोर थम गया है. ये उपचुनाव कईं वजह से चर्चा में रहेंगे. जैसे चार एसी सीटें है जहां चुनाव भले ही प्रत्याशी लड़ रहा हो, लेकिन चर्चा उनके पिता, भाई, पति और दूसरे नेताओं की हो रही है. किरोड़ी मीणा,बृजेन्द्र ओला,हनुमान बेनीवाल और हरीश चंद्र मीणा भले ही खुद प्रत्याशी नहीं थे,पर चुनाव में पूरी तरह से उनकी साख दांव पर लगी है. क्योंकि प्रत्याशी उनके रिश्तेदार है और इन्होंने ही टिकट तय की.
सात विधानसभा सीटों के उपचुनाव के लिए प्रचार थम चुका है औऱ अब 13 नवंबर को मतदान होगा. वहीं चार सीटों के चुनाव परिणामों पर सबकी नजरें रहेगी. यह सीटें है दौसा, खींवसर, झुंझुनूं और देवली-उनियारा क्योंकि यहां दिग्गजों की साख और सियासत दांव पर लगी है. अब भले ही ये दिग्गज खुद प्रत्याशी नहीं हो लेकिन सारा चुनाव इन्हीं के इर्द-गिर्द लड़ा जा रहा है.
दौसा- भले ही चुनाव किरोड़ी मीणा के भाई जगमोहन मीणा लड़ रहे हो. लेकिन वोटर्स के बीच चर्चा सिर्फ किरोड़ी मीणा की हो रही है. नतीजों से सीधा असर किरोड़ी के कद पर पड़ेगा. किरोड़ी इस बात को अच्छे तरीके से जानते भी है. लिहाजा किरोड़ी ने कमंडल हाथ में लेकर भिक्षा देहामी जैसा पैंतरा तक आजमा डाला.
खींवसर- यहां से चुनाव सांसद हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल लड़ रही है. लेकिन सारा चुनावी माहौल ऐसा जमा हुआ है कि जैसे खुद हनुमान बेनीवाल ही चुनाव लड़ रहे हो. अब हनुमान की साख के साथ यह चुनाव पार्टी के अस्तित्व बचाने के लिए भी बेहद जरूरी हो गया है. क्योंकि पत्नी के नहीं जीतने पर फिर पार्टी का एक भी विधायक नहीं बचेगा.
झुंझुनूं- झुंझुनूं का चुनाव इस बार ओला परिवार के वजूद से जुड़ा हुआ है. कईं दशकों से इस सीट पर ओला परिवार का ही दबदबा रहा है. इस बार कांग्रेस ने सांसद बृजेन्द्र ओला के बेटे अमित ओला को उम्मीदवार बनाया है. सारी चुनाव की कमान बृजेन्द्र ओला के हाथों में ही है. अब देखना है कि ओला परिवार अपनी विरासत औऱ गढ़ को बरकरार रख पाते है या नहीं.
देवली-उनियारा- नरेश मीणा के बागी होने पर देवली-उनियारा सीट का चुनाव सबकी नजरों में आ चुका है. ऐसे में सांसद हरीश चंद्र मीणा को अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ रहा है. हरीश मीणा की सिफारिश पर ही केसी मीणा को टिकट दिया गया था. लिहाजा हरीश मीणा ने अपनी नाक बचाने के लिए पूरा ताकत चुनाव में झोंक रखी है.
तो आपने देखा चारों नेताओं के लिए उपचुनाव की जंग पूरी तरह से अपनी प्रतिष्ठा बचाए रखने की लड़ाई में तब्दील हो चुकी है. लिहाजा रण में चारों दिग्गज नेताओं ने ही चुनावी रणनीति औऱ प्रचार की कमान अपने हाथों में रखी. प्रदेश नेतृत्व ने भी इसके लिए उन्हें पूरा फ्री हैंड दे दिया. अब रिजल्ट से ही जाहिर होगा कि इनकी प्रतिष्ठा बचेगी या जाएगी.