Sawai Madhopur News: अक्षय तृतीया पर चौथ का बरवाड़ा सहित 18 गांवों में नहीं बजती शहनाई, बांधी जाती हैं मंदिरों की घंटियां; सैकड़ों सालों से चली आ रही परंपरा आज भी कायम

सवाई माधोपुर: अक्षय तृतीया जैसे अबूझ सावे पर जहां पूरे देशभर में शहनाई की गूंज होती है. बारात निकलती है, कन्यादान होता है, शगुन मनाया जाता है, वहीं राजस्थान में एक कस्बा ऐसा भी है जहां के 18 गांव के लोग इस मौके पर शोक मनाते हैं.

इन गांवों में अक्षय तृतीय यानि आखातीज के मौके पर कोई जश्न की बजाय शोक मनाया जाता है. इस दिन न तो गांव में कोई मिठाई बनती है और न ही कोई मंगल कार्य होता है. भारतवर्ष की परंपरा के विपरीत इस दिन शोक मनाने की यह रीतिसैकड़ों सालों से चली आ रही है.

राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा सहित 18 गांवों में  इस दिन को अशुभ माना जाता है. यहां अगर कोई शादी तय भी होती है तो बारात आखातीज से एक दिन पहले आती है और एक दिन बात रवाना की जाती है. इस दिन न तो कोई नई दुल्हन गांव में आती है और न ही कोई कन्यादिन होता है. साथ ही आखा तीज पर अंचल के प्रसिद्ध चौथ माता मंदिर की आरती बिना किसी ढोल मजीरे और बिना लाउडस्पीकर होती है. मंदिर परिसर में सभी घंटियों को बांध दिया जाता है ताकि कोई भी व्यक्ति घंटियों को नहीं बजा सके. 

लोक मान्यता के अनुसार, अक्षय तृतीया पर चौथ का बरवाड़ा व आसपास के 18 गांव में शोक मनाने का मुख्य कारण चौथ माता मंदिर में सालों पूर्व एक दुखद घटना को माना जाता है. अक्षय तृतीया के दिन चौथ माता मंदिर में बड़ी संख्या में नवविवाहित जोड़े माता के दर्शनों के लिए आए थे. ऐसे में माता मंदिर में भीड़ की अधिकता होने तथा जोड़ों का आपस में बिछुड़ जाने से वहां पर झगड़ा हो गया. ऐसे में इस घटना में कई नवविवाहित जोडों की जान चली जाने से आज भी अक्षय तृतीया के दिन पूरे क्षेत्र में शोक मनाने की परंपरा है तथा लोग इस दिन शादी विवाह व अन्य कार्य नहीं करते हैं. 

तृतीया के दिन विवाह नहीं करने के लिए चोथ माता की आंट दिलाई:
अक्षय तृतीया के दिन बाजारों में भी रोनक कम रहती है. आखातीज के दिन हुई इस घटना के बाद बरवाड़ा क्षेत्र में शोक की लहर छा गई. तब सम्पूर्ण बरवाड़ा एवं बरवाड़ा क्षेत्र के अधीन 18 गांवों के लोगों को अक्षया तृतीया के दिन विवाह नहीं करने के लिए चोथ माता की आंट (कसम) दिलाई. इस दिन तेल की कढ़ाई भी नहीं चढ़ाई जाती.