जयपुर: गोपालन विभाग से जुड़ी एक योजना में करीब 29 लाख रुपए खर्च किए गए. फर्स्ट इंडिया न्यूज ने 9 मार्च 2023 को यह खुलासा किया कि योजना में वित्त विभाग की अनुमति के बगैर ही फर्म को भुगतान कर दिया गया. अब इस योजना में हुए भुगतान को भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी कैग ने भी संदिग्ध माना है. कैग ने इस मामले में 12 लाख 39 हजार की राशि वसूलने के निर्देश दिए हैं.
प्रदेश में गौवंश संवर्धन के नाम पर यह अपनी तरह का पहला घोटाला सामने आया है. दरअसल गोपालन विभाग की ओर से गिर और थारपारकर नस्ल की गायों के संरक्षण व संवर्धन के लिए भ्रूण प्रत्यारोपण तकनीक के जरिए गायों में गर्भाधान किया गया. 150 गायों में भ्रूण प्रत्यारोपण किया गया, लेकिन इनमें से महज 31 गायों में ही गर्भाधान सफल हो सका. लेकिन गोपालन विभाग ने साबरमती आश्रम गौशाला फर्म को भुगतान पूरा कर दिया. फर्म को 28 लाख 81 हजार 725 रुपए का भुगतान किया गया है. जबकि नियमानुसार फर्म को पूरा भुगतान उसी स्थिति में किया जा सकता था, जब सभी 150 गाय गर्भवती होती. हद तो यह है कि तत्कालीन गोपालन निदेशक डॉ. लाल सिंह ने फर्म को 13 लाख 69 हजार रुपए का भुगतान तो 29 जुलाई 2022 को किया, जो कि उनका अंतिम कार्यदिवस था. विभाग के ही मुख्य लेखाधिकारी के विरोध के बावजूद डॉ. लाल सिंह ने अंतिम कार्यदिवस को यह भुगतान किया था. फर्स्ट इंडिया न्यूज ने 9 मार्च 2023 को प्रमुखता से खबर प्रसारित कर इस घोटाले को उजागर किया. अब इस मामले में कैग का निरीक्षण प्रतिवेदन सामने आया है, जिसमें योजना पर खर्च की गई राशि को संदिग्ध माना गया है.
CAG का निरीक्षण प्रतिवेदन, कहा, घोटाला हुआ !
- CAG के अधीन प्रधान महालेखाकार लेखापरीक्षा (प्रथम) की टीम ने किया निरीक्षण
- विभाग के MOU के मुताबिक भ्रूण प्रत्यारोपण का 50 प्रतिशत अग्रिम भुगतान होना था
- विभाग के 31 अगस्त 2018 के पत्र के मुताबिक शेष 50 प्रतिशत भुगतान बाद में होता
- बची हुई राशि प्रत्यारोपण के 3 माह बाद गर्भधारण की पुष्टि होने के बाद दी जाती
- 17 अक्टूबर 2018 को साबरमती आश्रम गौशाला ने भी MOU में इस बिंदु पर सहमति दी
- 16 जनवरी 2019 से 26 मार्च 2021 तक 150 भ्रूण का प्रत्यारोपण किया गया
- इनमें से 119 भ्रूण प्रत्यारोपण की स्थिति निगेटिव व मात्र 31 की ही पॉजिटिव थी
- 119 भ्रूण असफल रहने पर भी गौशाला ने विभाग को पूरे खर्च 28.81 लाख के बिल भेजे
- गोपालन विभाग ने 1511825 रुपए का भुगतान गौशाला को पहले ही कर दिया था
- बची हुई 13.69 लाख की राशि का भुगतान निदेशक ने अंतिम कार्यदिवस को किया
- ऑडिट टीम ने माना, भ्रूण असफल रहे तो बचा 50 प्रतिशत भुगतान नहीं करना चाहिए था
- इसलिए 119 भ्रूण प्रत्यारोपण पर हुए खर्च का 50 फीसदी वसूला जाना चाहिए
- टीम ने गोपालन विभाग को 11.24 लाख रुपए गौशाला से वसूल करने काे कहा
ऑडिट टीम ने गोपालन विभाग द्वारा गुजरात की साबरमती आश्रम गौशाला को किए अधिक भुगतान पर तो आक्षेप लिखे ही हैं, साथ ही जिन गौशालाओं में गायों में भ्रूण प्रत्यारोपण किया गया, उनसे प्रत्यारोपण के पेटे ली जाने वाली राशि नहीं वसूलने पर भी आक्षेप प्रकट किया है. दरअसल प्रति भ्रूण की कीमत 17 हजार रुपए थी, जिसमें प्रत्यारोपण के 1 हजार रुपए और जीएसटी शुल्क अलग से था. लेकिन जिन गौशालाओं में गायों में भ्रूण प्रत्यारोपण किया गया, उनसे प्रति भ्रूण प्रत्यारोपण गोपालन विभाग को 1 हजार रुपए की राशि लेनी थी. गोपालन विभाग ने इन गौशलाओं से भी यह राशि वसूल नहीं की है.
इन गौशालाओं पर गोपालन विभाग की मेहरबानी !
- विराटनगर की राज दरबार/अहलूवालिया फार्म में 40 भ्रूण, बकाया राशि 40 हजार
- दुर्गापुरा गौ सेवा संघ जयपुर में 10 भ्रूण प्रत्यारोपण, बकाया राशि 10 हजार
- माम्डियाई गौशाला सांगव, जैसलमेर में 12 भ्रूण प्रत्यारोपण, बकाया राशि 12 हजार
- माम्डियाई गौशाला बालोतरा, बाड़मेर में 20 भ्रूण, बकाया राशि 6 हजार
- रूफिल/जोशी डेयरी फार्म जोबनेर में 10 भ्रूण, बकाया राशि 10 हजार
- पीजीआईवीआर जयपुर में 36 भ्रूण प्रत्यारोपण, बकाया राशि 36 हजार
- इस तरह 6 गौशालाओं-समूहों पर 1 लाख 14 हजार रुपए की राशि रही बकाया
कैग के निरीक्षण दल ने इस परियोजना में व्यय की गई राशि को वित्त विभाग से जुड़े नियमों की अवहेलना में शामिल किया है. टीम ने कहा है कि परियोजना के तहत गुजरात की साबरमती आश्रम गौशाला फर्म को जो भुगतान किया गया, वह वित्त विभाग से बगैर अनुमति लिए ही कर दिया गया. इसे नियमों का उल्लंघन माना है.
जो बात फर्स्ट इंडिया ने कही, कैग टीम ने उसकी पुष्टि की !
- फर्स्ट इंडिया ने खबर में खुलासा किया था कि वित्त विभाग से अनुमति नहीं ली गई
- मुख्य लेखाधिकारी के विरोध के बावजूद निदेशक डॉ. लाल सिंह ने भुगतान की स्वीकृति दी
- अब कैग टीम ने लिखा, वित्त विभाग की 23 जनवरी 2017 अधिसूचना का उल्लंघन किया
- अधिसूचना में था- यदि माल संकर्म या परामर्शी सेवाओं से भिन्न सेवाओं का उपापन किया जाए
- राज्य सरकार के पब्लिक सेक्टर उद्यम से भिन्न पब्लिक सेक्टर उद्यम से उपापन किया जाए
- तब उपापन से पूर्व वित्त विभाग से अनुमाेदन कराया जाना जरूरी होगा
- पूर्व में बजट प्रदाता कृषि विभाग ने तो वित्त विभाग से अनुमोदन लिया था
- लेकिन चूंकि साबरमती गौशाला राज्य से बाहर का उद्यम है.
-...तो उस स्थिति में गोपालन विभाग को भी वित्त विभाग से अनुमति लेनी जरूरी था
- इस योजना में वित्त विभाग से बगैर अनुमोदन लिए ही भुगतान कर दिया गया