जैसलमेरः भारत-पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा पर इन दिनों गरज सुनाई दे रही है — ये गरज किसी तूफान की नहीं, बल्कि भारत की रणनीतिक सैन्य तैयारी की है. राजस्थान के थार से लेकर गुजरात के कच्छ तक, भारतीय सेना की दक्षिणी कमांड ने जिस प्रकार से हाई-इंटेंसिटी युद्धाभ्यास की कमान संभाली है, वह न केवल देश को सुरक्षा का नया भरोसा दे रहा है, बल्कि यह भी दर्शा रहा है कि भारत अब युद्ध नहीं चाहता, पर युद्ध के लिए हर क्षण तैयार है. जैसलमेर, बाड़मेर, लोंगेवाला, तनोट, बीकानेर और कच्छ की रेत पर इस समय भारतीय थलसेना द्वारा किया जा रहा सैन्य अभ्यास अब तक के सबसे संगठित और व्यापक अभ्यासों में गिना जा रहा है. यह अभ्यास सामान्य रुटीन ड्रिल नहीं है, बल्कि एक ऐसा बहुस्तरीय अभ्यास है जिसमें युद्ध के हर पहलू को व्यावहारिक स्तर पर परखा जा रहा है.
सेना के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार यह अभ्यास विशेष रूप से ऐसे परिदृश्यों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है, जहां सीमांत क्षेत्रों में घुसपैठ, ड्रोन हमले, साइबर अटैक और मल्टी-डोमेन वारफेयर एक साथ उत्पन्न हो सकते हैं. ऐसे में भारतीय सेना की तैयारियों का आकलन करना और उन्हें धरातल पर उतारना समय की मांग भी है और चुनौती भी.
“Trained to Endure, Primed to Dominate” – सेना की तैयारी का नया मंत्र
दक्षिणी कमांड की इस कवायद में एक बात स्पष्ट झलक रही है — अब युद्ध केवल बंदूकों और तोपों का नहीं रहा, बल्कि यह रणनीति, तकनीक और त्वरित प्रतिक्रिया का संगम बन चुका है. “Trained to Endure, Primed to Dominate” यानी “कष्ट सहने को प्रशिक्षित, विजय के लिए तैयार” — यही वह भावना है जो हर जवान की चाल, हर अफसर की योजना और हर यूनिट की तैयारी में स्पष्ट दिख रही है.रेगिस्तान की कठिन परिस्थितियों में जवानों को न केवल जीने और लड़ने के लिए तैयार किया जा रहा है, बल्कि उन्हें ऐसे हालातों में त्वरित निर्णय लेने, समन्वय बनाने और आधुनिक उपकरणों के साथ तालमेल बैठाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है.
“Rapid Mobility. Agility. Integrated Might.” – युद्ध की परिभाषा बदली
सेना के इस अभ्यास की सबसे बड़ी विशेषता इसकी आधुनिक रणनीतिक थीम है — "Rapid Mobility. Agility. Integrated Might."यानी तेज़ गति, रणनीतिक फुर्ती और सभी सैन्य शाखाओं की समन्वित शक्ति. इस अभ्यास में सेना की टुकड़ियां तेजी से रेगिस्तानी इलाकों में मूव करती हैं, हेलिकॉप्टर सपोर्ट, ड्रोन निगरानी और सैटेलाइट से फीड लेकर लक्ष्य को निष्क्रिय करती हैं. इसके बाद एयर सपोर्ट और आर्टिलरी गन का अभ्यास होता है — यानी एक साथ थलसेना, वायुसेना और इंटेलिजेंस यूनिट का एकीकृत ऑपरेशन. यह अभ्यास यह दिखाता है कि अब भारतीय सेना सिर्फ जवाब नहीं देती, बल्कि स्थितियों को नियंत्रण में लेकर निर्णयात्मक बढ़त बनाना जानती है.
टेक्नोलॉजी और इंटेलिजेंस का अद्भुत समन्वय
इस अभ्यास के दौरान कम्युनिकेशन ब्लैकआउट, साइबर जामिंग, लो-विजिबिलिटी ऑपरेशन, रात्रि गश्त, और हाई एल्टीट्यूड सपोर्ट जैसी कई जटिल परिस्थितियों को सिमुलेट किया गया. ड्रोन सर्विलांस, GPS-नियंत्रित टैंक मूवमेंट और डिजिटल वॉर रूम कमांड सिस्टम जैसे नवाचारों को धरातल पर उतारा गया, जो दिखाता है कि भारतीय सेना अब ‘डिजिटल वॉरफेयर’ के लिए पूरी तरह सक्षम है साथ ही, बीएसएफ और सेना के बीच निरंतर साझा संवाद, इंटेल साझेदारी और सामरिक फील्ड एक्शन ने सीमा को और मजबूत बनाया है.
इस अभ्यास का सबसे स्पष्ट संदेश पाकिस्तान को गया है. पिछले कुछ वर्षों में सीमा पार से ड्रोन द्वारा हथियार गिराने, घुसपैठ की कोशिशें, और आतंकी नेटवर्क को सक्रिय करने की घटनाएं सामने आई हैं.लेकिन इस बार भारत का जवाब केवल कड़ा नहीं, बल्कि पहले से ज्यादा संगठित और घातक है.सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “अब हम रिएक्ट नहीं करते, अब हम रेडी रहते हैं. हर हरकत पर हमारी निगरानी है और हर जवाब तैयार है. इस अभ्यास के दौरान सीमावर्ती गांवों के लोग अपने घरों की छतों से जब हेलिकॉप्टर उड़ते देखते हैं, तो उन्हें डर नहीं, बल्कि गर्व महसूस होता है.जैसलमेर के पास एक बुजुर्ग किसान ने बताया, “हम रोज़ सेना के टैंक और जवानों को यहां अभ्यास करते देखते हैं. हमें सुकून है कि हमारी सीमा पर ऐसे बेटे तैनात हैं.”अब युद्ध केवल मैदान में नहीं होगा. यह सैटेलाइट, साइबर, डिजिटल नेटवर्क, मनोवैज्ञानिक दबाव और रणनीतिक पकड़ का मिश्रण होगा.भारतीय सेना के ये अभ्यास इस बात का संकेत हैं कि 2025 का भारत किसी भी मोर्चे पर 1965 या 1971 वाला भारत नहीं है. अब हमारा राष्ट्र लड़ाई को रोकना भी जानता है, और ज़रूरत पड़ी तो उसे निर्णायक रूप से जीतना भी. दक्षिणी कमांड के इस रणनीतिक अभ्यास ने भारत की रक्षा व्यवस्था को एक नया स्तर दिया है. यह सिर्फ अभ्यास नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के भविष्य का खाका है. जब एक ओर दुनिया में युद्ध की बदलती परिभाषा को लेकर बहस हो रही है, तब भारतीय सेना उसे जमीन पर उतार रही है — वह भी बिना कोई प्रचार किए, चुपचाप, लेकिन पूरी ताकत से.यह अभ्यास न केवल भारत की सैन्य क्षमता का प्रदर्शन है, बल्कि यह हर भारतीय नागरिक को यह भरोसा भी देता है —कि जब थार की रेत गरजती है, तो दुश्मन की हर साजिश धूल में मिल जाती है.