सुप्रीम कोर्ट ने गांवों, शहरों में सीवेज प्रबंधन को लेकर जतायी चिंता, कहा- अनुपचारित कचरे को नदियों और नालों में छोड़ दिया जाता है

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने गांवों, कस्बों और शहरों में सीवेज प्रबंधन पर चिंता व्यक्त की है और कहा है कि अनुपचारित कचरे को नदियों और नालों में छोड़ दिया जाता है जिससे पानी के स्रोत प्रदूषित हो जाते हैं. अदालत ने कहा कि पानी स्त्रोतों पर ही आबादी और जैव विविधता का अस्तित्व निर्भर करता है. शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि जलमल शोधन संयंत्रों (एसटीपी) के प्रदर्शन का जायजा लेने के लिए उत्तर प्रदेश में एक जवाबदेह तंत्र स्थापित किया जाए, जो इसके रखरखाव के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध करा सके तथा अन्य सभी प्रशासनिक मुद्दों और समस्याओं से निपट सके.

उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि राज्य में उत्पन्न कुल सीवेज 5500 एमएलडी है, जो देश में सबसे अधिक है और राज्य में सीवेज का 100 प्रतिशत शोधन जून 2025 तक किया जाएगा. प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा तथा न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार के एक आवेदन पर सुनवाई के बाद यह आदेश पारित किया, जिसमें राज्य में 100 प्रतिशत एसटीपी कवरेज स्थापित करने और संचालित करने के लिए और समय मांगा गया था. शीर्ष अदालत ने 22 फरवरी, 2017 को राज्यों को निर्देश दिया था कि वे अलग-अलग गांवों, शहरों और कस्बों में उत्पन्न अनुपचारित कचरे के उपचार के लिए तीन साल की अवधि के भीतर सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्रों और एसटीपी की स्थापना के लिए अनिवार्य समय-सीमा का पालन करें. उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने आवेदन में तर्क दिया कि 2017 में अदालत द्वारा प्रदान की गई समय-सीमा ‘‘वर्तमान वित्त पोषण एवं संस्थागत क्षमताओं को देखते हुए अव्यावहारिक और कृत्रिम है तथा दी गई समय सीमा में इसे लागू करना असंभव है.’’

राज्य सरकार ने कहा कि उत्तर प्रदेश में उत्पन्न कुल सीवेज 5500 मिलियन लीटर प्रति दिन (एमएलडी) है और इसमें से 3860 एमएलडी की उपचार क्षमता वाले 122 एसटीपी कार्यरत हैं जबकि 1004 एमएलडी की उपचार क्षमता वाले 52 एसटीपी निर्माणाधीन हैं और दिसंबर 2024 तक चालू हो जाएंगे. राज्य सरकार ने कहा, ‘‘854 एमएलडी की उपचार क्षमता वाले 15 एसटीपी ‘निविदा’ प्रक्रिया के तहत हैं और इन्हें जून 2025 तक शुरू किया जाना है.’’ पीठ ने कहा, ‘‘गांवों, कस्बों और शहरों में उत्पन्न होने वाले सीवेज का शोधन अत्यंत चिंता का विषय है. अनुपचारित सीवेज कचरे को नदियों और नालों में छोड़ दिया जाता है, जिससे पानी के स्रोत प्रदूषित हो जाते हैं, जिन पर आबादी और जैव विविधता का अस्तित्व निर्भर करता है.’’ सुनवाई के बाद पीठ ने आवेदनकर्ता को एनजीटी के समक्ष अनुरोध करने की अनुमति प्रदान की. सोर्स- भाषा