VIDEO: सरिस्का में बाघों की बढ़ती आबादी बनी चुनौती, नए इलाकों में टेरिटरी की तलाश में 2 बाघों का जयपुर में डेरा, देखिए ये खास रिपोर्ट

जयपुर: जयपुर ग्रामीण क्षेत्र के जंगल अब बाघों की नई टेरिटरी के रूप में उभर रहे हैं. सरिस्का टाइगर रिजर्व में बाघों की बढ़ती संख्या अब इस रिजर्व की सीमाओं को चुनौती देने लगी है. मौजूदा परिस्थिति में दो बाघ ST-24 और ST-2305 लगातार सरिस्का से बाहर रहकर जयपुर जिले के जमवारामगढ़, डिगोता, सानकोटड़ा, रायसर और खरड़ क्षेत्र में अपनी मौजूदगी दर्ज करवा रहे हैं. यह वन्यजीव विशेषज्ञों और वन विभाग दोनों के लिए चिंता और अवसर दोनों का संकेत है. 

बाघ ST-24 जुलाई 2022 में सरिस्का से निकलकर जमवारामगढ़ पहुंचा था और तब से लेकर अब तक वह खोरा मीना, अचरोल, निंबी, साउ की पहाड़ी और रायसर क्षेत्र में लगातार सक्रिय है. वहीं, ST-2305 ने 28 नवंबर 2023 को सरिस्का छोड़कर रायसर क्षेत्र में कदम रखा और अब वह डिगोता, सानकोटड़ा, प्रतापगढ़ और खरड़ क्षेत्र में भ्रमण कर रहा है. दौसा–मनोहरपुर हाईवे अब दोनों बाघों की टेरिटरी की एक अस्थायी सीमा बन गया है, जिसके एक ओर ST-24 और दूसरी ओर ST-2305 सक्रिय है. वन विभाग की सरिस्का, दौसा और जयपुर ग्रामीण टीमों द्वारा इन दोनों बाघों की निगरानी कर रही रही है.

- सरिस्का की बढ़ती आबादी और टेरिटरी संकट
सरिस्का में वर्तमान में 44 से बाघ मौजूद हैं, लेकिन रिजर्व की क्षमता सीमित है. बाघों की प्रकृति टेरिटरी आधारित होती है, और एक नर बाघ औसतन 60–100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल की टेरिटरी चाहता है. सरिस्का जैसे संरक्षित क्षेत्रों में इस टेरिटरी का अभाव बाघों को अन्य सुरक्षित जंगलों की तलाश में मजबूर कर रहा है. यही कारण है कि सरिस्का के बाघ अब जयपुर जिले की ओर बढ़ रहे हैं.

- गांव विस्थापन बना दीर्घकालिक चुनौती
सरिस्का रिजर्व के भीतर और आसपास स्थित कई गांव बाघों की सुरक्षा और विस्तार में बड़ी बाधा बने हुए हैं. अभी भी रिजर्व क्षेत्र के अंदर लगभग 10 से अधिक गांव हैं, जिनका विस्थापन लम्बे समय से लंबित है. ये गांव न केवल टेरिटरी के लिए बाधा हैं, बल्कि मानव-बाघ संघर्ष की संभावनाओं को भी बढ़ाते हैं. सरकार द्वारा कई बार विस्थापन की योजनाएं बनाई गईं, लेकिन मुआवजा, पुनर्वास और सामाजिक समस्याओं के चलते यह प्रक्रिया धीमी रही. जब तक गांवों का विस्थापन नहीं होता, तब तक सरिस्का की संपूर्ण क्षमता का उपयोग नहीं हो सकता.

- वन विभाग की रणनीति: नए क्षेत्रों में विस्तार
बढ़ती आबादी और सीमित स्थान की समस्या को देखते हुए वन विभाग ने एक नई रणनीति बनाई है. खरड़ क्षेत्र को एक संभावित बाघ टेरिटरी के रूप में विकसित करने की योजना है. इसके तहत एक बाघिन को वहां शिफ्ट करने का प्रस्ताव राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) को भेजा गया है. यदि यह मंजूरी मिलती है तो यह जयपुर जिले में एक नया टाइगर कॉरिडोर स्थापित करने की दिशा में पहला कदम होगा.

 

 - अवसर और सावधानियां
बाघों की यह उपस्थिति स्थानीय क्षेत्र में वन्यजीव पर्यटन को बढ़ावा दे सकती है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ होगा. लेकिन इसके साथ ही स्थानीय आबादी की सुरक्षा, पशुधन हानि की क्षतिपूर्ति और जन-जागरूकता कार्यक्रम चलाना जरूरी है. वन विभाग, सरिस्का और जयपुर ग्रामीण की टीमें इन बाघों की गतिविधियों पर 24x7 नजर बनाए हुए हैं, जिससे किसी भी तरह की टकराव की स्थिति को टाला जा सके.