नागौर: देशभर में शारदीय नवरात्र एकम से शुरू होते लेकिन नागौर जिले के मेड़ता रोड स्थित ब्राह्मणी माता का मंदिर देश का एकमात्र मंदिर है. जहाँ अश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या को घट स्थापना हुई. खास तौर पर देवी की आराधना करने वाले भक्त अगले सात दिन तक बिना कुछ खाए पिए केवल चरणामृत लेकर माता की उपासना करते है.
मंदिर की बड़ी खासियत यह भी है कि मंदिर में गर्भगृह में रहने वाले भक्तों के साथ मां भी उपवास करती हैं. यानी अमावस्या से छठ तक मंदिर में भोग नहीं लगता.
इन सात दिनों में श्रद्धालुओं को मंदिर के गर्भगृह की परिक्रमा की भी अनुमति नहीं होती है. चैत्र के नवरात्र हो या अश्विन माह के. इस मंदिर की खासियत यही है कि यहां अमावस्या को ही घट स्थापना होती है. वैसे तो पूरे साल यहां श्रद्धालु आते हैं. लेकिन नवरात्र में खास तौर पर देश के अलग-अलग हिस्सों से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं.
दिन में होती हैं चार आरती :
घट स्थापना के बाद से अब यहां पर एक दिन में 4 आरती होंगी. सुबह 4 बजे, 10 बजे, शाम 7 बजे और रात 10 बजे आरती होगी.
सप्तमी होने पर नवरात्र पर ब्राह्मण परिवार द्वारा प्रसाद चढ़ाया जताया .
इन सात दिनों तक उपासक को सात दिन कड़े नियमों का करना पड़ता है पालन :
माता के भाव आने पर भक्त को गर्भगृह में बैठने की अनुमति मिलती है. एक बार भीतर जाने के बाद उसे सात दिन तक मंदिर में ही रहना पड़ता है. इन सात दिनों में भोजन, फल, दूध आदि के बिना केवल चरणामृत के सहारे ही रहना पड़ता है.
सप्तमी को पहला भोग किसका लगेगा, यह तय करने की भी अनोखी परंपरा :
पंचमी की रात को दुवा की सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन किया जाता है. सात दिन तक माता को भोग नहीं लगाया जाएगा. सप्तमी को किसके घर से माता को पहला भोग लगेगा. यह तय करने की भी यहां अलग परंपरा है. जिसे दुआ प्रथा कहते हैं. पंचमी की रात 10 बजे होने वाली आरती में माता की उपासना करने वाला भक्त मेड़ता रोड के शाकद्वीपीय ब्राह्मण समाज के जिस व्यक्ति का नाम बोला . उसी के घर से सप्तमी यानी पहला भोग माता को लगाया गया. मंदिर के गर्भगृह में रहकर उपासना करने वाले सभी भक्तों को गाजे बाजे के साथ उस व्यक्ति के घर ले जाया जाता है. जहां प्रसाद ग्रहण करवाया जाता है.
नवरात्रि में मंदिर में दूर दूर से श्रदालु आते है, जिसमे जाजू मालाणी ओझा गोत्र के श्रदालु ज्यादा आते है जिनकी यह कुलदेवी है. मन्दिर में जांगला गोत्र के शाकद्वीपीय ब्राह्मण पुजारी है. औरंगजेब के समय इस मंदिर पर आक्रमण हुआ था तथा मंदिर में खूब तोड़ फोड़ की गई. पुजारी परिवार के ने बताया कि मंदिर के गर्भगृह में बैठने की अनुमति भी माता के भाव आने के साथ मिलती है. अंदर जाने के बाद उस भक्त को घर नहीं जाने दिया जाता है. इस दौरान 7 दिनों तक वे मंदिर में ही अन्न-जल त्याग कर चरणामृत के सहारे ही रहना पड़ता है.
पंचमी के दिन रात को 10 बजे की आरती में होता तय कौन लगाएगा भोग:
पंचमी के दिन रात को 10 बजे की आरती में जिस भक्त का नाम लिया जाता है, उसके घर से ही सप्तमी के दिन पहला भोग लगता है. मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद सभी भक्त गाजे-बाजों के साथ अपने घर ले जाकर प्रसाद ग्रहण करवाता है. वर्षों से आज यह दुवा प्रथा कायम है.
मंदिर इतिहास :
1063 वर्षों पहले कच्चे थान का राजा नाहड़ राव ने करवाया था जीर्णोद्धार मेड़ता रोड स्थित फलौदी ब्रह्माणी माता मंदिर का इतिहास बेहद पुराना है. पहले यहां ब्रह्माणी माता का कच्चा थान हुआ करता था, जिसे 1063 वर्षों पहले विक्रम सम्वत 1013 में राजा नाहड़ राव ने जीर्णोद्धार करवाकर भव्य मंदिर बनवाया था. राजा नाहड़ राव ने तब 52 हजार बीघा जमीन भी माता के चरणों में समर्पित की थी. मंदिर परिसर में ही जैन धर्मावलंबियों का पार्श्वनाथ मंदिर भी मौजूद है. इसे विक्रम संवत 1121 में निर्मित करवाया था.
मंदिर के ठीक सामने स्थित मीठे पानी का सरोवर:
गर्भगृह में ब्रह्माणी माता की दो प्रतिमाओं के साथ विघ्नहर्ता विनायक है व मंदिर में काला भेरू व गोरा भेरू भी है. यहां माता की अखंड ज्योत जलती रहती है. मंदिर परिसर में बाहर से आने वाले भक्तों के ठहरने के लिए 100 कमरे भी बने हुए हैं.