देश को आर्थिक संकट से निकालने के लिए अलोकप्रिय फैसलों को जारी रखेंगे- रानिल विक्रमसिंघे

कोलंबो: श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने बुधवार को कहा कि वह देश में शक्तियों के हस्तांतरण के साथ आगे बढ़ेंगे और यह सुनिश्चित करने के लिए अपने अलोकप्रिय फैसलों को जारी रखेंगे कि दिवालिया देश आर्थिक संकट से उबर सके. एक प्रमुख नीतिगत भाषण में विक्रमसिंघे ने संसद को यह भी बताया कि 2.9 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ बातचीत अंतिम चरण में है. विक्रमसिंघे ने सांसदों से कहा कि हम एकजुट राष्ट्र के भीतर सत्ता के हस्तांतरण की उम्मीद करते हैं. हालांकि, मैं एक तथ्य को दोहराना चाहता हूं, जिस पर कई मौकों पर जोर दिया गया है. देश का कोई विभाजन नहीं होगा.’’

विक्रमसिंघे की इस टिप्पणी से कुछ दिन पहले पूर्व एक प्रभावशाली बौद्ध भिक्षु द्वारा इस कदम का कड़ा विरोध करते हुए दावा किया गया था कि यह देश की एकात्मक प्रकृति को चुनौती देता है. राष्ट्रपति विक्रमसिंघे ने देश में अल्पसंख्यक तमिलों को राजनीतिक स्वायत्तता प्रदान करने के लिए संविधान के 13वें संशोधन को पूरी तरह से लागू करने की आवश्यकता को रेखांकित किया है. भारत 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते के बाद लाए गए 13ए को लागू करने के लिए श्रीलंका पर दबाव बना रहा है. सिंहली मुख्य रूप से बौद्ध हैं जो श्रीलंका की 2.2 करोड़ आबादी का लगभग 75 प्रतिशत हैं जबकि तमिल 15 प्रतिशत हैं. आर्थिक संकट के बारे में विक्रमसिंघे ने कहा कि श्रीलंका के 2026 तक दिवालियापन से उबरने की उम्मीद है. उन्होंने कहा, ‘‘अतीत के बारे में नहीं बल्कि भविष्य के बारे में सोचें. आइए सहमति के साथ एकजुट हों और देश को मौजूदा संकट से उबरने में समर्थन देने के लिए लोकतांत्रिक तरीके से आगे बढ़ें.’’

राष्ट्रपति ने कहा कि उनके द्वारा लिए गए अलोकप्रिय फैसलों के आने वाले वर्षों में सकारात्मक परिणाम होंगे. विक्रमसिंघे ने कहा, ‘‘याद रखें, मैं यहां लोकप्रिय होने के लिए नहीं हूं. मैं इस देश को संकट की स्थिति से निकालना चाहता हूं. हां, मैं राष्ट्र के लिए अलोकप्रिय निर्णय लेने को तैयार हूं. लोग दो से तीन साल में उन फैसलों के महत्व का एहसास करेंगे. श्रीलंका सरकार ने कर वृद्धि और अन्य सख्त आर्थिक उपायों की शुरुआत की है. वहीं, श्रमिक संगठनों और विपक्षी दलों ने ऐसे उपायों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया है. श्रीलंका 2022 में अभूतपूर्व वित्तीय संकट की चपेट में आ गया था. विदेशी मुद्रा भंडार की भारी कमी के कारण, देश में राजनीतिक उथल-पुथल मच गई, जिसके कारण शक्तिशाली राजपक्षे परिवार को सत्ता से हटना पड़ा. सोर्स- भाषा