जैसलमेर: नवरात्रा पास आने के साथ ही मां की मूर्तियां बनाने का काम शुरू हो गया है. जैसलमेर (Jaisalmer) में भी पीएचईडी ऑफिस के बाहर मूर्तियों को बनाया जा रहा है. जोधपुर से आए नाथाराम परिवार के 12 सदस्य ईको फ्रेंडली मूर्तियों को अंतिम रूप दे रहे हैं. सफेद चॉक का पाउडर, नारियल की जटा और मिट्टी के रंगों से आकार देते हैं. एक मूर्ति को बनने में करीब 3 दिन लगते हैं.
100 रुपए से लेकर 10 हजार तक की मूर्ति बिकती है. जिससे नाथाराम के परिवार का पेट पलता हैं. मूर्तिकार नाथाराम ने बताया कि वे जोधपुर के रहने वाले हैं. पहले वह जैसलमेर में रहकर मूर्ति का काम करते थे. लेकिन कोरोना के बाद वे जोधपुर बस गए और मूर्ति का काम भी ठप हो गया. अब वापिस गणेश चतुर्थी और नवरात्रि के चलते काम शुरू हुआ है. वे बताते हैं कि उनके परिवार के करीब 12 सदस्य मिलकर मूर्ति बनाने का काम करते हैं. कोई मैटेरियल का घोल बनाता है.
कोई उसे सांचे में ढालता है. अलग-अलग सांचों में अलग-अलग आदमी काम करता है. मूर्ति तैयार होने के बाद उसको जल्दी सुखाकर परिवार की औरतें और लड़कियां उसमें मिट्टी के रंग भरते हैं. उसके बाद ही भगवान की मूर्ति तैयार होती है. नाथाराम बताते हैं कि जबसे प्लास्टर ऑफ पेरिस पर रोक लगी है तब से वे सफेद चॉक के पाउडर से मूर्तियां बनाते हैं. उन्होने बताया कि वे बीकानेर से सफेद चॉक का पाउडर लाते हैं.
100 से लेकर 10 हजार रुपए में बिक रही मूर्तियां:
इसके बाद गुजरात और आंध्र प्रदेश से नारियल की जटा मंगाते हैं ताकि सफेद चॉक के पाउडर के घोल को नारियल की जटा से जकड़ा जा सके. वे बताते हैं कि इसके लिए वे 4 महीने पहले से तैयारी करते हैं. मूर्ति बनने के बाद उस पर मिट्टी के रंगों से रंग दिया जाता है. इसके बाद तैयार होती है मूर्ति जो सौ फीसदी ईको फ्रेंडली मिट्टी से बनी है और वो पानी में जल्दी घुल जाती है. सभी मिलकर 1 बड़ी मूर्ति को तीन दिन में पूरा करते हैं. ये मूर्तियां नवरात्रि में 100 रुपए से लेकर 10 हजार रुपए में बिक रही है. जिससे उसका और उसके परिवार का पेट पल रहा है.