झालावाड़: आपने देशभर में रावण और उसके परिवार के बारे में सुना होगा, देखा होगा और इनके बारे में जाना होगा. अलग-अलग जगह रावण और उसके परिवार के बारे में कई जानकारियां सामने आई. लेकिन हम आपको ऐसी रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं जिसको देखकर आप चौंक जाएंगे.
झालावाड़ (Jhalawar) जिले के झालरापाटन कस्बे के इन्दौर रोड़ पर रावण उसके परिवार के साथ रहता है. रावण दहन बुत पुतले के रूप में और इन पुतलों के आगे ही होता है. यह परंपरा आज से नहीं बल्कि 1840 से चली आ रही है. जिसको झालावाड़ राज्य के प्रथम महाराज राणा मदनसिंह ने शुरू किया था. इन्होंने झालरापाटन मेला मैदान में रावण के कुनबे का निर्माण कराया तब से यहां दशहरा मनाया जाता है. पहले पत्थर के पुतले को ही तीर मारकर रावण वध किया जाता था.
रावण के पेट में लाल थैली रख कर उसमें तीर चलाते थे. इसके बाद 1920 में राणा भवानीसिंह ने रावण के परिवार का जीर्णोद्धार कराया और पत्थरों से पूरे परिवार का निर्माण कराया. इसके बाद से ही रावण परिवार यहां साल भर लोगों के लिए खड़ा मिलता है. नगरपालिका इन रावण परिवार की देखभाल करती है. इनका रंग-रोगन, साफ-सफाई करवाती है और दशहरे (Dussehra) के दिन यहां दशहरा मनाया जा रहा है.
दिन बदले जमाने बदले अब बदल गया है रावण:
आज भी लोग यहां रावण परिवार को देखने आते हैं और पूजा अर्चना कर मन्नत भी मांगते हैं. यहां रावण के परिवार में रावण, मंदोदरी, कुम्भकर्ण, सुरपर्णखा, पहरेदार और हाथी भी मौजूद है. जो भी लोग इस रोड़ से गुजरते हैं रावण परिवार को दखकर अचरज करते हैं. वहीं रावण दरबार में काम करने वाले बबलू मुस्लिम परिवार वाले भी पिछले तीन पीढ़ियों से इनका रंग कलर कर रहे हैं. मुस्लिम परिवार वाले होते हुए भी यह लोग रावण दरबार के परिवार से काफी खुश है और खुशी-खुशी अपने काम को अंजाम देते हैं.