VIDEO: धर्म परिवर्तन की आड़ में SC की भूमि बेचने का आरोप, मेन टोंक रोड स्थित बेशकीमती भूमि का मामला, देखिए ये खास रिपोर्ट

जयपुर: जेडीए के जोन के अधिकारी-कर्मचारी किस तरह बेशकीमती जमीनों के मामले में रसूखदारों को उपकृत करते हैं,उसका एक ताजा उदाहरण हाल ही सामने आया है. यह मामला है राजधानी में टोंक रोड स्थित करोड़ों रुपए की भूमि का, जिसमें धर्म परिवर्तन की आड़ में अनुसूचित जाति के व्यक्ति की भूमि सामान्य वर्ग के व्यक्ति को बेचान के आरोप हैं.  यह मामला तरूछाया नगर के नजदीक मेन टोंक रोड स्थित 8 हजार 900 वर्गमीटर भूमि का है. यह भूमि तहसील सांगानेर स्थित ग्राम दुर्गापुरा के खसरा नंबर 456,457, 461,462, 463, 683/458,625/460,624/458,626/460,460/1 की है. इस भूमि के पुराने खसरा नंबर 281 से 286 हैं. इस भूमि के 90 ए के लिए मैसर्स हैवन्ली रीयल होम एलएलपी की ओर से जेडीए के जोन 4 में आवेदन लगाया गया था. 

इस भूमि की 90 ए की कार्यवाही पर आपत्ति मांगने के लिए जेडीए के जोन उपायुक्त की ओर से सार्वजनिक सूचना प्रकाशत कराई गई. इस सार्वजनिक सूचना पर अधिवक्ता योगेश कुमार राय की ओर से जेडीए के जोन कार्यालय में आपत्ति दर्ज कराई गई. लेकिन इस आपत्ति को किस तरह से दरकिनार किया जाए, जिसके चलते "सांप भी मर जाए और लाठी भी नहीं टूटे. इसी उद्देश्य से जेडीए के जोन 4 के जिम्मेदार अधिकारी-कर्मचारियों ने कारस्तानी की. आपको इनकी इस कारगुजारी के बारे में विस्तृत तौर पर बताएं, उससे पहले आपको यह बताते हैं कि आखिर इस आपत्ति में ऐसा क्या था, जो जेडीए के जोन के कार्मिकों को यह करना पड़ा.

आखिर इस आपत्ति में ऐसा क्या था?
-इस आपत्ति में यह कहा गया था कि यह भूमि पहले राजस्व रिकॉर्ड में अनुसूचित जाति के व्यक्ति नानगराम बलाई के नाम दर्ज थी
-नानगराम के पुत्र पूरण ने 20 अगस्त 1967 को जोधपुर स्थित चर्च में ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया
-इसके 11 दिन बाद ही 1 सितंबर 1967 को भूमि का नामांतरण पूरण साइमन पुत्र नानगराम कौम ईसाई के पक्ष में खोल दिया
-यह नामांतरण तहसीलदार के स्तर पर कर लिया गया
-नामांतरण के दूसरे दिन 2 सितंबर 1967 को यह भूमि सामान्य वर्ग के व्यक्ति को बेच दी गई
-इस आपत्ति में आरोप लगाया गया है कि धर्म परिवर्तन की आड़ लेकर अनुसूचित जाति के व्यक्ति की भूमि का बेचान सामान्य वर्ग के व्यक्ति को किया गया

करोड़ों रुपए बाजार भाव की भूमि से जुड़े इस मामले में पूर्व पार्षद विनीत सांखला ने भी जेडीए और जिला प्रशासन में शिकायत दर्ज कराई थी. उनका आरोप है कि
जिस खातेदार पूरण को ईसाई बताकर जमीन बेची गई. वह पूरण और उसका परिवार आज भी खुद को बलाई जाति का ही बताता है. उन्होंने कहा कि वर्ष 1995 में बने राशन कार्ड में परिवार के मुखिया के नाम पर "पूरण बलाई" अंकित है.

पूर्व पार्षद विनीत सांखला का यह भी दावा है कि खातेदार पूरण के पुत्र भगवान सहाय का अनुसूचित जाति का होने का प्रमाण पत्र भी है. यह जाति प्रमाण पत्र उपखंड अधिकारी सांगानेर जयपुर ने 2 अप्रेल 2019 को जारी किया था. इस जाति प्रमाण पत्र में भगवान सहाय की जाति बलाई बताई गई है.

पूर्व पार्षद विनीत सांखला का आरोप है कि इस मामले में वर्ष 1975 में भूमि रूपांतरण अधिकारी ने भी भूमि के बेचान को अमान्य करार दिया था. विनीत सांखला का कहना है कि भूमि रूपांतरण अधिकारी ने कहा था कि ऐसा प्रतीत होता है कि केवल भूमि बेचने के लिए ही धर्म परिवर्तन किया गया है. खातेदार की जाति परिवर्तन कर नामांतरण करने का अधिकार तहसीलदार को नहीं हैं.

राजस्थान भू राजस्व अधिनियम की धारा 90 ए में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार जारी की गई सार्वजनिक सूचना पर प्राप्त आपत्तिकर्ता को पर्याप्त सुनवाई का अवसर देना जरूरी है. इसी बाध्यता के चलते इस मामले में भी जेडीए के जोन 4 की उपायुक्त की ओर से सुनवाई का अवसर देने के लिए आपत्तिकर्ता की पत्र जारी किया गया. इस पूरी प्रक्रिया में आपत्ति को दरकिनार करने के लिए किस तरह जेडीए के जोन के कार्मिकों ने जुगाड़ बैठाया, आपको इसका करते हैं पूरा खुलासा.

कैसे जेडीए के कार्मिकों ने बैठाया जुगाड़?
-जेडीए की जोन उपायुक्त की ओर से 16 सितंबर 2025 को आपत्ति कर्ता को सुनवाई के लिए पत्र जारी किया गया
-इस पत्र में आपत्तिकर्ता को 25 सितंबर 2025 को दोपहर 3 बजे जोन उपायुक्त के समक्ष पेश होने के लिए कहा गया
-मामले के समस्त दस्तावेजों के साथ पेश होने के लिए कहा गया
-पत्र में यह भी कहा गया कि निर्धारित तिथि व समय पर आपत्तिकर्ता उपस्थित नहीं हुए तो
-मामले में कार्यवाही अमल में ला दी जाएगी
-आपत्तिकर्ता को यह पत्र समय पर नहीं मिले,इसके लिए जानबूझकर इस पत्र को उसे भेजा नहीं गया
-फिर औपचारिकता पूरी करने के लिए 17 अक्टूबर 2025 को यह पत्र स्पीड पोस्ट से प्रेषित किया गया
-स्पीड पोस्ट की ट्रेकिंग रिपोर्ट के अनुसार यह पत्र 27 अक्टूबर को शाम 5 बजे आपत्तिकर्ता को प्राप्त हुआ
-जब यह पत्र आपत्तिकर्ता को मिला तब तक उनकी सुनवाई की तिथि महीने भर पहले ही बीत चुकी थी
-ऐसे में जेडीए कार्मिकों के अनुसार पत्र भेजने की औपचारिकता भी हो गई और
-आपत्तिकर्ता तथ्यों और दस्तावेजों के साथ अपनी आपत्ति दर्ज कराने के लिए जेडीए में उपस्थित भी नहीं हो पाया
-जेडीए के जोन के कार्मिकों की इस कारगुजारी से इस बेशकीमती भूमि की 90 ए की कार्यवाही का रास्ता साफ हो गया

इस मामले में 90 ए की कार्यवाही पर आई आपत्ति को दरकिनार करने के लिए जेडीए के जोन अधिकारी-कर्मचारियों ने जो तरकीब लगाई वह कई सवाल खड़े करती है. क्या वाकई आपत्ति में लगाए गए आरोप सही हैं? तथ्यों और दस्तावेजों के साथ अगर आपत्ति दर्ज होती  तो क्या 90 ए की कार्यवाही निरस्त करनी पड़ती. खैर जो भी हो जानकारों के अनुसार ऐसे और भी मामले हैं जिनमें धर्म परिवर्तन की आड़ में अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों की भूमि बेचने के आरोप है. अगर इन आरोपों की जांच कराई जाए तो तस्वीर साफ हो जाएगी.