जयपुरः राजस्थान में आगामी दिनों में विधानसभा के उप चुनाव होने है. इन चुनावों में तीन चेहरे बेहद अहम रहने वाले है. जो मुख्य दलों के बूते नही बल्कि अपने बलबूते चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर सकतें है. ये तीन चेहरे है भारतीय आदिवासी पार्टी के सांसद राजकुमार रोत, नागौर से संसद सदस्य और RLP प्रमुख हनुमान बेनीवाल और पूर्व मंत्री राजेन्द्र सिंह गुढ़ा.
डूंगरपुर जिले की चौरासी,टोंक जिले की देवली उनियारा,दौसा जिले की दौसा,नागौर जिले की खींवसर और झुंझुनूं जिले की झुंझुनूं विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है. इन सभी जगह के विधायक अब संसद सदस्य की शपथ ले चुके है. वही सलूंबर विधायक अमृत लाल मीना और रामगढ़ विधायक जुबेर खान के निधन के कारण इन सीटों पर विधानसभा के उप चुनाव होंगे. कुल मिलाकर सात जगह उप चुनाव होंगे. मगर सबसे अहम है वो तीन सियासी चेहरे जो चार सीटों को सीधे तौर पर प्रभावित करेंगे. आइए एक एक करके उन चेहरों को आपके बारे में बताते है. पहले बात राजकुमार रोत की जो सीधे तौर पर सलूंबर और चौरासी को प्रभावित करेंगे. विधानसभा के युवा विधायक रह चुके राजकुमार रोत को लोकसभा चुनावों में रोकने के लिए बीजेपी ने कांग्रेस से तोड़कर महेंद्रजीत मालवीय को टिकट दिया था लेकिन बीजेपी का प्रयोग असफल रहा
---BAP सांसद राजकुमार रोत --
चौरासी से दो बार विधायक रह चुके
अब डूंगरपुर बांसवाड़ा से लोकसभा सांसद
बीटीपी के बाद भारतीय आदिवासी पार्टी को बड़ी क्षेत्रीय पार्टी बना दिया
BAP के टारगेट पर चौरासी तो है ही
अब सलूंबर की सीट पर भी उम्मीदवार उतारेंगे
सलूंबर में BAP ने पिछले विधानसभा चुनाव में करीब 25फीसदी वोट लिए थे
BAP के जीतेश कुमार मीना ने 51हजार 691वोट प्राप्त किए थे
अर्थ साफ है चौरासी और सलूंबर दोनों जगह BAP और रोत बीजेपी -कांग्रेस के लिए चुनौती बनेंगे
अब बात करते है नागौर सांसद और खींवसर से विधायक रह चुके हनुमान बेनीवाल की. खींवसर सीट पर हनुमान बेनीवाल और उनके परिवार का 2008 से प्रभाव है. बीजेपी की टिकट पर हनुमान बेनीवाल ने यहां से 2008 में चुनाव जीता था. उसके बाद वो निर्दलीय जीते और फिर RLP के टिकट पर. फिर भाई नारायण बेनीवाल को विधायक बनकर खुद सांसद बन गए. इस बार इंडिया एलायंस के सहारे हनुमान बेनीवाल ने ज्योति मिर्धा का हरा दिया और नागौर के सांसद बन गए.
-- RLP सांसद हनुमान बेनवाल --
परिसीमन के बाद खींवसर सीट का निर्माण
तभी से बेनीवाल परिवार को मिल रही चुनावी विजय
कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने टक्कर दी मगर अभी विजय से दूर
बीजेपी प्रत्याशी रेवंत डांगा ने 2023 के चुनाव में बेनीवाल को कड़ी चुनौती जरूर दी
मगर नजदीकी मुकाबले में डांगा मात्र दो हजार वोटों से चुनाव हार गए
बीजेपी फिर खेल सकती है रेवंत राम डागा पर चुनावी दांव
हनुमान बेनीवाल ने नागौर से दुबारा सांसद बनकर ताकत दिखा दी
कड़े मुकाबले में ज्योति मिर्धा को करीब 42हजार वोटों से चुनाव हार गए
इस बार वो अपनी पत्नी कनिका बेनीवाल को चुनावी समर में उतार सकते है
ऐसे में बीजेपी संभवत: ज्योति मिर्धा पर दांव खेल दे
हनुमान बेनीवाल अब बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए चुनौती
कांग्रेस और RLP के बीच एलायंस को लेकर तस्वीर साफ नहीं
उदयपुर वाटी से विधानसभा उप चुनाव हारने के बाद
राजेंद्र सिंह गुढ़ा की नजर अब झुंझुनू विधानसभा सीट पर है. इसके पीछे का कारण झुंझुनू में 23% मुस्लिम वोटर्स है. इसी आंकड़े को ध्यान में रखते हुए अब राजेंद्र सिंह गुढ़ा शिवसेना शिंदे की पार्टी छोड़कर ओवैसी का दमन थाम सकते है. जबकि उदयपुर वाटी से शिवसेना शिंदे पार्टी से चुनाव लड़ा था.. एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी से उनकी पुरानी दोस्ती है. राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने साल 2008 और 2018 में दो बार बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन दोनों ही बार गुढ़ा जीत के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए. इसके बाद गहलोत सरकार ने उन्हें स्वतंत्र प्रभार देते हुए राज्यमंत्री बनाया, लेकिन अपनी ही सरकार को भ्रष्टाचार के मुद्दे या कहे लाल डायरी पर घेरने के बाद उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया. गुढ़ा पाला बदलने में माहिर रहे है.
---- राजेंद्र सिंह गुढ़ा ---
राजेंद्र सिंह गुढ़ा शेखावाटी के मजबूत राजपूत क्षत्रप है
लाल डायरी प्रकरण उठाकर उन्होंने राज्य में बीजेपी का सत्ता मार्ग का रास्ता तैयार किया
हालांकि खुद उदयपुर वाटी से चुनाव हार गए और बीजेपी भी उनके कारण हार गई
अब झुंझुनूं से ओला परिवार की बादशाहत को चुनौती देना चाहते है
राजेंद्र सिंह गुढ़ा सबसे पहले तब चर्चा में आए थे जब उन्होंने अपने भाई रणवीर सिंह गुढ़ा को RU छात्र संघ का अध्यक्ष बनवाया
बाद भाई को उदयपुर वाटी से विधायक बनने में साथ दिया
फिर खुद सियासत में कूदे और बीएसपी से सांसद बने
दो बार गहलोत सरकार बनाने में राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने बड़ी मदद की
बीएसपी के जीते विधायको को कांग्रेस में वो ही लेकर गए थे
सत्ताधारी दल बीजेपी और कांग्रेस के लिए तीन चेहरों से निजात पाना आसान काम नही है. मुकम्मल रणनीति के सहारे ही मुख्य दल इन तीन चेहरों से मुकाबला कर पाएंगे. जातीय और क्षेत्रीय राजनीति के सहारे तीनों चेहरों ने मुख्य दलों को परेशानी में डाला है. दो लोकसभा तो हथिया ही ली.