जयपुर: हिंदू धर्म में हर तीज-त्योहार का काफी महत्व होता है. वहीं श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज मनाई जाती है. हरियाली तीज का व्रत करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. इस पर्व को नाग पंचमी से दो तिथि पूर्व मनाया जाता है. ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि हरियाली तीज 19 अगस्त को मनाई जाएगी. हरियाली तीज के दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और माता पार्वती के साथ गणेश जी और भगवान शिव की पूजा करती हैं.
सनातन धर्म में हर त्योहार का अपना एक विशेष महत्व हैं. इन्हीं त्योहारों में से एक है हरियाली तीज है, जो देशभर में मनाई जाती हैं. हरियाली तीज को श्रावणी तीज के नाम से भी जाना जाता हैं. हरियाली तीज सावन मास का सबसे महत्वपूर्ण पर्व हैं. महिलाएं इस दिन का पूरे वर्ष इंतजार करती हैं. हरियाली तीज सौंदर्य और प्रेम का पर्व हैं. यह उत्सव भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता हैं. यह पर्व प्रकृति से जुड़ने का पर्व हैं. हरियाली तीज का जब पर्व आता है तो हर तरफ हरियाली छा जाती हैं. पेड़ पौधे उजले उजले नजर आने लगते हैं. हरियाली तीज का पर्व श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता हैं. हरियाली तीज या श्रावणी तीज, श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को कहते हैं.
ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 18 अगस्त शुक्रवार रात 8:01 मिनट से शुरू हो रही है और 19 अगस्त शनिवार रात 10:19 मिनट पर समाप्त होगी. जिससे हरियाली तीज 19 अगस्त को मनाई जाएगी.
शुभ मुहूर्त:
ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हरियाली तीज की पूजा के लिए 3 शुभ मुहूर्त के योग बन रहे हैं. इस दिन आप सुबह 07:30 मिनट से 09:08 मिनट तक पूजा कर सकते हैं. इसके बाद आप दोपहर 12:25 मिनट से शाम 05:19 मिनट कर शुभ मुहूर्त में पूजा कर सकते हैं.
सुहागन स्त्रियां रखती हैं व्रत:
कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि हरियाली तीज पर सुहागन स्त्रियां पति की लंबी आयु और सुख समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं. महिलाएं इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की उपासना करती हैं. इस दिन सुहागिन महिलाएं सोलह शृंगार करती हैं. हाथों में मेहंदी लगाती हैं, सावन मास के गीत गाती हैं. महिलाएं हरियाली तीज को एक उत्सव के तौर पर मनाती हैं.
माता पार्वती की आराधना इन मंत्रों से करनी चाहिए:
ऊं उमायै नम:, ऊं पार्वत्यै नम:, ऊं जगद्धात्र्यै नम:, ऊं जगत्प्रतिष्ठयै नम:, ऊं शांतिरूपिण्यै नम:, ऊं शिवायै नम:
भगवान शिव की आराधना इन मंत्रों से करनी चाहिए:
भविष्यवक्ता डॉ अनीष व्यास ने बताया कि ऊं हराय नम:, ऊं महेश्वराय नम:, ऊं शम्भवे नम:, ऊं शूलपाणये नम:, ऊं पिनाकवृषे नम:, ऊं शिवाय नम:, ऊं पशुपतये नम:, ऊं महादेवाय नम:
पूजन विधि:
कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि तीज के दिन महिलाएं ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करती हैं. साफ सुथरे कपड़े पहने के बाद भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेती हैं. इस दिन बालू के भगवान शंकर व माता पार्वती की मूर्ति बनाकर पूजन किया जाता है और एक चौकी पर शुद्ध मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग, रिद्धि-सिद्धि सहित गणेश, पार्वती एवं उनकी सहेली की प्रतिमा बनाई जाती है. माता को श्रृंगार का समाना अर्पित करें. इसके बाद भगवान शिव, माता पार्वती का आवाह्न करें. माता-पार्वती, शिव जी और उनके साथ गणेश जी की पूजा करें. शिव जी को वस्त्र अर्पित करें और हरियाली तीज की कथा सुनें. उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये’ मंत्र का जाप भी कर सकती हैं. ध्यान रहें कि प्रतिमा बनाते समय भगवान का स्मरण करते रहें और पूजा करते रहें. पूजन-पाठ के बाद महिलाएं रात भर भजन-कीर्तन करती है और हर प्रहर को इनकी पूजा करते हुए बिल्व-पत्र, आम के पत्ते, चंपक के पत्ते एवं केवड़ा अर्पण करने चाहिए और आरती करनी चाहिए. साथ में इन मंत्रों बोलना चाहिए.
ऐसे मिला था देवी पार्वती को तप का फल:
भविष्यवक्ता डॉ अनीष व्यास ने बताया कि भोलेनाथ कहते हैं कि हे पार्वती! इस शुक्ल पक्ष की तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था. उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका. इस व्रत का महत्व यह है कि इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मैं मन वांछित फल देता हूं. भोलेनाथ ने पार्वती जी से कहा कि जो भी स्त्री इस व्रत को पूरी श्रद्धा और निष्ठा से करेगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग की प्राप्ति होगी. मान्यता है कि इस कथा को जो भी स्त्री पढ़ती या सुनती है वहअखंड सौभाग्यवती होती है.
हरियाली तीज व्रत कथा:
कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि हरियाली तीज उत्सव को भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था. इस कड़ी तपस्या से माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया. कथा के अनुसार माता गौरी ने पार्वती के रूप में हिमालय के घर पुनर्जन्म लिया था. माता पार्वती बचपन से ही शिव को वर के रूप में पाना चाहती थीं. इसके लिए उन्होंने कठोर तप किया. एक दिन नारद जी पहुंचे और हिमालय से कहा कि पार्वती के तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उनसे विवाह करना चाहते हैं. यह सुन हिमालय बहुत प्रसन्न हुए. दूसरी ओर नारद मुनि विष्णुजी के पास पहुंच गये और कहा कि हिमालय ने अपनी पुत्री पार्वती का विवाह आपसे कराने का निश्चय किया है. इस पर विष्णुजी ने भी सहमति दे दी.
नारद इसके बाद माता पार्वती के पास पहुंच गए और बताया कि पिता हिमालय ने उनका विवाह विष्णु से तय कर दिया है. यह सुन पार्वती बहुत निराश हुईं और पिता से नजरें बचाकर सखियों के साथ एक एकांत स्थान पर चली गईं. घने और सुनसान जंगल में पहुंचकर माता पार्वती ने एक बार फिर तप शुरू किया. उन्होंने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और उपवास करते हुए पूजन शुरू किया. भगवान शिव इस तप से प्रसन्न हुए और मनोकामना पूरी करने का वचन दिया. इस बीच माता पार्वती के पिता पर्वतराज हिमालय भी वहां पहुंच गये. वह सत्य बात जानकर माता पार्वती की शादी भगवान शिव से कराने के लिए राजी हो गये. शिव इस कथा में बताते हैं कि बाद में विधि-विधान के साथ उनका पार्वती के साथ विवाह हुआ. शिव कहते हैं, ‘हे पार्वती! तुमने जो कठोर व्रत किया था उसी के फलस्वरूप हमारा विवाह हो सका. इस व्रत को निष्ठा से करने वाली स्त्री को मैं मनवांछित फल देता हूं.