VIDEO: ज़िंदा होने के देने पड़ रहे सबूत ! लालफीताशाही में उलझी जिंदगी, सुलझाए कौन, देखिए ये खास रिपोर्ट

बीकानेर: क्या कोई मरा हुआ इंसान भी जिन्दा हो सकता है. यह सुनकर शायद आपको किसी फिल्म का कोई सीन याद आ जाए लेकिन बीकानेर में तीन साल पहले मरा व्यक्ति जिन्दा हो गया है और खुद घूम-घूम कर कह भी रहा है कि मैं जिन्दा हूं लेकिन कोई भी मानने को तैयार नहीं है. हांलाकि इस मरने और जिन्दा होने के बीच के सफर से वह खासा परेशान भी है. 

मामला बीकानेर के गैर सरियों का मौहल्ला का है. जहां का निवासी 45 वर्षीय मकसूद इलाही पिछले 3 सालों से खुद को जिन्दा साबित करने की जुगत में सरकारी दफ्तरों के धक्के खा रहा है. गलती बीकानेर संभाग के सबसे बड़े अस्पताल पीबीएम से हुई है जिसकी वह सजा भुगत रहा है. हुआ यूं कि करीब 3 साल पहले मकसूद के पिता मकबूल इलाही का पीबीएम अस्पताल में इलाज के दौरान इंतकाल हो गया था जिसके बाद अस्पताल प्रशासन ने मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किया. इस दौरान अस्पताल प्रशासन की लापरवाही के चलते हुई गफलत में पिता मकबूल इलाही के साथ-साथ पुत्र मकसूद इलाही को भी मरा हुआ घोषित कर उसी तारीख का मृत्यु प्रमाण बना दिया गया. एक साल पहले जब मकसूद इलाही ई केवाईसी के लिए ई मित्र पर पहुंचा तो खुलासा हुआ कि वह तो 2 साल पहले ही मर चुका है. 

उसके बाद से लगातार मकसूद खुद को जिन्दा साबित करने के लिए कभी पीबीएम तो कभी नगर निगम के दफ्तर के चक्कर काटने को मजबूर है. और तो और मसकूद की पत्नी की विधवा पेंशन भी शुरु कर दी गई और सरकार की ओर से मुफ्त मोबाइल के लिए भी पात्र बनाया गया है. मकसूद ने जिला कलक्टर, एसपी से लेकर जयपुर तक अपनी पुकार पहुंचाई लेकिन अब तक जिन्दा नहीं हो सका. 

पिछले एक साल से जिन्दा होते हुए भी मरने का दर्द झेल रहे मकसूद को ना तो सरकारी सुविधाओं का लाभ मिल रहा है और ना ही अपनों में सम्मान. लापरवाह सरकारी सिस्टम का दंश झेल रहे मकसूद अब परेशान रहने लगे हैं. करीब एक साल से जिन्दा होकर भी मरे हुए की जिन्दगी जी रहा मकसूद परेशान होकर बीकानेर के पूर्व महापौर मकसूद अहमद को अपनी आप बीती सुनाई. पूर्व महापौर ने इसे पीबीएम अस्पताल की बड़ी गलती बताते हुए जिम्मेदारों पर कार्रवाई की मांग की है और पीड़ित मकसूद को जल्द से जल्द इंसाफ मिलने की दरकार की बात की है. 

हांलाकि मामला नया नहीं है. आए दिन ऐसी सरकारी तंत्र की लापरवाही लगातार सामने आती रहती हैं. जिसका खामियाजा आम जनता को ही भुगतना पड़ता है. क्या जिम्मेदारों पर ठोस कार्रवाई कर एक मिसाल पेश नहीं की जानी चाहिए जिससे कोई दूसरा मकसूद जिन्दा होकर भी नहीं मरे. अब देखने वाली बात होगी कि सरकारी कारिंदों की लापरवाही की भेंट चढ़ी मकसूद इलाही की सांस लेती जिन्दगी कब कागज पर खुद को जिन्दा साबित करती है