चुनावी साल में कांग्रेस ने किसान वोट बैंक पर गढ़ाई नजरे. जानिए राजस्थान की किसान आधारित राजनीति का पूरा इतिहास

चुनावी साल में कांग्रेस ने किसान वोट बैंक पर गढ़ाई नजरे. जानिए राजस्थान की किसान आधारित राजनीति का पूरा इतिहास

जयपुर: चुनावी साल में कांग्रेस ने किसान वोट बैंक पर नजरे गढ़ा दी है. बीकानेर के जसरासर से इसकी शुरुआत की गई है. पूर्व नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी ने किसान सम्मेलन आयोजित किया. सीएम अशोक गहलोत, कांग्रेस प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा और पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा ने किसान कौम के बीच शंखनाद कर दिया. सम्मेलन के जरिए बीकाणा से लेकर मारवाड़ तक संदेश दिया गया. उल्लेखनीय है कि गहलोत सरकार की पहली सालगिरह 'किसान शक्ति' के साथ मनाई गई थी.

राजस्थान की राजनीति किसान आधारित रही है. 200 विधानसभा सीटों में से तकरीबन सवा सौ सीटें ऐसी मानी जाती है जहां हार और जीत का फैसला किसान करते है. यहीं कारण है विधानसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी ने किसान कर्ज माफी का ऐलान किया था. तीन राज्यों में सरकार बनी थी राजस्थान, एमपी और छत्तीसगढ़ में.. सरकार बनते ही किसान कर्ज माफी की घोषणा को पूरा किया. राजस्थान के तीसरी बार मुख्यमंत्री बनते ही अशोक गहलोत ने तुरंत घोषणा की और किसान कर्जमाफी कर दी. यहीं कारण है कि वर्षगांठ पर फिर उसी वोट बैंक को साधा गया जिसे चुनाव से पहले साधा गया था. हाल ही पेश बजट में किसान को फिर साधा गया था खासतौर से एग्रीकल्चर बिजली में. बीकानेर के नोखा के जसरासर से कांग्रेस ने किसानों के बीच हुंकार भरी. सीएम अशोक गहलोत, प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा और पीसीसी चीफ डोटासरा ने किसान के बीच कांग्रेस की नीतियों की बात की और कांग्रेस को किसानों का सच्चा हमदर्द बताया. किसान रैली के आयोजक और पूर्व नेता प्रतिपक्ष, जाट नेता रामेश्वर डूडी ने किसान रैली के जरिए सकती प्रदर्शन किया.

अब बात कांग्रेस और किसान बीच के स्वर्णिम सियासी इतिहास की. जब भरी जाती थी जमींदारी प्रथा के खिलाफ हुंकार. तब कांग्रेस की कोख से जन्म किसान नेताओं ने सामंती-जागीरदारी प्रथा के खिलाफ अलख जाई और किसान आंदोलन का सूत्रपात किया. कांग्रेस में किसान वर्ग से जुड़े नेताओं का इतिहास रहा है. कई प्रमुख दिग्गज जाट नेता प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके. सरदार हरलाल सिंह सबसे प्रखर अध्यक्ष साबित हुये और कांग्रेस को मजबूत बनाने का काम किया. उनका ताल्लुक शेखावाटी से रहा.

प्रखर किसान नेता नाथूराम मिर्धा ने दो बार पीसीसी चीफ का पद संभाला:
देश के प्रखर किसान नेता नाथूराम मिर्धा ने दो बार पीसीसी चीफ का पद संभाला. एक बार तो उन्हें चुनाव हारने के बाद पीसीसी का चीफ बनाया गया. मिर्धा परिवार के ही रामनिवास मिर्धा ने देश की सियासत में राजस्थान का मान बढ़ाया, राज्यसभा उप सभापति, विधानसभा अध्यक्ष समेत केंद्रीय मंत्री पदों पर रहे. मिर्धा परिवार के कारण ही नागौर बना जाट या किसान पॉलिटिक्स का पॉवर सेंटर. शेखावाटी के रामनारायण चौधरी ने भी प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष संभाला, वे विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे. कद्दावर किसान नेता और मारवाड़ की धरती से ही निकले परसराम मदेरणा भी प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे. मदेरणा के समय किसान पॉलिटिक्स को पोषण मिला. मदेरणा ने विधानसभा अध्यक्ष का पद संभाला. अनुशासन पसंद मदेरणा ने कांग्रेस राजनीति को दिशा दी.

शेखावाटी के सबसे कद्दावर नेताओं में शीश राम ओला का नाम अग्रणी रहा:
शेखावाटी के नारायण सिंह पीसीसी चीफ रहे, ईमानदार राजनेता और खांटी छवि की पूरे सीकर संभाग में पहचान रही. मौजूदा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के गुरु भी कहे जाते है नारायण सिंह. शेखावाटी के डॉ चंद्रभान ने भी बतौर पीसीसी अध्यक्ष का कार्यभार संभाला. शेखावाटी के सबसे कद्दावर नेताओं में शीश राम ओला का नाम अग्रणी रहा, ओला केंद्र में मंत्री समेत विभिन्न पदों पर रहे. आज वो नही है लेकिन झुंझुनूं में ओला परिवार की धाक बरकरार है. शेखावाटी की सियासत से निकल कर डॉ हरी सिंह की ख्याति देश भर में रही. राजस्थान में जाट समाज को आरक्षण दिलाने में इनका योगदान रहा. सरदार हरलाल सिंह, नाथूराम मिर्धा और परसराम मदेरणा ये वो चर्चित जाट अथवा किसान नेता रहे जो पीसीसी अध्यक्ष के तौर पर खासे पॉवरफुल साबित हुये. यूं कह सकते है कि सिद्धांतवादी पॉलिटिक्स इन्होंने की.

प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के पद को संभालने का अवसर 6 जाट नेताओं को मिल चुका:
1948 से लेकर अब तक प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के पद को संभालने का अवसर 6 जाट नेताओं को मिल चुका है. पूर्वीराजस्थान के भरतपुर को जाट रियासत के कारण जाना जाता. पूर्व महाराजा विश्वेंद्र सिंह आज गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री है. 40 से 50 के दशक के बीच जमींदारी प्रथा के खिलाफ राजस्थान में किसान आंदोलन का बिगुल बज गया था. मारवाड़ से लेकर शेखावाटी तक हर ओर सामंती-जागीरदारी प्रथा के खिलाफ किसान आंदोलन ने हिंलौरे लेना शुरु कर दिया था. देश को आजादी मिली तो आंदोलन को और धार मिल गई. उस समय देश की सबसे बडी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस का भी आंदोलन के प्रति समर्थन आ गया. आगे चलकर 1952 के चुनावों मे किसान आंदोलन के प्रणेता कांग्रेस के साथ खड़े हो गये तो राजे-रजवाड़ों से निकले नेताओं ने अलग पार्टी का गठन कर लिया.

किसान नेता आगे चलकर कांग्रेस पार्टी की बैक बॉन साबित हुये:
किसान नेता आगे चलकर कांग्रेस पार्टी की बैक बॉन साबित हुये. इनमें सबसे प्रखर नाम रहा चौधरी बलदेव राम मिर्धा का. किसान आंदोलन को ख्याति दिलाने में बलदेव राम मिर्धा का योगदान रहा. धीरे-धीरे किसान और कांग्रेस की राशि साथ-साथ दिखने लग गई. सरदार हरलाल सिंह, नाथूराम मिर्धा, कुंभाराम आर्य, दौलतराम सारण, शीशराम ओला, रामनारायण चौधरी, रामदेव सिंह महरिया, नारायण सिंह, शीशराम ओला, डॉ हरी सिंह सरीखे दिग्गज नेताओं ने किसानों के बीच सामाजिक औऱ राजनीतिक चेतना की अलख जगाई. इन नेताओं का कांग्रेस पार्टी से जुड़ाव रहा. हरियाणा के किसान नेता सर छोटूराम के विचारों का राजस्थान की किसान राजनीति पर असर दिखा.

किसान नेताओं ने कांग्रेस को भी परवान चढ़ाने का काम किया:
सियासत में किसान नेताओं ने कांग्रेस को भी परवान चढ़ाने का काम किया भले ही क्षेत्र कोई भी रहा. किसान नेता मिर्धा परिवार का सियासी गढ़ नागौर रहा. शेखावाटी का झुंझुनूं क्षेत्र ओला परिवार की सियासी जमीन के तौर पर कांग्रेस का गढ़ रहा है. झुंझुनूं के गुढ़ा गौड़जी के गिलों की ढ़ाणी की झौंपड़ी में रहने वाले शिवनाथ सिंह गिल ने बिरला परिवार को चुनाव हराकर यह जता दिया था कि क्यों राजस्थान को किसान पॉलिटिक्स का केन्द्र कहा जाता है. देश के प्रखर किसान नेता औऱ पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल ने हरियाणा से आकर शेखावाटी की धरती से चुनाव लड़ा. बलराम जाखड़ भी यहां चुनाव लड़ने के लिये आये थे. राजस्थान की सियासत में किसान हमेशा से ही पॉवर सेंटर रहे हैं.