उदयपुर: उदयपुर जिले की अगर जावर माता शक्तिपीठ की अगर बात करें तो माताजी करोडों टन चांदी की खजाने पर बैठी है. या यूं कह सकते है उदयपुर जिले की सबसे बड़ी धनाढ्य देवी है. जहां माताजी के नीचे प्रतिदन चांदी व जस्ते का खनन जावरमाला, बोरिया,मोचिया,बलारिया समेत कई खदानों में होता है. यहां जेवर चढ़ाने की परंपरा से पहले जेवर फिर जावर माता हुई है. यही नहीं पुराना जावर शहर भी था तो जावर माता नाम पड़ा.
उदयपुर से महज 45 किलोमीटर की दुरी पर स्थित जावर माता का स्थान है. शिलालेख से जावर माता का इतिहास 1000 वर्ष से अधिक पुराना है. कहा जाता है कि माताजी को सच्ची श्रद्धा से कोई भी मन्नत मांगो तो माता सहज स्वीकार कर उसकी मुराद पूरी कर देती है. टीड़ी नदी के समीपवर्ती बने शक्तिपीठ और सालभर भक्तों की रेलमपेल रहती है . जबकि रविवार को भक्तों का सैलाब रहता है.
- जावर माता जी का एक हजार वर्ष पुराना है इतिहास
दरअसल माताजी का इतिहास तो हजार वर्ष पुराना है.माताजी का मन्दिर का निर्माण कब हुआ ये आज तक किसी को पता नही है.कहा जाता है कि मेवाड़ के राज घराने का जावर माता जी से अहम रिश्ता था. वे 600 वर्ष पूर्व से इसकी पूजा अर्चना करते थे,और युद्ध के समय बहन को याद करते तो माँ शक्ति रूप बन सहयोग करती थी.उसके बाद यहां पर ब्राह्मण को पूजा अर्चना दे दी जिसके बाद ब्राह्मण समाज पूजा अर्चना करता आ रहा है जो आज तक अनवरत जारी है.जावर माता का नाम जावर माता क्यों पड़ा?जिसके अलग अलग प्रमाण है.
-जावर की खदानों से निकलती है चांदी
यहां पर कई दन्त कथाओ में माताजी का अलग अलग नामो से जाना जाता है. जावर की खदानों से चांदी निकलती है, जिससे जेवर बनाये जाते है.उन्ही जेवरों को माताजी के चढ़ावा चढ़ाया जाता था. जेवर चढ़ाने की परंपरा को जेवर और बाद में जावर माता नाम पड़ा. यहां नेजा लूटने की परंपरा भारत भर में नही देखने को मिलती है.नवरात्रि में नो दिन होते है अनुष्ठान:यहां शारदीय व चैत्र नवरात्री में नो दिनों तक माताजी की नवचंडी यज्ञ और हवन होता है जावर माइंस की समस्त खदानों की तरफ से माताजी की अलग अलग पूजापाठ होते है.