जयपुर: ध्वनि प्रदूषण के चलते कुछ वर्ष पूर्व तक शांत, संयत और सहज रहने वाली राजधानी जयपुर का मिजाज अब बदलने लगा है. अब गुलाबी नगर के मिजाज में बहरापन, चिड़चिड़ाहट और आक्रामकता आ गई है. आई आपको आज इसके कारण और प्रभावों के बारे में बताते हैं कि क्यों राजधानी में शोर बढ़ता जा रहा है और स्वभाव बदलता जा रहा है.
राजधानी जयपुर में ध्वनी प्रदूषण के हालात (डेसीबल में)
स्थान जोन दिन रात्रि
गवर्नर हाउस साइलेंस जोन 68.6 61.6
दुर्लभ जी साइलेंस जोन 66.3 62.9
मानसरोवर आवासीय 59 62
शास्त्री नगर आवासीय 75.5 72.7
राजापार्क वाणिज्यिक 59.9 63
छोटी चौपड़ वाणिज्यिक 72.9 75.4
वीकेआई नॉर्थ औद्योगिक 64.4 64.5
सीतापुरा औद्योगिक 64.5 66.4
* दिन (सुबह 6 से रात्रि 10 बजे)
* रात्रि (रात्रि 10 से सुबह 6 बजे)
- साइलेंस जोन में ध्वनी प्रदूषण का मानक दिन में 50 और रात्रि में 40 डेसीबल
- आवासीय जोन में दिन में 55 और रात्रि में 45 डेसीबल
- वाणिज्यिक जोन में दिन में 65 और रात्रि में 55 डेसीबल
- औद्योगिक जोन में दिन में 75 और रात्रि में 70 डेसीबल
दरअसल प्रदूषण नियंत्रण मंडल के आंकड़े हमें ऐसी कड़वी सच्चाई बताने जा रहे हैं जिसे अभी हम गंभीरता से नहीं ले रहे लेकिन आने वाले दिनों में ये हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को रोग्रस्त करने में सबसे बड़े कारण बनने जा रहे हैं. दरअसल राजधानी जयपुर में ध्वनि प्रदूषण की स्थिति के लिए प्रदूषण मंडल ने जयपुर में चार श्रेणियों में आठ जोन बना रखे हैं. साइलेंस जोन में गवर्नर हाउस और दुर्लभ जी अस्पताल वाला क्षेत्र आता है. यहां ध्वनि की आदर्श स्थिति दिन में 50 डेसीबल और रात्रि में 40 डेसीबल होनी चाहिए इसके विपरीत यहां दिन में 68 डेसीबल से ज्यादा औश्र रात में 61 डेसीबल से ज्यादा है. इसी तरह आवासीय क्षेत्र में मानक दिन में 55 और रात्रि में 45 डेसीबल होने चाहिए.
इस श्रेणी में आने वाले मानसरोवर में दिन में 59 जबकि रात्रि में तो और ज्यादा 62 डेसीबल है. यात्री मानसरोवर में आवासीय क्षेत्र होने के बाद भी रात्रि में शोरगुल वाली गतिविधि ज्यादा हो रही हैं जो चिंताजनक हैं. शास्त्री नगर में दिन में शोर 75 से ज्यादा और रात्रि में लगभग 73 डेसीबल है. राजापार्क और छोटी चौपड़ को वाणिज्यिक क्षेत्र माना गया है यहां भी ध्वनि प्रदूषण मानकों से ज्यादा है. एक आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि औद्योगिक क्षेत्र में दिन में 75 और रात्रि में 70 डेसीबल मानक माने गए हैं. इसके विपरीत जयपुर के औद्योगिक क्षेत्र वीकेआई औश्र सीतापुरा में ध्वनि का स्तर मानकों से भी कम है.
ध्वनि प्रदूषण के कई प्रभाव
मानसिक स्वास्थ्य
ध्वनि प्रदूषण से तनाव बढ़ता है, चिड़चिड़ापन होता है, और चिंता और मानसिक थकान महसूस होती है. इससे नींद में खलल पड़ता है, जिससे दिन के दौरान काम करने में दिक्कत होती है.
शारीरिक स्वास्थ्य
ध्वनि प्रदूषण से श्वसन संबंधी उत्तेजना होती है, नाड़ी तेज़ होती है, और रक्तचाप बढ़ जाता है. इससे सिरदर्द होता है, और ज़्यादा तेज़ और लगातार शोर की वजह से गैस्ट्राइटिस, कोलाइटिस, और दिल का दौरा भी पड़ सकता है. 85 डेसिबल या उससे ज़्यादा तेज़ आवाज़ से कान खराब हो सकते हैं.
सुनने की क्षमता
ध्वनि प्रदूषण से सुनने की क्षमता में कमी आती है. ज़्यादा शोर की वजह से लोगों को अपनी आवाज़ सुनाने के लिए ज़ोर से चिल्लाना या दबाना पड़ सकता है, जिससे वोकल कॉर्ड की समस्या हो सकती है.
पर्यावरण
ध्वनि प्रदूषण का असर सिर्फ़ इंसानों तक ही नहीं, बल्कि पशुओं और समग्र पर्यावरण पर भी पड़ता है. वन्यजीवों के बीच अशांति पैदा हो सकती है, जिससे मेटिंग कॉल और ब्रीडिंग पैटर्न में गड़बड़ी हो सकती है
राजधानी में बढ़ता शोर चिंताजनक है. जरूरत इस बात की है कि ध्वनि प्रदूषण को कम किया जाए ताकि जयपुर वासियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर रखा जा सके. जल्द ही इस दिशा में कारगर उपाय नहीं हुए तो इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है.