अब "आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस" से होगी सिलिकोसिस की पहचान ! महुआ-दौसा में करोड़ों के भ्रष्टाचार के बाद हरकत में सरकारी सिस्टम

जयपुर: प्रदेश में अब सिलिकोसिस मरीजों की पहचान में "आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस" का उपयोग होगा. सिलिकोसिस संदिग्ध मरीज का डिजिटल "एक्सरे" पहले अत्याधुनिक तकनीक "AI" से स्कैन होगा, जिसके रिजल्ट को आधार मानकर ही चिकित्सक अपनी ओपिनियन देगा. इतना ही नहीं सिलिकोसिस प्रमाण पत्र जारी करने की पूरी प्रक्रिया में हर मरीज का बायोमेट्रिक रिकॉर्ड रखा जाएगा. दौसा समेत कुछ जिलों में "सिलिकोसिस" बीमारी के प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया में करोड़ों के करप्शन पर फर्स्ट इंडिया न्यूज के खुलासे के बाद पूरी व्यवस्था में ही बदलाव किया है. आखिर क्या है नई व्यवस्था और कैसे थमने सिलिकोसिस प्रमाण पत्र में दलालों का खेल.

दौसा समेत कुछ जिलों में "सिलिकोसिस" बीमारी के प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया में सामने आए करोड़ों के भष्ट्राचार ने सरकारी सिस्टम को हरकत में ला दिया है. बतौर नोडल चिकित्सा विभाग एवं सामाजिक न्याय अधिकारी विभाग ने इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए पूरी प्रक्रिया को "आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस" बेस्ड कर दिया है....यानी पहले मरीज के डिजिटल एक्सरे को एक्जामिन करके कम्प्यूटर तय करेगा कि वो "सिलिकोसिस" पीड़ित है या नहीं. इसके बाद ही चिकित्सक के पास पूरा रिकार्ड जाएगा. यदि चिकित्सक "AI" की रिपोर्ट से संतुष्ठ नहीं होगा, तो उसे प्रमाण पत्र जारी करते वक्त पूरा कारण बताना होगा. 

अब AI पहचानेगा सिलिकोसिस मरीज !
- फर्स्ट इंडिया की खबर के बाद सरकार ने बदली पूरी प्रक्रिया
- राज-सिलिकोसिस पोर्टल में जोड़ा गया AI बेस्ड चेस्ट x-ray एप्लीकेशन
- सामाजिक न्याय अधिकारी विभाग सचिव डॉ समित शर्मा ने दी जानकारी
- एप्लीकेशन x-ray को deep learning के आधार पर तय मानकों पर करेगा जांच
- AI ओपिनियन से रेडियोलॉजिस्ट को सिलिकोसिस पीड़ित की पहचानने में मिलेगी मदद
- इस तकनीक के माध्यम से रेडियोलॉजिस्ट के कार्य भार में भी आएगी कमी
- साथ ही जो सिलिकोसिस पीड़ित नही हैं,उनकी छटनी करने में भी होगी आसानी
- सिलिकोसिस पीड़ित की जल्द पहचान होने से रोग की गति को रोका जा सकेगा
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क्या है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस:- 
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक तरह की कृत्रिम बौद्धिक क्षमता है
- इसके ज़रिये कंप्यूटर सिस्टम या रोबोटिक सिस्टम तैयार किया जाता है,
- जिसे उन्हीं तर्कों के आधार पर चलाने का प्रयास किया जाता है
- जिसके आधार पर मानव मस्तिष्क काम करता है
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लाखों का अनुदान देख दलाल सक्रिय !
- दौसा में "सिलिकोसिस" प्रमाण पत्र करप्शन से जुड़ी इनसाइड स्टोरी
- दरअसल, सिलिकोसिस नीति 2019 में किया हुआ है प्रावधान
- "सिलिकोसिस" बीमारी होने पर मरीजों को दिए जाते है 3 लाख रुपए
- इसके बाद यदि मरीज की होती है मौत,तो परिवार को दो लाख रुपए
- इसके साथ ही अंतिम संस्कार के लिए 10 हजार रुपए की सहायता
- "सिलिकोसिस" मरीज को 1000 से 1500 रुपए तक पेंशन का भी प्रावधान
- अनुदान का फायदा लेने के लिए कई दलाल सक्रिय, जिन्होंने बोर्ड को किया मैनेज
- और फिर बगैर बीमारी के धडल्ले से बनवा लिए "सिलिकोसिस" प्रमाण पत्र

"सिलिकोसिस" प्रमाण पत्र जारी करने में सामने आया करोड़ों के करप्शन सिर्फ दौसा जिले तक ही सीमित नहीं है. ताजा जानकारी के मुताबिक करौली, पाली, जैसलमेर और सिरोही में भी इस तरह के फर्जीवाड़े के प्रकरण सामने आए है, जिसकी जांच के लिए हाईलेवल कमेटी गठित कर दी गई है. इसके साथ ही आगे से सभी मरीजों का बायोमेट्रिक रजिस्ट्रेशन शुरू करने के लिए भी कवायद की जा रही है.

"सिलिकोसिस" प्रमाण पत्र में हुए करोड़ों के भ्रष्टाचार के बाद भले ही विभाग ने आगे से ऐसी गतिविधियों को रोकने के लिए फुल प्रूफ प्लान बना लिया हो. लेकिन पूर्व में जिन लोगों ने गड़बड़ी करके करोड़ों का भुगतान उठा लिया है, उनसे रिवकरी को लेकर कोई सख्त एक्शन नजर नहीं आ रहा है. ऐसे में अब देखना ये होगा कि इस दिशा में भी आगे क्या कदम उठाए जाते है, ताकि बीमारी की आड़ में भष्ट्राचार करने वालों को सबक मिल सके.