जयपुर: 20 दिन तक चले जिंदगी और मौत के संघर्ष में आखिर जिंदगी हार गई और रणथंभौर का युवा बाघ टी 57 इस दुनिया से विदा हो गया. दरअसल 20 दिसंबर को रणथंभौर में बाघ टी 57 को पहली बार बीमार हालत में देखा गया. ये बाघ ढंग से चल फिर नहीं पा रहा था और एक ही जगह पर बैठा हुआ था. इसकी सूचना अधिकारियों को दी गई लेकिन अधिकारी 20 दिसंबर को शाम तक इस ट्रेंकुलाइज करने का निर्णय नहीं कर पाए.
फर्स्ट इंडिया न्यूज पर खबर प्रसारित होने के बाद वन विभाग ने अगले दिन 21 दिसंबर को इस बाघ को ट्रेंकुलाइज कर इसका उपचार किया और 22 दिसंबर को इसे फिर से जंगल में रिलीज कर दिया. इलाज के दो दिन बाद ही इस बाघ की हालत फिर से खराब हो गई और यह एक ही जगह बैठा दिखाई दिया. 29 दिसंबर को एक अन्य बाघ टी 123 ने इस बीमार बाघ टी 57 पर हमला कर उसे बुरी तरह घायल कर दिया.
बाघ को इतनी जल्दी दूसरी बार ट्रेंकुलाइज नहीं किया जा सकता था ऐसे में फील्ड डायरेक्टर सेडूराम यादव और डीएफओ संग्राम सिंह ने उच्चाधिकारियों से बातचीत कर बाघ को प्राकृतिक हालत में रखने का निर्णय किया और इस की मॉनिटरिंग बढ़ा दी. लगभग 20 दिन जिंदगी और मौत के संघर्ष के बाद आज बाघ टी 57 ने दुनिया को अलविदा कह दिया. पोस्टमार्टम में बाघ के लिवर के पास 3 किलो का ट्यूमर और आधा आधा किलो के दो ट्यूमर स्प्लीन के पास मिले जिसे बाघ की मौत का कारण बताया गया है. पोस्टमार्टम के बाद इस बाघ का अंतिम संस्कार कर दिया गया.