RTH Bill: नहीं थम रहा राइट टू हेल्थ बिल को लेकर जारी बबाल, अब पक्ष में उतरे सामाजिक संगठन

जयपुर: प्रदेश में राइट टू हेल्थ बिल को लेकर जारी बबाल समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा है. निजी चिकित्सकों की तरफ से सरकारी योजनाओं के बहिष्कार जैसा कदम उठाने के बाद अब सामाजिक संगठन बिल के पक्ष में उतर आए है. विभिन्न जन संगठनों ने सरकार के फैसले का स्वागत किया है, साथ ही कहा है कि सरकारी योजनाओं के बहिष्कार के चिकित्सकों के फैसले को अनैतिक करार दिया है. उन्होंने कहा कि निजी चिकित्सक सिर्फ खुद के फायदे के लिए सिस्टम को ब्लैकमेल कर रहे है, जो किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं होगा. राइट टू हेल्थ लागू करने के लिए जरूरत पड़ी तो जनता सड़कों पर उतरेगी.

सीएम अशोक गहलोत की मंशा है कि राजस्थान की जनता को चिकित्सा का अधिकारी मिले. इस सोच को साकार करने के लिए विधानसभा में राइट टू हेल्थ बिल लाया गया, जो फिलहाल प्रवर समिति के पास विचाराधीन है. लेकिन इससे पहले ही चिकित्सक संगठनों ने बिल के विरोध में मोर्चा खोल रखा है. बिल के विरोध के लिए गठित चिकित्सकों की ज्वाइंट एक्शन कमेटी के आह्वान पर प्रदेशभर में सरकारी योजनाओं के बहिष्कार का दावा किया जा रहा है. हालांकि इस घोषणा का फील्ड में मिलाजुला असर ही नजर आ रहा है. चिकित्सकों के आंदोलन को देखते हुए अब बिल की पक्षधर सिविल सोसायटी ने मोर्चा खोल दिया है. विभिन्न जन संगठनों ने सरकारी योजनाओं के बहिष्कार के चिकित्सकों के फैसले को अनैतिक बताया है. उनका कहना है कि चिकित्सक आंदोलन के नाम पर सरकार को ब्लैकमेल कर रहे है, जो किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं होगा. यदि चिकित्सकों का ऐसा बर्ताव आगे भी रहा, तो जनता भी सड़क पर उतरेगी. 

RTH के विरोध में सरकारी योजनाओं के बहिष्कार की ग्राउड रिपोर्ट:- 
- प्रदेशभर के निजी अस्पतालों में बहिष्कार का मिलाजुला असर
- राजधानी जयपुर के अधिकांश निजी अस्पतालों में नहीं हो रहा काम
- जबकि दूसरे जिलों में सिर्फ कुछ अस्पतालों में कार्यबहिष्कार का असर
- हालांकि, सरकारी आंकड़ों में निजी अस्पतालों की घोषणा का नहीं व्यापक असर
- रोजाना जहां 400 से 500 अस्पतालों में मिल रहा था मरीजों को फ्री इलाज
- लेकिन बन्द की घोषणा के बावजूद 11 फरवरी को 273, 12 फरवरी को 183 व
- 13 फरवरी को 111 अस्पतालों ने किया चिरंजीवी योजना में पैकेज बुक
- निजी अस्पतालों में सामान्य दिनों में 2000 के आसपास TID हो रहे थे जनरेट
- लेकिन बन्द की घोषणा के बावजूद 11 फरवरी को 1425, 12 फरवरी को 693 व
- 13 फरवरी को 987 TID किए गए निजी अस्पतालों में जनरेट
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RTH पर चिकित्सा मंत्री-निजी चिकित्सक आमने सामने:- 
- चिकित्सा मंत्री परसादी लाल मीणा ने साफ कहा कि लाएंगे बिल
- जबकि कई निजी चिकित्सकों ने पकड़ रखी आंदोलन की राह
- निजी अस्पतालों में सरकारी योजनाओं का बहिष्कार कर बना रहे दबाव
- हालांकि, अभी तक ऐसे चिकित्सालय के खिलाफ सरकार ने नहीं की सख्ती
- लेकिन "हाईलेवल" पर ऐसे चिकित्सक व चिकित्सालयों की मॉनिटरिंग शुरू
- क्योंकि, MOU के तहत यूं अचानक सेवाओं का नहीं किया जा सकता बहिष्कार
- ऐसे में सवाल ये कि क्या सेवाओं से इनकार करने वालों पर होगी कोई सख्ती
- क्या निजी अस्पतालों में भुगतान करके इलाज ले रहे मरीजों का होगा पुर्नभरण

राइट टू हेल्थ बिल के पक्ष में सामाजिक संगठनों के उतरने के साथ ही चिकित्सक संगठनों ने अपनी स्टेटिजिटी में बदलाव किया है. चिकित्सकों की ज्वाइंट एक्शन कमेटी ने सरकार पर सुनवाई नहीं करने का आरोप लगाते हुए राज्यपाल से हस्तक्षेप की मांग उठाई है. इसके लिए कमेटी ने खुद का पक्ष रखने के लिए राज्यपाल से समय मांगा है. जबकि दूसरी ओर सामाजिक संगठनों ने भी चिकित्सकों के आंदोलन को ब्लैकमेल करार देते हुए कहा है कि बिल के पक्ष में यदि जरूरत पड़ी तो वे जनता के साथ सड़कों पर उतरेंगे.

'राइट टू हैल्थ' बिल के विरोध अब चिकित्स्कों को राज्यपाल से उम्मीद !
- अब चिकित्सकों की स्टेट ज्वॉइंट एक्शन कमेटी ने राज्यपाल से मांगा समय
- बिल के संदर्भ में अपना पक्ष रखने के लिए मांगा समय
- एक्शन कमेटी के पदाधिकारियों ने राज्य सरकार पर लगाया आरोप
- बिल को लेकर दिए गए सुझावों को नहीं मानने का लगाया आरोप
- साथ ही किसी भी टकराव की स्थिति को रोकने के लिए राज्यपाल से हस्तक्षेप की मांग

राइट टू हेल्थ बिल को लेकर विवाद बढ़ता ही जा रहा है. हालांकि, सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि जनता के हित के लिए कानून लाया जा रहा है, जिसमें किसी बिन्दु को लेकर मतभेद है तो उसे दूर करने का प्रयास किया जाएगा. इसके लिए प्रवर समिति की कल बैठक भी प्रस्तावित है. ऐसे में अब देखना ये होगा कि जनता को चिकित्सा का अधिकार देने की सरकार की मंशा को लेकर चिकित्सकों के मतभेद को कब तक दूर किया जाएगा.