लोकसभा चुनाव में 7 विधायकों की साख दांव पर, किस विधायक की किस्मत का खुलेगा ताला ?

जयपुरः राजस्थान की जनता की आवाज उठाने के लिए विधानसभा चुनाव जीतने वाले सात विधायक अब देश की सबसे बड़ी पंचायत में जाना चाहते है. प्रदेश के सात विधायकों ने लोकसभा चुनाव में अपनी ताल ठोंक रखी है. यानि महज चार महीने के अंतराल में वे दूसरा बड़ा चुनाव लड़ने जा रहे है. कांग्रेस के सबसे ज्यादा चार विधायक किस्मत आजमा रहे हैं, लेकिन भाजपा ने इस बार किसी विधायक को यह मौका नहीं दिया. सात विधायकों में से किसकी किस्मत खुलेगी, देखिए यह पर यह खास रिपोर्ट

देश के सबसे बड़े चुनाव में पहले चरण का मतदान होने में करीब 10 दिन का समय बाकी है. चुनावी मैदान में भाजपा व कांग्रेस दोनों दलों ने अपने उम्मीदवार तय कर दिए हैं। चुनाव के लिए राजस्थान में नामांकन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. कुल प्रत्याशियों में कुछ प्रत्याशी ऐसे हैं, जो वर्तमान में विधायक हैं. इसके बावजूद भी वे लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं और देश की सबसे बड़ी पंचायत में अपनी आवाज बुलंद करना चाहते हैं. भाजपा ने तो इस बार एक भी विधायक पर दांव नहीं खेला है, लेकिन कांग्रेस ने अपने चार विधायक लोकसभा चुनाव के मैदान में उतार दिए. आरएलपी व भारतीय आदिवासी पार्टी के एक-एक विधायक ने भी किस्मत आजमा रखी है वहीं एक निर्दलीय विधायक ने भी ताल ठोंक रखी है. कांग्रेस पार्टी ने देवली-उनियारा विधायक हरीश मीणा को टोंक-सवाई माधोपुर लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया है, जबकि मुंडावर सीट से युवा विधायक ललित यादव को अलवर लोकसभा सीट से टिकट दिया है। ललित यादव केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव से मुकाबला कर रहे है. इसी तरह झुंझुनू विधायक बृजेंद्र ओला को झुंझुनूं लोकसभा और दौसा विधायक मुरारी लाल मीणा को दौसा लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतारा गया है. भाजपा ने इन दोनों ही जगहों पर विधानसभा चुनाव में हारने वालो को टिकट दिया है। वहीं खींवसर से राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के विधायक हनुमान बेनीवाल नागौर लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में हैं. आरएलपी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करके बेनीवाल को प्रत्याशी बनाया है. पिछली बार बेनीवाल NDA में थे और सांसद बने थे। उधर आदिवासी क्षेत्र की चौरासी विधानसभा सीट से भारत आदिवासी पार्टी के विधायक राजकुमार रोत बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे हैं. राजकुमार दूसरी बार विधायक है और इस बार कांग्रेस ने उनको लोकसभा चुनाव में समर्थन दे रखा है. पश्चिमी राजस्थान के बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट से निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी भी लोकसभा चुनाव के मैदान में हैं. भाटी शिव विधानसभा सीट से पहली बार विधायक चुने गए और वे लोकसभा जाने का प्रयास कर रहे हैं. भाटी केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी के लिए चुनौती बने हुए हैं.

लोकसभा चुनाव में 7 विधायकों की साख दांव पर
कांग्रेस के सबसे ज्यादा 4 विधायक लड़ रहे लोकसभा चुनाव
RLP व BAP का एक-एक विधायक भी मैदान में
एक निर्दलीय विधायक ने भी ठोंक रखी है ताल
BJP ने इस बार एक भी विधायक को नहीं दी टिकट
कांग्रेस के हरीश मीणा टोंक-सवाई माधोपुर से उम्मीदवार
मुंडावर विधायक ललित यादव अलवर से प्रत्याशी
बृजेंद्र ओला को झुंझुनूं व मुरारी मीणा दौसा से उम्मीदवार
खींवसर से RLP विधायक हनुमान बेनीवाल नागौर से मैदान में
बीएपी के राजकुमार रोत बांसवाड़ा-डूंगरपुर से चुनावी मैदान में उतरे
शिव विधायक रविंद्र भाटी बाड़मेर-जैसलमेर से निर्दलीय उम्मीदवार

राजस्थान में लोकसभा चुनाव का दो दशक का इतिहास देखे, तो यहां पर साल 2004 से लेकर 2019 तक कई विधायकों ने लोकसभा जाने का सपना देखा. इनमें से 10 विधायक लोकसभा पहुंचने में कामयाब भी रहे. वर्ष 2004 में बहरोड़ के तत्कालीन विधायक करण सिंह यादव अलवर से सांसद चुने गए थे. इसी चुनाव में मेड़ता से तत्कालीन विधायक भंवर सिंह डांगावास नागौर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए. 2009 के चुनाव में टोडाभीम से तत्कालीन निर्दलीय विधायक डॉ. किरोड़ी लाल मीणा निर्दलीय सांसद चुने गए थे. सलूंबर से कांग्रेस के तत्कालीन विधायक रघुवीर मीणा सांसद बनकर लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहे. वर्ष 2014 में चार विधायक लोकसभा पहुंचे. चारों ही विधायक भाजपा के थे और मोदी लहर में बड़े अंतर से चुनाव जीते थे. इनमें वैर से तत्कालीन विधायक रामस्वरूप कोली, नसीराबाद के सांवरमल जाट, कोटा दक्षिण के ओम बिरला और सूरजगढ़ की संतोष अहलावत भी सांसद बने थे. कोली भरतपुर से, बिरला कोटा से, सांवरलाल अजमेर से व संतोष झुंझुनूं से जीती थी.  2019 के पिछले लोकसभा चुनाव में दो विधायक लोकसभा पहुंचे थे. इनमें खींवसर से हनुमान बेनीवाल और मंडावा के तत्कालीन विधायक नरेंद्र कुमार शामिल हैं। बेनीवाल तब एनडीए का हिस्सा थे, लेकिन इस बार इंडिया गठबंधन से चुनाव लड़ रहे है. नरेंद्र कुमार को इस बार भाजपा ने टिकट नहीं दिया है और विधानसभा चुनाव में भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.