VIDEO: कांग्रेस जिला अध्यक्ष बनाने का 'गुजरात मॉडल", हाईकमान ने अब तक 7 राज्यों में लागू किया यह फार्मूला, देखिए ये खास रिपोर्ट

जयपुर: पर्यवेक्षकों के जरिए कांग्रेस जिला अध्यक्ष चयन का गुजरात मॉडल अब तक सात राज्यों में लागू हो चुका है. जल्द ही यह फार्मूला धीरे-धीरे कईं चरणों में अब अन्य राज्यों में भी लागू होगा. गुजरात,मध्यप्रदेश और हरियाणा में तो जिला अध्यक्षों की सूची भी जारी हो चुकी है. वहीं अब यह मॉडल कुछ दिनों पहले उड़ीसा, उत्तराखंड, झारखंड और पंजाब में भी लागू हो चुका है. 

कांग्रेस जिला अध्यक्षों को सियासी ताकत देने की दिशा में गुजरात मॉडल का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है. अब तक सात राज्यों में गुजरात मॉडल लागू हो चुका है. गुजरात में हाईकमान ने पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट पर जिला अध्यक्ष बनाने की प्रक्रिया का आगाज किया था. जिसके बाद इसे हरियाणा और मध्यप्रदेश में लागू किया गया. अब चार और राज्यों में यह फार्मूला लागू हो चुका है.

-कांग्रेस जिला अध्यक्ष बनाने का 'गुजरात मॉडल"
-अब तक 7 राज्यों में लागू हुआ यह मॉडल
-गुजरात के बाद हरियाणा औऱ मध्यप्रदेश में लागू हुआ फार्मूला
-तीनों राज्यों में जिला अध्यक्षों की हो चुकी है नियुक्ति
-अब चार औऱ राज्यों में लागू हुआ मॉडल
-उड़ीसा,पंजाब,झारखंड और उत्तराखंड में लागू हुआ मॉडल
-इन चारों राज्यों में 115 पर्यवेक्षकों की हुई नियुक्ति
-राजस्थान के करीब 15 नेताओं को बनाया पर्यवेक्षक
-हर राज्य में राजस्थान के नेताओं को लगाया पर्यवेक्षक
-राजस्थान की 6 महिला नेताओं को भी बनाया पर्यवेक्षक
-सीपी जोशी को लंबे समय बाद मिली जिम्मेदारी
-पर्यवेक्षकों को 3 से 6 नामों का देना होगा पैनल

दरअसल संगठन मजबूती की दिशा में हाईकमान ने जिला कांग्रेस कमेटियों को सियासी पावर देने का फैसला लिया था. ऐसे में जिला अध्यक्षों के चयन में सिफारिश तंत्र को खत्म करते हुए सारा काम हाईकमान ने सीधे अपने कंट्रोल में ले लिया. दूसरे राज्यों के नेताओं को पर्यवेक्षक बनाकर उनसे नाम लिए जाते है फिर लिस्ट जारी की जाती है. कांग्रेस नेताओं के अनुसार दिवाली तक धीर धीरे सभी राज्यों में यह मॉडल लागू किया जाएगा.

हालांकि जिला अध्यक्ष के चयन के इस फार्मूले को लेकर पार्टी में नेताओं की अलग अलग राय भी सामने आ रही है. कुछ नेता कहते है कि इसका हश्र कहीं यूथ कांग्रेस औऱ एनएसयूआई के संगठन चुनाव की तरह ना हो जाए. क्योंकि ऊपर सीधे दिल्ली से बना जिला अध्यक्ष फिर पार्टी के विधायक औऱ सांसद सहित अन्य वरिष्ठ नेताओं के निर्देश क्यों मानेगा. खैर, तमाम तर्कों के बावजूद राहुल गांधी अपने मॉडल पर कायम रहे. अब देखना है कि दावों के मुताबिक चुनाव के दौरान इनकी सिफारिश पर टिकट बांटने का फार्मूला किस हद तक लागू होता है.