VIDEO: फिर से "सुलगा" SMS अस्पताल की लाइफ लाइन का करप्शन ! लाइफ लाइन ड्रग स्टोर के बहुचर्चित 'LD' प्रकरण में ACB में मुकदमा दर्ज, देखिए खास रिपोर्ट

जयपुर: एसएमएस अस्पताल के लाइफ लाइन ड्रग स्टोर में 'LD'की आड़ में करोड़ों का खेल करने वालों पर अब कार्रवाई की बड़ी तलवार लटक गई है.फर्स्ट इंडिया की खबरों के आधार पर हुई जांच में सामने आया कि अस्पताल के अधिकारियों ने 2012 से 2019 तक सॉफ्टवेयर में हेराफेरी कर निजी फर्मों को करोड़ों का फायदा पहुंचाया,जिससे राज्य सरकार को आर्थिक नुकसान हुआ. ऐसे में अब एसीबी ने छह चिकित्सक, चार मुख्य लेखाधिकारी/FA समेत करीब 15 से अधिक कार्मिकों को सामूहिक जिम्मेदार मानते हुए मुकदमा दर्ज किया है.आखिर क्या है पूरा मामला और कैसे 'LD' को बनाया गया कमाई का जरिया.पेश है फर्स्ट इंडिया की एक्सलुसिव रिपोर्ट.

एसएमएस अस्पताल में मरीजों को सस्ती दवाओं की उपलब्धता के लिए जो "लाइफ लाइन" अस्तित्व में आई, उसे अस्पताल के कर्ताधर्ताओं ने मरीजों की सेवा के बजाय कमाई का जरिया बना लिया गया.जी हां ये कोई हमारा आरोप नहीं, बल्कि एसीबी की प्राथमिक जांच में सामने आए तत्थ्यों की बानगी है.एसीबी के मुताबिक वर्ष 2012 में अस्पताल प्रशासन ने खुद लाइफ लाइन का संचालन शुरू किया.उद्देश्य ये था कि मरीजों को बाजार दर से 30 से 50 फीसदी तक सस्ती दवाएं उपलब्ध हो,लेकिन 2019 तक सात सालों में आधा दर्जन अधीक्षक और प्रभारी बदले.लेकिन सबका जोर इस बात पर रहा कि लाइफ लाइन पर दवाओं के लिए फर्मो को अधिक से अधिक ऑर्डर तो दिए जाए.

परंतु समय पर आपूर्ति नहीं करने वाली फर्मों पर जुर्माना नहीं लगे.अस्पताल के सॉफ्टवेयर में इस तरह की कारस्तानी की गई कि भले ही मरीज दवाओं के लिए भटकते रहे, लेकिन इसके लिए जिम्मेदार फर्मों पर किसी भी तरह का जुर्माना नहीं लग पाए.जब 2019 में लाइफ लाइन में लगी आग के बाद मामला चर्चाओं में आया और एसीबी ने जांच शुरू तो पता चला कि एलडी पेनल्टी के रूप में 5.06 करोड़ रुपए बकाया थे,जिसमें से जांच शुरू होने के बाद अस्पताल ने 3.63 करोड़ रुपए वसूल लिए. अभी भी 1.43 करोड़ रुपए की वसूली 20 फर्मों से बाकी है.

आखिर क्या है "LD":
- अस्पताल की लाइफ लाइन के लिए पैनलिस्ट फर्मो को मरीजों की मांग के हिसाब से ऑर्डर दिया जाता है.
- फर्मों को निश्चित समय में आपूर्ति करनी होती है.
- यदि आपूर्ति में देरी होती है तो उस स्थिति में मरीजों को मजबूरी में बाजार से महंगी दर पर दवाएं लेनी पड़ती है.
- मरीजों को इस दिक्कत से बचाने के लिए दवाओं की आपूर्ति में लेटलतीफी पर फर्मों पर जुर्माने का प्रावधान है.
- तय समय से जिनते दिन लेट आपूर्ति होती है, उसी हिसाब से पैनल्टी बढ़ती जाती है.
- नियम के अनुसार, सप्लायर को वर्क ऑर्डर मिलने के 8 दिन के अंदर दवा पहुंचानी होती है, देरी होने पर 2.5% से 10% तक पेनल्टी का प्रावधान है.
- इस नियम के तहत सात साल में निजी फर्मां पर 5.06 करोड़ की वसूली बनी, लेकिन जब मामला एसीबी तक पहुंचा तो आनन फानन में वसूली शुरू हुई.
- लेकिन तब तक अधिकांश फर्मों का भुगतान हो चुका था, नतीजन अस्पताल प्रशासन 3.63 करोड़ रुपए ही वसूल पाया. अभी भी 1.43 करोड़ रुपए की वसूली 20 फर्मों से बाकी है.

भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने इस पूरे प्रकरण में तत्कालीन फार्मासिस्ट सुनील मीणा और वरिष्ठ सहायक मदन लाल बैरवा समेत अन्य के खिलाफ FIR दर्ज की है, जिसमें निजी फर्मों से मिलीभगत करके 'LD' वसूली नहीं करने वालों में  6 मेडिकल ऑफिसर इंचार्ज , 4 वित्तीय सलाहकार/मुख्य लेखाधिकारी, 4 सहायक लेखाधिकारी, 4 क्लर्क/वरिष्ठ सहायक और 5 फार्मासिस्ट को सामूहिक जिम्मेदार माना गया है.

यूं समझिए पूरा मामला:
1. 2019 को आग लगी, तब खुली करप्शन की पोल
एसीबी के अनुसार, जयपुर के एसएमएस अस्पताल के लाइफ लाइन ड्रग स्टोर में 9 मई 2019 को आग लगी थी. इस अग्निकांड के बाद ड्रग स्टोर में दवाइयों से संबंधित अनियमितताएं और करोड़ों रुपए के घोटाले को छिपाने के संबंध में एसीबी में साल 2024 में मामला दर्ज किया गया. अगस्त 2024 में शुरू हुई जांच में सामने आया कि साल 1995 में राजस्थान मेडिकल रिलीफ सोसाइटी का गठन किया गया था, जिसके तहत मरीजों को सस्ती दवा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से लाइफ लाइन मेडिकल एंड ड्रग स्टोर बनाया गया था.

2. 2012 से शुरू हुआ घोटाला, खुली निविदाओं में भी हेराफेरी
एसीबी के अनुसार लाइफ लाइन मेडिकल एंड ड्रग स्टोर पहले ठेकेदारों द्वारा संचालित किए जाते थे, लेकिन 2013 में एसएमएस अस्पताल ने इन सभी मेडिकल स्टोरों का संचालन स्वयं शुरू कर दिया. खुली निविदाओं के माध्यम से दवाओं की आपूर्ति की जाती थी और न्यूनतम दर देने वाले को कार्यादेश जारी किया जाता था. एसीबी जांच में रिकॉर्ड खंगालने पर पता चला कि 2012 से 2019 तक एलडी के रूप में कुल 5.06 करोड़ रुपए बकाया हो गए. एसीबी में शिकायत दर्ज होने के बाद एसएमएस हॉस्पिटल ने 3.63 करोड़ रुपए की वसूली की, लेकिन अभी भी शेष रकम करीब 1.43 करोड़ रुपए 20 फर्मों से वसूलना बाकी है.