जयपुरः भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज चिंता जताई कि देश में कुछ लोग साजिश के तहत एक नैरेटिव चला रहे हैं कि हमारे पड़ौसी देश में हाल में जो घटनाक्रम हुआ है, भारत में भी वैसा ही घटित होगा. ऐसे लोगों से सावधान रहने की अपील करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि ये लोग अपने जीवन में उच्च पदों पर रहे हैं, देश की संसद के सदस्य रहे हैं, मंत्री रहे हैं, और उनमें से एक को विदेश सेवा का लंबा अनुभव है, ऐसे जिम्मेदार पदों पर रहे लोग ऐसा मिथ्या प्रचार कैसे कर सकते हैं कि पड़ोसी देश जैसा घटनाक्रम भारत में दोहराया जायेगा.
जोधपुर में राजस्थान हाई कोर्ट की प्लेटिनम जुबली के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में देश भर से आए न्यायाधीशों व वकीलों को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने चेताया कि ऐसी राष्ट्र विरोधी ताकतें वैधता प्राप्त करने के लिए संवैधानिक संस्थानों को प्लेटफार्म के रुप में प्रयोग कर रही हैं. ये ताकतें देश तोड़ने को तत्पर हैं और राष्ट्र के विकास व लोकतंत्र को पटरी से उतारने के लिए मनगढ़ंत नैरेटिव चलाती हैं. श्री धनखड़ ने आगाह करते हुए कहा कि राष्ट्रहित सर्वोपरि है और इससे समझौता नहीं किया जा सकता.इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने भारत में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करने में न्यायपालिका की भूमिका को सराहा और कहा कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में केवल एक समय ऐसा आया जब आपातकाल के दौरान न्यायपालिका एक व्यक्ति की तानाशाही के आगे झुक गई. इस विषय पर उन्होंने आगे कहा कि नई पीढ़ी के लोगों को आपातकाल के काले दौर की जानकारी बहुत कम है. उन्होने आह्वान किया कि देश के युवाओं को भारत के इतिहास के उस काले अध्याय के बारे में बताना चाहिए.इस संदर्भ में भारत सरकार द्वारा 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने की घोषणा की सराहना करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह दिन देशवासियों को आगाह करेगा कि किस तरह 1975 में संविधान पर कुठाराघात किया गया और उसकी मूल भावना को कुचला गया.
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने राजस्थान हाई कोर्ट में बिताए अपने दिनों को याद करते हुए कहा कि उन्हें गर्व है कि यह कोर्ट उन नौ हाई कोर्ट में शामिल है जिन्होंने इंदिरा गांधी द्वारा लगाए आपातकाल के बाबजूद निर्णय दिया कि आपातकाल में भी व्यक्ति को बिना वजह गिरफ्तार नहीं किया जा सकता. उपराष्ट्रपति ने कहा कि खेद का विषय है की हमारा सम्मानित सुप्रीम कोर्ट जिसने देश में लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ाने में महान योगदान दिया है, वह इमरजेंसी के दौरान देश के नागरिकों के हक में नहीं खड़ा हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने इन नौ न्यायालयों के फैसलों को पलट दिया और निर्णय दिया कि आपातकाल लागू रहने के दौरान व्यक्ति को न्यायालय राहत नहीं दे सकता और सरकार जब तक चाहे आपातकाल लागू रख सकती है. धनखड़ ने अफसोस जताया कि हमारी सम्मानित न्यायपालिका इंदिरा गांधी की तानाशाही के आगे झुक गई और स्वतंत्रता एक व्यक्ति की बंधक बन कर रह गई. उन्होने कहा कि यदि इमरजेंसी नहीं लगती तो भारत दशकों पहले ही विकास की नई ऊंचाईयों को छू लेता.
अपने संबोधन में धनखड़ ने कहा कि संविधान में सभी अंगों के कार्यक्षेत्र का स्पष्ट बंटवारा है और शक्तियों के इस प्रथक्करण का सबके द्वारा सम्मान किया जाना चाहिए. उन्होंने हल्के अंदाज में यह भी जोड़ा कि संसद न्यायिक निर्णय नहीं दे सकती, उसी तरह न्यायलय भी कानून नहीं बना सकते. कार्यक्रम को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस एजी मसीह, जस्टिस संदीप मेहता, राजस्थान हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एम एम श्रीवास्तव, प्रदेश के कानून मंत्री जोगाराम पटेल ने भी संबोधित किया और कहा कि विकसित होते भारत में न्यायपालिका की सशक्त भूमिका होना आवश्यक है और इसके लिए बार और बेंच को मिलकर कार्य करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि हम सभी का यह प्रयास होना चाहिए कि पीड़ित व्यक्ति को सहज सुलभ न्याय मिले. इस अवसर पर केंद्र सरकार के सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता, बार काउंसिल आफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा, बार काउंसिल आफ राजस्थान के अध्यक्ष भुवनेश शर्मा ने भी संबोधित किया.