रेगिस्तान ने उगला करोड़ों साल पुराना 'राज' ! मिला डायनासोर से भी अधिक पुराना जीवाश्म, देखिए खास रिपोर्ट

जैसलमेर: जैसलमेर रेत के सुनहरे समंदर में बसा सरहदी जिला, जहां इतिहास की परतों के नीचे छुपे हैं करोड़ों साल पुराने राज़. और अब, इसी धरती ने अपने भीतर से एक ऐसा खजाना बाहर निकाला है, जिसने वैज्ञानिकों को भी हैरान कर दिया. फतेहगढ़ उपखंड के मेघा गांव में मिला है जुरासिक काल का फाइटोसौर प्रजाति का जीवाश्म. दावा है कि ये जीवाश्म करीब 20 करोड़ साल पुराना है. यानी डायनासोर से भी प्राचीन!ये खोज न सिर्फ जैसलमेर की धरा को गौरवान्वित करती है, बल्कि पूरे देश के वैज्ञानिक इतिहास में एक नई इबारत लिखती है.

जैसलमेर का मेघा गांव. जहां रेत के नीचे छिपी थी धरती के इतिहास की अनमोल धरोहर. 21 अगस्त को ग्रामीणों ने एक अजीब-सी हड्डीनुमा आकृति देखी. तुरंत प्रशासन को खबर दी गई. मौके पर पहुंचे जिले के वरिष्ठ भूजल वैज्ञानिक डॉ. नारायण दास इणखिया ने प्राथमिक जांच में ही इसे खास बताया. उन्होंने अंदेशा जताया कि यह साधारण हड्डी नहीं, बल्कि करोड़ों साल पुराना जीवाश्म है.इसके बाद जांच में जुटी वैज्ञानिकों की टीम. जयनारायण व्यास यूनिवर्सिटी, जोधपुर के भूविज्ञान विभाग के डीन और पृथ्वी प्रणाली विज्ञान संकाय के निदेशक डॉ. वीएस परिहार ने जब इस हड्डी को देखा तो वैज्ञानिक इतिहास का एक नया अध्याय सामने आया.

पुष्टि हुई कि यह जीवाश्म फाइटोसौर प्रजाति का है. यानी मगरमच्छ जैसी आकृति वाला, वृक्ष छिपकलीनुमा प्राचीन सरीसृप. जिसकी लंबाई करीब 2 मीटर तक थी. और खास बात ये कि यह जीवाश्म जुरासिक काल से भी पहले के समय का है – लेट ट्राइऐसिक और अर्ली जुरासिक पीरियड का. यानी डायनासोर से भी पुराना. वैज्ञानिक भाषा में कहें तो यह जीव लगभग 201 मिलियन वर्ष पूर्व धरती पर विचरण करता था. घने जंगलों और नदियों के किनारे रहकर यह जीव अपने समय का सबसे ताकतवर शिकारी माना जाता था. डॉ. नारायण दास इणखिया यह बहुत बड़ी खोज है. जैसलमेर की धरती पहले भी डायनासोर के पदचिह्न और प्राचीन वृक्षों के जीवाश्म समेटे रही है. लेकिन फाइटोसौर प्रजाति का यह जीवाश्म पहली बार मिला है. यह जीवाश्म करीब 20 करोड़ साल पुराना है और इससे हमारे क्षेत्र के भूगर्भीय इतिहास को समझने में मदद मिलेगी."

वैज्ञानिक महत्व और संरक्षण
फाइटोसौर जीवाश्म की खोज अपने आप में इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अब तक भारत में जुरासिक काल की चट्टानों से इस प्रजाति के जीवाश्म नहीं मिले थे. यह पहली खोज है, जो जैसलमेर को वैश्विक वैज्ञानिक मानचित्र पर अलग पहचान दिला रही है.इस खोज की सूचना मिलते ही क्षेत्र को तुरंत संरक्षित दायरे में ले लिया गया. कंकाल के चारों ओर तारबंदी कर सुरक्षा की व्यवस्था की गई है. फिलहाल इस फॉसिल की निगरानी हो रही है और जल्द ही जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया इसकी विस्तृत खुदाई और रिसर्च का काम शुरू करेगा.विशेषज्ञ मानते हैं कि जिस तरह यह फाइटोसौर जीवाश्म पूरी संरचना में मिला है, उससे संभावना है कि आसपास खुदाई में और भी जीवाश्म मिल सकते हैं. संभव है कि उस दौर के पूरे इकोसिस्टम – यानी वहां पनपने वाले पेड़-पौधे, अन्य जीव-जंतु और नदियों के किनारे के जीवन के बारे में भी नई जानकारी सामने आए. परिहार ने बताया की हमने प्रारंभिक अध्ययन किया है और यह जीवाश्म लेट ट्राइऐसिक और अर्ली जुरासिक काल का है. यह मगरमच्छ जैसी आकृति वाला सरीसृप था. इसकी लंबाई डेढ़ से दो मीटर के बीच है. खास बात यह है कि यह डायनासोर से भी पुराना जीव है. हमारी टीम अभी विस्तृत रिसर्च कर रही है और यह खोज भारत के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि साबित होगी."

 धरती का इतिहास और जैसलमेर का महत्व
धरती के इतिहास को समझने में जैसलमेर हमेशा से खास जगह रखता आया है. यहां की रेत और चट्टानें अपने भीतर करोड़ों साल पुराने राज़ छुपाए बैठी हैं.डॉ. इणखिया बताते हैं कि इससे पहले भी जैसलमेर जिले में प्राचीन जीवों और पेड़ों के प्रमाण मिल चुके हैं. थईयात गांव में डायनासोर के पंजों के निशान मिले, जबकि आकल गांव में 18 करोड़ साल पुराने पेड़ पत्थर बनकर जीवाश्म के रूप में आज भी मौजूद हैं. इन्हीं जीवाश्मों को सहेजने के लिए ‘वुड फॉसिल पार्क’ बनाया गया है.इतना ही नहीं, जेठवाई की पहाड़ी, थईयात और लाठी गांवों को आज 'डायनासोर का गांव' कहा जाता है. क्योंकि यहां बार-बार डायनासोर के जीवाश्म मिलने की पुष्टि हो चुकी है. हालांकि माइनिंग के चलते कई प्रमाण नष्ट भी हो गए. लेकिन सरकार ने समय रहते यहां खनन कार्य रोक दिया और इन जगहों को संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया.यानी जैसलमेर अब सिर्फ रेत के किले और पर्यटन का गढ़ नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी भारत की धरोहर बन चुका है. "जैसलमेर को हम अब डायनासोर का घर भी कह सकते हैं. यहां जेठवाई, थईयात और लाठी जैसे इलाके वैज्ञानिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं. मेघा गांव में मिला यह फाइटोसौर जीवाश्म इस कड़ी को और मजबूत करता है. यह न सिर्फ भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए शोध का बड़ा विषय बनेगा."

भविष्य की संभावनाएं और वैश्विक महत्व
धरती का इतिहास समझना हमेशा से विज्ञान के लिए सबसे बड़ी चुनौती रहा है. और हर नई खोज उस अधूरी किताब का एक नया पन्ना खोल देती है.जैसलमेर का फाइटोसौर जीवाश्म भारत के वैज्ञानिक शोध को नया मुकाम देगा. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यह खोज चर्चाओं में रहेगी, क्योंकि यह जीवाश्म पूरी संरचना में मिला है. आम तौर पर जीवाश्म अधूरे मिलते हैं, लेकिन इस बार वैज्ञानिकों को लगभग संपूर्ण कंकाल मिला है. अब जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीम यहां और खुदाई करेगी. संभावना है कि आसपास और जीवाश्म मिलें. अगर ऐसा हुआ तो यह जगह 'फॉसिल पार्क ऑफ इंडिया' के नाम से भी मशहूर हो सकती है.फिलहाल इस खोज ने जैसलमेर को एक बार फिर से वैज्ञानिक नक्शे पर चमका दिया है. जिस धरती ने कभी डायनासोरों और प्राचीन जीवों को पाला, वही धरती अब हमें उनका इतिहास पढ़ा रही है. 

तो जैसलमेर की धरा एक बार फिर से करोड़ों साल पुराना इतिहास बाहर ले आई है. मेघा गांव में मिला फाइटोसौर जीवाश्म न सिर्फ वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि ये हमारे आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अनमोल धरोहर भी है.अब सबकी निगाहें हैं उस रिसर्च पर, जो जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया करने जा रहा है. उम्मीद है कि ये खोज हमें हमारी धरती और उस पर जीवन की उत्पत्ति के बारे में नई जानकारियां देगी.धरती की रेत में छुपे हैं इतिहास के कई राज़. और जैसलमेर बार-बार यह साबित कर रहा है कि यह सिर्फ रेगिस्तान नहीं, बल्कि विज्ञान का खजाना भी है.