जयपुरः शक्ति भक्ति आस्था और उपासना का प्रतीक नवरात्रि का त्योहार 22 सितंबर से आरंभ हो रहा है इस बार ये पर्व 9 नहीं, 10 दिनों का होगा. ये अद्भुत संयोग लगभग 9 साल बाद बन रहा है. इससे पहले 2016 में भी नवरात्रि 10 दिनों की थी. नवरात्रि स्थापना के साथ अधिकांश घरों में मातामह श्राद्ध किया जायेगा. नवरात्रि का पर्व देवी शक्ति मां दुर्गा की उपासना का उत्सव है. पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर - जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि इस बार 9 की बजाय 10 दिन की शारदीय नवरात्रि होगी क्योंकि नवरात्रि की एक तिथि में वृद्धि होने के कारण शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर से 2 अक्टूबर तक होगी. सबसे खास बात यह है कि इस बार तृतीया तिथि की वृद्धि हुई है इस बार 24 और 25 सितंबर को तृतीया तिथि रहेगी. इस कारण शारदीय नवरात्रि का समापन 2 अक्टूबर को होगा और इसी दिन दशहरा भी मनाया जायेगा. नवरात्रि स्थापना के साथ अधिकांश घरों में मातामह श्राद्ध किया जायेगा.
ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि नवरात्रि का पर्व देवी शक्ति मां दुर्गा की उपासना का उत्सव है. नवरात्रि के नौ दिनों में देवी शक्ति के नौ अलग.अलग रूप की पूजा-आराधना की जाती है. माता के भक्त पूरे 9 दिनों तक माता की पूजा अर्चना कर मां को प्रसन्न करेगें. नवरात्रि में नौ देवियां अलग-अलग नौ शक्तियों का प्रतीक मानी जाती है. पहले दिन मां शैलपुत्री दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी तीसरे दिन मां चंद्रघंटा चौथे दिन मां कूष्मांडा पांचवे दिन मां स्कंदमाता छठे दिन मां कात्यानी सातवें दिन मां कालरात्रि आठवें दिन मां गौरी और नवे दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है. इस बार शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर से आरंभ हो रही हैं. शारदीय नवरात्रि अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनायी जाती है. शरद ऋतु में आगमन के कारण ही इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है. सर्व पितृ और मातामह नाना मातामही नानी का श्राद्ध आश्विन शुक्ल प्रतिप्रदा नवरात्रि के दिन करते है . मातामह श्राद्ध 22 सितंबर को होगा.
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि संतान ना होने की स्थिति में मातामह श्राद्ध के दिन नाती तर्पण कर सकता है. अक्सर मातामह श्राद्ध पितृ पक्ष की समाप्ति के अगले दिन होता है इस बार 22 सितंबर को होगा. नवमी या अमावस्या के दिन सर्व पितृ श्राद्ध पर तिथि पता नहीं होने पर भी श्राद्ध कर्म हो सकता है. जिनके नाम और गोत्र का पता नहीं हो उनका देवताओं के नाम पर भी तर्पण कर सकते है. परंपरा है कि लोग अपनी संतान नहीं होने पर दत्तक गोद लेते थे ताकि मृत्यु के बाद वो पिंडदान कर सके. मान्यतानुसार दत्तक पुत्र दो पीढ़ी तक श्राद्ध कर सकता है.
मातामह श्राद्ध में दूसरी पीढ़ी करती है तर्पण-पिंडदान
ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि दिवगंत परिजन के घर में लड़का ना होए तो लड़की की संतान यानी नाती भी पिंडदान कर सकता है. मान्यतानुसार लड़की के घर का खाना नहीं खा सकतेए इसलिए मातामह श्राद्ध के दिन नाती तर्पण कर सकता है.
क्या होता है मातामह श्राद्ध
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि मातामह श्राद्ध एक ऐसा श्राद्ध है जो एक पुत्री द्वारा अपने पिता व एक नाती द्वारा अपने नाना को तर्पण के रूप में किया जाता है. इस श्राद्ध को सुख शांति का प्रतीक माना जाता है . यह श्राद्ध करने के लिए कुछ आवश्यक शर्तें है अगर वो पूरी न हो तो यह श्राद्ध नहीं किया जाता है. शर्त यह है कि मातामह श्राद्ध उसी महिला के पिता के द्वारा किया जाता है जिसका पति व पुत्र जिंदा हो. अगर ऐसा नहीं है और दोनों में से किसी एक का निधन हो चुका है या है ही नहीं तो मातामह श्राद्ध का तर्पण नहीं किया जाता.
शारदीय नवरात्रि
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि वैदिक पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा 22 सितंबर को रात 01:23 मिनट से शुरू होगी. वहीं, इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 23 सितंबर को रात 02:55 मिनट पर होगा. ऐसे में 22 सितंबर से शारदीय नवरात्र शुरू होंगे.
नवरात्रि घटस्थापना मुहूर्त
अमृत मुहूर्त : सुबह 6.19 से 7.49 बजे तक
शुभ मुहूर्त : सुबह 9.14 से 10.49 बजे तक,
अभिजीत मुहूर्त : सुबह 11.55 से 12.43 बजे तक रहेगा
गज पर आना सुख-समृद्धि का प्रतीक
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि शारदीय नवरात्र इस बार सोमवार से शुरू हो रहे हैं. इसलिए मां का वाहन हाथी रहेगा. यह वाहन शुभ माना जाता है. मान्यता है कि हाथी पर मां का आगमन लोगों के लिए सुख-शांति और अच्छे समय आने का संकेत देता है. हाथी पर माता का आगमन इस बात की ओर संकेत कर रहा है कि इस साल खूब अच्छी वर्षा होगी और खेती अच्छी होगी. देश में अन्न धन का भंडार बढ़ेगा.
कलश स्थापना
कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ अनीष व्यास के अनुसार नवरात्रि में कलश स्थापना का विशेष महत्व है. कलश स्थापना को घट स्थापना भी कहा जाता है. नवरात्रि की शुरुआत घट स्थापना के साथ ही होती है. घट स्थापना शक्ति की देवी का आह्वान है. मान्यता है कि गलत समय में घट स्थापना करने से देवी मां क्रोधित हो सकती हैं. रात के समय और अमावस्या के दिन घट स्थापित करने की मनाही है. घट स्थापना का सबसे शुभ समय प्रतिपदा का एक तिहाई भाग बीत जाने के बाद होता है. अगर किसी कारण वश आप उस समय कलश स्थापित न कर पाएं तो अभिजीत मुहूर्त में भी स्थापित कर सकते हैं. प्रत्येक दिन का आठवां मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त कहलाता है. सामान्यत यह 40 मिनट का होता है.
कलश स्थापना की सामग्री
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि मां दुर्गा को लाल रंग खास पसंद है इसलिए लाल रंग का ही आसन खरीदें. इसके अलावा कलश स्थापना के लिए मिट्टी का पात्र जौ मिट्टी जल से भरा हुआ कलश मौली इलायची लौंग कपूर रोली साबुत सुपारी साबुत चावल सिक्के अशोक या आम के पांच पत्ते नारियल चुनरी सिंदूर फल-फूल फूलों की माला और श्रृंगार पिटारी भी चाहिए.
कैसे करें कलश स्थापना
भविष्यवक्ता डॉ अनीष व्यास ने बताया कि नवरात्रि के पहले दिन यानी कि प्रतिपदा को सुबह स्नान कर लें. मंदिर की साफ-सफाई करने के बाद सबसे पहले गणेश जी का नाम लें और फिर मां दुर्गा के नाम से अखंड ज्योत जलाएं. कलश स्थापना के लिए मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज बोएं. अब एक तांबे के लोटे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं. लोटे के ऊपरी हिस्से में मौली बांधें. अब इस लोटे में पानी भरकर उसमें कुछ बूंदें गंगाजल की मिलाएं. फिर उसमें सवा रुपया दूब सुपारी इत्र और अक्षत डालें. इसके बाद कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते लगाएं. अब एक नारियल को लाल कपड़े से लपेटकर उसे मौली से बांध दें. फिर नारियल को कलश के ऊपर रख दें. अब इस कलश को मिट्टी के उस पात्र के ठीक बीचों बीच रख दें जिसमें आपने जौ बोएं हैं. कलश स्थापना के साथ ही नवरात्रि के नौ व्रतों को रखने का संकल्प लिया जाता है. आप चाहें तो कलश स्थापना के साथ ही माता के नाम की अखंड ज्योति भी जला सकते हैं.
शारदीय नवरात्रि तिथि
22 सितंबर, सोमवार : प्रतिपदा तिथि - प्रतिपदा घटस्थापना मां शैलपुत्री पूजा
23 सितंबर, मंगलवार : द्वितीय तिथि - द्वितीया माँ ब्रह्मचारिणी पूजा
24 – 25 सितंबर, बुधवार गुरुवार : तृतीया तिथि - तृतीय माँ चंद्रघंटा पूजा,
26 सितंबर, शुक्रवार : चतुर्थी तिथि - चतुर्थी माँ कुष्मांडा पूजा
27 सितंबर, शनिवार : पंचमी तिथि - पंचमी माँ स्कंदमाता पूजा
28 सितंबर, रविवार : षष्ठी तिथि - षष्ठी माँ कात्यायनी पूजा
29 सितंबर, सोमवार : सप्तमी तिथि - सप्तमी माँ कालरात्रि पूजा
30 सितंबर, मंगलवार : अष्टमी तिथि - अष्टमी माँ महागौरी दुर्गा पूजा
01 अक्टूबर, बुधवार : नवमी तिथि - महानवमी माँ सिद्धिदात्री पूजा
02 अक्टूबर, गुरुवार : दशहरा - विजयदशमी