टीलों पर तपता है सूरज... रात में चीरती ठंडी हवाएं, कोडेवाला बॉर्डर पोस्ट पर सीएम भजनलाल करेंगे BSF जवानों से मुलाकात, देखिए खास रिपोर्ट

बीकानेरः जहां रेत के टीलों पर सूरज तपता है, रात में ठंडी हवाएं चीरती हैं कभी बारिश कभी तूफ़ान कहीं बर्फ तो दलदल इन सबके बीच तैनात हैं सरहद के सच्चे प्रहरी यानि सीमा सुरक्षा बल देश की सुरक्षा की प्रथम पंक्ति 

आजादी के पर्व स्वतंत्रता दिवस पर जब देश जश्न में डूबा होता है तो BSF के रणबांकुरे हमारे जश्न के पहरेदार बने डटे होते है दुर्गम सीमाओं पर ऐसे में इस बार राजस्थान के सीएम भजन लाल शर्मा स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले भारत पाक सीमा पर सीमा सुरक्षाकर्मी बलों के जवानों की हौसला अफ़ज़ाई के लिए BSF की कोडेवाला बॉर्डर पोस्ट पहुंच रहे है. 

CM के दौरे से पहले राजस्थान की आवाज यानि आपका अपना न्यूज़ चैनल First India News पहुँचा सरहद की उसी पोस्ट पर…हौसलों देशभक्ति के जज्बातों और शौर्य की गाथाएँ जानने. 

राजस्थान की 1,048 किलोमीटर लंबी भारत–पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा – यह सिर्फ भूगोल की रेखा नहीं, यह है भारत की संप्रभुता की पहली दीवार. यहां तैनात BSF हर मौसम, हर परिस्थिति में हमारी सुरक्षा की गारंटी है.

“तनोट माता के मंदिर से लेकर लोंगेवाला के युद्धक्षेत्र तक… खाजूवाला से मुनाबाव तक अपना इतिहास रेत के कण कण में समाई इनके शौर्य की गाथाए इन्हें चट्टान सा मजबूत बनाए रखती है  पश्चिमी राजस्थान की हर पोस्ट पर जवानों की निगाहें दूर तक फैली हैं, ताकि कोई खतरा सरहद पार न कर सके.

स्वतंत्रता दिवस पर जब देश तिरंगे के नीचे जश्न मना रहा होता है, तब ये जवान सीमा पर उसी तिरंगे को सीने में बसाकर, हथियार थामे खड़े रहते हैं. यही है उनकी सच्ची सलामी – मातृभूमि की रक्षा.”

- कहानी सीमा सुरक्षा बल की स्थापना  की, सरहद के सच्चे प्रहरी कैसे बने

कहते है  कुछ कहानियां सिर्फ तारीख़ों में नहीं, जज़्बात में लिखी जाती हैं… और BSF की कहानी उन्हीं में से एक है.”

साल 1965. भारत–पाक युद्ध ने देश को यह एहसास करा दिया था कि सीमाओं की रक्षा के लिए एक विशेष, संगठित और प्रशिक्षित बल की ज़रूरत है. युद्ध के दौरान सेना अपनी मुख्य मोर्चाबंदी में व्यस्त रहती थी, और कई इलाकों में सीमाओं पर निगरानी का अभाव महसूस किया गया.1965 के युद्ध में सीमा पर कई जगह अचानक हमले हुए. ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग सीधे खतरे के सामने आ गए. सेना की मौजूदगी के बावजूद यह साफ था कि एक स्थायी और समर्पित सीमा प्रहरी बल होना चाहिए, जो चौबीसों घंटे सीमा की रक्षा करे और दुश्मन की हर हरकत पर नज़र रखे.ऐसे में 1 दिसंबर 1965 – एक नए बल का जन्म युद्ध समाप्त होते ही केंद्र सरकार ने एक निर्णायक कदम उठाया. 1 दिसंबर 1965 को सीमा सुरक्षा बल (Border Security Force – BSF) का गठन किया गया. इस बल के पहले महानिदेशक (DG) बने के. एफ. रूस्तमजी, जिन्हें बल का निर्माता भी कहा जाता है. BSF का उद्देश्य स्पष्ट था – सीमाओं की सुरक्षा, तस्करी और घुसपैठ रोकना, और युद्धकाल में सेना के साथ मिलकर मोर्चा संभालना.

पहले दिन की तैनाती से आज तक
शुरुआती दिनों में BSF की तैनाती मुख्य रूप से पाकिस्तान सीमा पर हुई. जवान ऊंटों और जीपों पर गश्त करते, साधारण हथियारों से लैस होकर रेगिस्तान, दलदली और दुर्गम क्षेत्रों की चौकसी करते थे. यह काम आसान नहीं था – दिन में जलती रेत, रात में हड्डियां कंपा देने वाली ठंड, और हर पल घुसपैठ का खतरा. समय के साथ BSF ने अपने कदम देश के हर कोने तक फैलाए – बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल सीमा की निगरानी से लेकर नक्सल प्रभावित इलाकों और दंगों में आंतरिक सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी संभाली.

सरहद से दिल तक
BSF केवल हथियारों से नहीं, बल्कि अपने जज़्बे से देश की रक्षा करती है. राजस्थान के तनोट माता मंदिर से लेकर कश्मीर की बर्फीली चौकियों तक, BSF के जवान हर मौसम, हर हाल में तैनात रहते हैं. 1971 के लोंगेवाला युद्ध, पंजाब और कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियान, और ऑपरेशन सिन्दूर जैसे ऑपरेशन्स , ड्रोन से अंतर्राष्ट्रीय तस्करी जैसी चुनौतियों के बीच BSF ने अपने ध्येय वाक्य सेवा जीवन पर्यंत पर अमल करते हुए सीमा पर अपनी उपदेयता सिद्ध की है . 

आज की BSF – बदलते समय के साथ
आज BSF के पास आधुनिक हथियार, ड्रोन, थर्मल इमेजिंग, स्मार्ट फेंसिंग और कमांड कंट्रोल सेंटर जैसी सुविधाएं हैं. इतना ही नहीं अब BSF के दस्ते में महिलाएं भी ना केवल शामिल है बल्कि दुर्गम मोर्चो पर रणचण्डी बन टूटने को तैयार है .

लेकिन एक चीज़ आज भी वैसी ही है – देश के लिए जान देने का जुनून.

“जब हम चैन की नींद सोते हैं,

तो सरहद पर BSF के पहरेदार जागते हैं.   

“BSF सिर्फ सीमा की चौकी नहीं, यह है भारत की प्रथम रक्षा पंक्ति. हर खतरे से पहले इन्हीं की आंखों और हथियारों का सामना दुश्मन करता है.”“पश्चिमी राजस्थान की यह लंबी और कठिन सीमा सिर्फ भौगोलिक चुनौती नहीं, बल्कि साहस और समर्पण की कसौटी भी है. यहां तैनात हर जवान, देश की सुरक्षा का जीता-जागता वचन है.

“ये हैं वे सिपाही, जो हमारी नींद के पहरेदार हैं. जब तक इनकी आंखें खुली हैं, सरहदें सुरक्षित हैं… और भारत चैन की नींद सो सकता है.