नई दिल्लीः जगदीप धनखड़ इस्तीफा प्रकरण पर लेटेस्ट अपडेट सामने आया है. राजनैतिक क्षेत्रों और मीडिया में कल शाम तक यही धारणा थी कि कि पहलगाम और जस्टिस वर्मा से जुड़े मुद्दों को लेकर जब केन्द्रीय नेतृत्व ने फोन पर धनखड़ से व्यक्त अपनी नाराजगी की. तो उसके तुरंत बाद खुद धनखड़ ने आगे बढ़कर अपना इस्तीफा दे दिया. लेकिन अब इस सारे घटनाक्रम से जुड़े एक अहम सूत्र ने नया खुलासा किया है.
और कहा कि सोमवार की शाम लगभग 7.15 बजे धनखड़ से शीर्ष नेतृत्व द्वारा बकायदा इस्तीफा मांगा गया था. और उसके तुरंत बाद अपने पद की गरिमा और शालीनता के अनुरूप धनखड़ ने तुरंत राष्ट्रपति से मिलने का समय मांगा और राष्ट्रपति भवन से भी 15 मिनट में समय आ गया और फिर धनखड़ ने वहां पहुंचकर राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंप दिया. जिसे कल दोपहर मंजूर कर लिया गया. वस्तुत: सोमवार की दोपहर 3 बजे खरगे के भाषण की घटना है और उसके बाद धनखड़ द्वारा जस्टिस वर्मा प्रकरण पर बहस का प्रस्ताव स्वीकृत कर लेने से पार्टी और सरकार का शीर्ष नेतृत्व काफी नाराज हो गया था और फिर उपराष्ट्रपति के इस्तीफे के अलावा कोई विकल्प नहीं था. एक सूत्र का यह भी दावा है कि यदि आलाकमान की राय मानकर किसी भी कारण धनखड़ इस्तीफा नहीं देते तो फिर पार्टी और सरकार के पास PLAN ‘B’ तैयार था.
ऐसे में सूझबूझ और दूरदर्शिता दिखाते हुए धनखड़ ने इस्तीफा दे दिया और प्रधानमंत्री तथा मंत्रिमंडल के प्रति अपना आभार भी व्यक्त कर दिया. दूसरी ओर धनखड़ के निकटवर्ती सूत्रों के अनुसार खुद धनखड़ भी पिछले कुछ महीनों से कई मुद्दों पर खुद को असहज महसूस कर रहे थे. और कई बार इस्तीफा देने का विचार भी उनके मन में आया था. और ना जानें क्यों 27 जुलाई की तारीख की भी चर्चा होती थी ? राजनैतिक प्रेक्षक इस बात से सचमुच हैरान हैं कि शुरुआती दौर में धनखड़ सरकार और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के सबसे बड़े प्रशंसक थे और संभवतया उनकी छवि के कारण ही विपक्ष उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव ले आया था. जो बाद में खारिज हो गया था लेकिन ना जानें क्यों केवल पिछले कुछ महीनों में ही सब कुछ उल्टा-पुल्टा हो गया.
सूत्रों के अनुसार पिछले वर्ष अपने खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव के बाद एक PR Exercise के रूप में धनखड़ विपक्षी सांसदों से मेलजोल ने बढ़ाया था. निलंबित सांसद संजय सिंह सहित विपक्षी सांसदों से मेलजोल बढ़ाया था. जिसे पार्टी नेतृत्व ने Otherwise लिया था. शायद सरकार और पार्टी को यह लगा होगा कि धनखड़ कि कार्यप्रणाली से कई मुद्दों पर सरकार और पार्टी को नुकसान हो रहा था. और इस प्रकार धनखड़ और पार्टी के बीच की यह संवादहीनता भी इस्तीफे का एक कारण रही. एक दूसरे घटनाक्रम में धनखड़ के इस्तीफे के तुरंत बाद दो भाजपा नेताओं विनोद तावड़े और रवि किशन ने X पर पोस्ट करके धनखड़ की तारीफ की थी. लेकिन कुछ ही देर बाद ये दोनों पोस्ट डिलीट हो गए थे. अब यह नहीं रहा महत्वपूर्ण कि धनखड़ ने खुद दिया इस्तीफा या फिर उनसे इस्तीफा मांगा गया. क्योंकि अब शाश्वत सत्य केवल यही है कि धनखड़ अब उपराष्ट्रपति नहीं रहे. और दो साल पहले ही उनका इस्तीफा हो गया. इसे कहते हैं विधि का विधान !