जयपुर: ये तो कहा जाता ही है कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जन्म का संबंध राजस्थान के जयपुर के पास धानक्या से है. लेकिन यहां भी खास है कि उनके ऐतिहासिक एकात्म मानवदर्शन का संबंध भी राजस्थान से है.. पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने सबसे पहले 1964 के जून माह में लगने वाले संघ शिक्षा वर्गों मे एकात्म मानवदर्शन का विशद् विश्लेषण किया था. एकात्म मानववाद के मर्म के समीकरणों को उन्होंने एक 'घन' के माध्यम से वर्णित किया. पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने बौद्धिक राजस्थान संघ शिक्षा वर्ग, उदयपुर मे साल 1964 के चार और पाँच जून को दिए गए थे.आज पीएम मोदी स्वदेशी की बात कह रहे एकात्म मानवदर्शन में स्वदेशी का मूलमंत्र बताया गया.
एकात्म मानवदर्शन एक विचारधारा है. पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने सालों पहले देश और दुनिया के सामने इस विचारधारा को प्रस्तुत किया उन्होंने ही जनसंघ की स्थापना की थी जो आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी कहलाई. आज देश में बीजेपी की मोदी सरकार है और राज्य में बीजेपी की भजन लाल सरकार अपने प्रात: स्मरणीय पंडित दीनदयाल उपाध्याय के बताए रास्ते पर चलने का संकल्प जता रही. उपाध्याय के बताए सिद्धांतों में सबसे अहम अंत्योदय भी है जिसे बीजेपी सरकारों ने मूल मंत्र माना है. हालांकि एकात्म मानवदर्शन में और भी कुछ ऐसा मजबूत दृष्टिकोण है जिसके जरिए किसी भी सरकार के लिए राष्ट्रीयता,केंद्र और राज्य संबंध, सामाजिक व्यवस्था, आर्थिक व्यवस्था, विदेश नीति और स्वदेशी को समझने और उसका हल निकालने में मदद मिलती है. आइए पंडित दीनदयाल उपाध्याय के राजस्थान से जुड़े उन बौद्धिको को बताते है जिन्हें उन्होंने 1964 में उदयपुर के संघ शिक्षा वर्ग में कही थी. ये बौद्धिक वर्ग राजस्थान के तत्कालीन बौद्धिक प्रमुख जयदेवजी पाठक की फाइल से प्राप्त किए गए हैं.
एकात्म मानव दर्शन -
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का सबसे बड़ा बौद्धिक योगदान “एकात्म मानववाद” का सिद्धांत है
यह उनका मौलिक चिंतन था जो कि भारतीय जीवन-दर्शन का राजनीतिक और आर्थिक स्वरूप है
अंत्योदय -
समाज के अंतिम पंक्ति के व्यक्ति तक विकास और समृद्धि अंत्योदय को पहुँचाना
पश्चिमी पूंजीवाद या साम्यवाद से अलग विकास का भारतीय मॉडल बनाना
धर्म --
-धर्म एक बहुत ही व्यापक और विस्तृत विचार है, जो समाज को बनाए रखने के सभी पहलुओं से संबंधित है
राष्ट्रीयता -
-बिना राष्ट्रीय पहचान के स्वतंत्रता की कल्पना व्यर्थ है
वोट का महत्व -
-हमें सही व्यक्ति को वोट देना चाहिए न की उसके बटुए को, पार्टी को वोट दे किसी व्यक्ति को भी नहीं, किसी पार्टी को वोट न दे बल्कि उसके सिद्धांतों को वोट देना चाहिए
शिक्षा -
एक अच्छे को शिक्षित करना वास्तव में समाज के हित में है
भारतीयता -
अनेकता में एकता और विभिन्न रूपों में एकता की अभिव्यक्ति भारतीय संस्कृति की सोच रही है
ये संयोग है कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें राजस्थान में नमन किया.बांसवाड़ा की सभा में नरेंद्र मोदी ने दीनदयाल उपाध्याय की तस्वीर पर पुष्प अर्पित किए...पंडित दीनदयाल उपाध्याय कई बार राजस्थान आए और उन्होंने जयपुर, अजमेर, बीकानेर और जोधपुर में कई संगठनात्मक कार्यक्रमों में भाग लिया...ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचने के लिए उन्होंने स्वयंसेवकों को प्रेरित किया. उस दौर में राजस्थान के किसान, व्यापारी वर्ग और आम जन को जनसंघ से जोड़ने के लिए उन्होंने विशेष अभियान चलाए.दीनदयाल ने अपने भाषणों में राजस्थान के संदर्भ में यह कहा था कि यह क्षेत्र भौगोलिक दृष्टि से दुर्गम है इसलिए प्रदेश के रेगिस्तानी इलाकों, सीमावर्ती क्षेत्रों, वनवासी और पिछड़े अंचलों के विकास के लिए “अंत्योदय” का विचार ही सबसे उपयुक्त मार्ग है.. उनके यह विचार कालान्तर में 1977 में राजस्थान में भैरोंसिंह शेखावत के नेतृत्व में बनी जनता पार्टी की सरकार के समय सर्वप्रथम देश में लागू की गई योजना “अंत्योदय” में साकार हुए जिसे बाद में केंद्र और राज्यों की अन्य सरकारों ने भी लागू किया..राजस्थान में आदिवासी और पिछड़े इलाकों उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, बारां, सिरोही आदि पिछड़े जनजाति उपयोजना क्षेत्रो के लिए “अंत्योदय” की अवधारणा विशेष रूप से सार्थक रही.
पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जन्म को लेकर भी राजस्थान के धानक्या का नाम आता है..एक विचार ये भी है दीनदयाल उपाध्याय जयपुर के समीप धानक्या में जन्मे थे मान्यता है धानक्या के रेलवे स्टेशन के क्वार्टर में जन्मे थे उनके नाना चुन्नी लाल शुक्ल धानक्या में स्टेशन मास्टर हुआ करते थे विवाद कुछ भी हो लेकिन राजस्थान RSS का स्वयंसेवक,जनसंघी और भाजपाई इस इतिहास पर गर्व करता है कि एकात्म मानववाद के प्रवर्तक धानक्या में जन्मे थे इतना ही नहीं दीनदयाल उपाध्याय ने सीकर और पिलानी में शिक्षा ग्रहण की डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने उनकी कार्यकुशलता और क्षमता से प्रभावित होकर कहा था "यदि मुझे दो दीनदयाल मिल जाएं, तो मैं भारतीय राजनीति का नक्शा बदल दूं"