VIDEO: कांग्रेस के पीसीसी पदाधिकारियों के एक कुनबे का दर्द, विधानसभा चुनाव के दौरान बनाए गए थे पीसीसी पदाधिकारी, देखिए ये खास रिपोर्ट

जयपुर: कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में डैमेज कंट्रोल के चलते टिकट से वंचित नेताओं को मनाने के लिए एक फार्मूला अपनाया था.उस दौरान सैकड़ों टिकट के दावेदार नेताओं को पीसीसी पदाधिकारी बना दिया गया था.पर उनके नियुक्ति आदेश हाईकमान के बजाय प्रभारी रंधावा ने जारी किए थे.जबकि कांग्रेस के संविधान के तहत केवल हाईकमान ही प्रदेश पदाधिकारी अपॉइंटमेंट कर सकते है.लिहाजा अभी तक अनुमोदन नहीं होने के चलते ये रेगुलाइज नहीं हो पाए.

विधानसभा चुनाव 2023 की जंग जीतने के लिए कांग्रेस ने खूब कोशिश की थी.टिकटों के लिए दावेदारों में उस वक्त खूब मारामारी थी.ऐसे में बगावत और नाराजगी पर ब्रेक लगाने के लिए टिकट से वंचित हुए नेताओं को साधने के लिए उन्हें पोस्ट देने का रास्ता निकाला गया.नाराज नेताओं को मनुहार के लिए उन्हें पीसीसी में प्रदेश सचिव और प्रदेश महासचिव जैसे पदों से नवाजा गया.लेकिन नियुक्ति के 19 माह बाद भी अब तक उन्हें आधिकारिक रूप से पीसीसी पदाधिकारी नहीं बनाया गया.क्योंकि कांग्रेस पार्टी के संविधान के तहत केवल हाईकमान ही पीसीसी पदाधिकारी बनाने के ऑर्डर जारी कर सकते हैं.ऐसे में प्रभारी रंधावा के नियुक्ति आदेशों के अनुमोदन आलाकमान ने नहीं किया.

विधानसभा चुनाव के दौरान बनाए गए पीसीसी पदाधिकारियों की पीड़ा:
-डैमेज कंट्रोल के चलते बनाए गए थे करीब 100 पीसीसी पदाधिकारी
-प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा के हस्ताक्षर से हुए थे नियुक्ति आदेश जारी
-प्रदेश महासचिव औऱ प्रदेश सचिव जैसे पदों पर हुई थी नियुक्ति
-टिकट से वंचित नेताओं को साधने के लिए अपनाया था फॉर्मूला
-पुखराज पाराशर और संदीप चौधरी जैसे दिग्गज भी बने थे प्रदेश उपाध्यक्ष
-पार्टी में ये पदाधिकारी चल रहे है हाशिए पर 
-अधिकतर पदाधिकारियों को पार्टी नहीं दे रही कोई खास जिम्मेदारी
-पार्टी की बैठक में भी नहीं बुलाया जाता कईं बार इन पदाधिकारियों को
-हालांकि कुछ पदाधिकारियों को बनाया गया है अब  विधानसभा कोऑर्डिनेटर
-हाईकमान ने इनकी नियुक्ति का नहीं किया अब तक अनुमोदन
-ऐसे में इन्हें नहीं माना जा रहा आधिकारिक रूप से पीसीसी पदाधिकारी

दरअसल उस वक्त प्रदेश नेतृत्व और हाईकमान ने चुनाव तक उनकी नाराजगी और विरोध पर ब्रेक लगाने के लिए यह जानबूझकर रास्ता अपनाया होगा कि पहले प्रभारी से आदेश निकलवा देते है और फिर चुनाव बाद अनुमोदन नहीं करके मामले को रफा दफा कर देते है.यही वजह है कि आज तक आलाकमान ने इनकी नियुक्ति को हरी झंडी नहीं दी औऱ ना ही आधिकारिक रूप से उन्हें  रेगुलाइज किया.हालांकि इन पदाधिकारियों ने पोस्ट का इस्तेमाल करते हुए विजिटिंग कार्ड औऱ लेटरहेड जरूर छपवा रखे हैं.

इनमें से कईं पदाधिकारियों ने दिल्ली से लेकर जयपुर तक नेतृत्व को कईं दफा अपनी पीड़ा भी जाहिर की है.ऐसे में अब प्रदेश नेतृत्व ने उनको आश्वासन दिया है कि जो बेहतर काम करेगा उसे प्रदेश कार्यकारिणी में फेरबदल या विस्तार के तहत बाद में आधिकारिक रूप से पदाधिकारी बना दिया जाएगा.लिहाजा कुछ पदाधिकारियों को विधानसभा कोऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी दी गई है.वहीं कुछ पदाधिकारियों का कहना है कि उन्हें किसी तरह की जिम्मेदारी ही नहीं मिली तो फिर उसके कामकाज औऱ सक्रियता का कैसे आंकलन होगा.लिहाजा कह सकते है इनकी पोजिशन का मामला वाकई एक मजाक औऱ अजीबोगरीब केस बन गया है.