जयपुरः राजधानी में पीपीपी मोड पर चल रहे मेट्रो मास अस्पताल की मुश्किलें बढ़ने वाली है. एसएमएस मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने आमजन की सेवाओं से जुड़ी कई शर्तों के बरसों से चल रहे उल्लघंन को लेकर अस्पताल प्रशासन को नोटिस जारी किया है. इसके साथ ही एग्रीमेंट के हिसाब से कार्रवाई की तैयारी भी शुरू कर दी है. आखिर क्या है पूरा मामला और सख्ती के पीछे की मंशा.
मानसरोवर के विस्तार को देखते हुए 2005 में तत्कालीन सरकार ने 25 करोड़ की लागत से मानस आरोग्य सदन हार्ट केयर एवं मल्टी स्पेशिलिटी अस्पताल यानी "मेट्रो मास अस्पताल" की नींव रखी. मंशा साफ थी कि जयपुर दक्षिण के सबसे प्रमुख इलाके मानसरोवर की जनता को एडवांस और वाजिब दामों पर चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध हो सके. लेकिन 10 हजार वर्गमीटर भूमि पर तैयार अस्पताल के "ओएण्डएम" को चुनौती मानते हुए इसे 30 साल तक पीपीपी मोड पर संचालित करने का जो फैसला किया गया. वो अब बड़ा विवाद लेता जा रहा है. एसएमएस प्रशासन की माने तो मेट्रो मास अस्पताल ने काम संभालने के बाद से ही ना तो नियमानुसार बीपीएल मरीजों का निशुल्क इलाज किया. और ना ही निर्धारित राशि राजकोष में जमा कराई. पिछले 15 सालों से पीपीपी की शर्तों के उल्लंधन के मामले को अब हाईलेवल पर काफी गंभीरता से लिया गया है, जिसके चलते एसएमएस मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने बड़ी सख्ती करते हुए मैसर्स मेट्रो मास हॉस्पिटल प्राइवेट लिमिटेड और मेट्रो इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज प्राइवेट लिमिटेड को नोटिस देकर 60 दिन में जवाब मांगा है.
कागजों में दबकर रह गई गरीब मरीजों के फ्री इलाज की शर्त !
पिछले 15 साल में "मेट्रो मास अस्पताल" प्रशासन की कई खामियां उजागर
हाईलेवल के दखल के बाद अब PPP मोड पर संचालित अस्पताल पर सख्ती
एसएमएस मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने थमाया अस्पताल को सख्त नोटिस
नोटिस में अनुबन्ध की प्रमुख शर्तों का हलावा देते हुए बताई गई खामियां
नोटिस के मुताबिक अस्पताल को 20 फीसदी बीपीएल मरीजों का करना था निशुल्क इलाज
यदि इलाज नहीं किया जाता है तो इसके समकक्ष राशि राज्य सरकार को करानी थी जमा
लेकिन वर्ष 2011 से लेकर अभी तक ना तो इलाज किया और ना ही राशि जमा करवाई गई
इसके अलावा सकल राजस्व का 7.2 फीसदी देने के बजाय शुद्व राजस्व का दिया गया हिस्सा
2011 के बजाय 2017 में खोला गया एस्क्रो अकाउंट,वो भी एग्रीमेंट की मंशा के अनुरूप नहीं
अस्पताल को ऑडिटेड दस्तावेज प्रत्येक तिमाही में करने थे पेश, जो नहीं किए गए
ऐसे में अब एक तरफ जहां अस्पताल प्रशासन को सख्त नोटिस के जरिए दी गई हिदायत
वहीं दूसरी ओर हाईकोर्ट में भी मजबूती से पक्ष रखने के लिए एकत्र किए जा रहे दस्तावेज
इसके लिए सरकार-अस्पताल प्रशासन के बीच हुए एग्रीमेंट के बिन्दुओं की पड़ताल शुरू
मेट्रो मास अस्पताल को नोटिस देने के मामले में एसएमएस मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने फूंक-फूंक के कदम उठाए है. दरअसल, मेट्रो मास अस्पताल की तरफ दायर केस में हाईकोर्ट ने 2021 से "स्टे" दे रखा है. ऐसे में एसएमएस मेडिकल कॉलेज प्राचार्य ने नोटिस भेजने से पहले विधिक राय ली है, ताकि किसी भी बिन्दु पर प्रशासन को बैकफुट पर नहीं आना पड़े. साथ ही नोटिस में भी हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए स्पष्ट किया गया है कि जिन बिन्दुओं पर "स्टे" है, उनमें से किसी पर भी कार्रवाई नहीं की गई है. इसके अलावा अनुबन्ध की प्रमुख शर्तों का उल्लेख करते हुए नोटिस जारी किया गया है.