जयपुरः शारदीय नवरात्रि हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसकी शुरुआत आश्विन माह में होती हैं. इस दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती हैं, जिनमें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्री माता का नाम शामिल है. इस अवधि में व्रत रखने का भी विधान है, जिससे देवी की कृपा प्राप्त होती हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि का उपवास रखने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है. साथ ही मनोवांछित फलों का योग बनता है. पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर - जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि पहले दिन घटस्थापना पर 3 दुर्लभ एवं शुभ योग का निर्माण हो रहा है. इन योग में जगत की देवी मां दुर्गा की पूजा करने से साधक को अक्षय फल की प्राप्ति होगी. इस बार 9 की बजाय 10 दिन की शारदीय नवरात्रि होगी क्योंकि नवरात्रि की एक तिथि में वृद्धि होने के कारण शारदीय नवरात्रि 3 से 12 अक्टूबर तक होगी. सबसे खास बात यह है कि नवमी की पूजा और विजयादशमी का पर्व भी एक ही दिन मनाया जायेगा. इस बार शारदीय नवरात्रि पर्व 9 दिन की बजाय 10 दिन के रहेंगे क्योंकि एक नवरात्रि की वृद्धि हो रही है जिसे श्रेष्ठ माना गया है. इस बार तृतीया तिथि की वृद्धि हुई है इस बार 5 एवं 6 अक्टूबर को तृतीया तिथि रहेगी. इस कारण शारदीय नवरात्रि का समापन 12 अक्टूबर को होगा और इसी दिन दशहरा भी मनाया जायेगा.
ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि तृतीया तिथि 5 अक्टूबर को प्राप्त 5:31 से शुरू होकर अगले दिन 6 अक्टूबर को सुबह 7:50 बजे तक रहेगी. यह तिथि दोनों दिन के सूर्योदय को स्पर्श करेगी इसलिए दोनों दिन तृतीया तिथि का पूजन होगा. पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि का आरंभ 3 अक्टूबर की सुबह 12:19 मिनट से होगा और इसका समापन अगले दिन 4 अक्टूबर की सुबह 2:58 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार, शारदीय नवरात्रि गुरुवार 3 अक्टूबर 2024 से आरंभ होंगी और इस पर्व का समापन शनिवार 12 अक्टूबर 2024 को होगा.
शुभ योग
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि शारदीय नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना के दिन दुर्लभ इंद्र योग का निर्माण हो रहा है. इस योग का संयोग दिन भर है. वहीं, समापन 04 अक्टूबर को सुबह 04:24 मिनट पर होगा. इसके साथ ही आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर हस्त नक्षत्र का संयोग दोपहर 03:22 मिनट तक है. इसके बाद चित्रा नक्षत्र का संयोग बनेगा.
शारदीय नवरात्रि 2024 तिथि
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि का आरंभ 3 अक्टूबर की सुबह 12:19 मिनट से होगा और इसका समापन अगले दिन 4 अक्टूबर की सुबह 2:58 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार, शारदीय नवरात्रि गुरुवार 3 अक्टूबर 2024 से आरंभ होंगी और इस पर्व का समापन शनिवार 12 अक्टूबर 2024 को होगा.
कलश स्थापना शुभ मुहूर्त
घटस्थापना तिथि: 3 अक्टूबर 2024
घटस्थापना मुहूर्त: प्रातः 06:24 मिनट से प्रातः 08: 45 मिनट तक
अभिजित मुहूर्त: सुबह 11:52 मिनट से दोपहर 12:39 मिनट तक
अति आवश्यकता में प्रात: 10:48 से दोपहर 03:12 (चर-लाभ-अमृत) तक भी कर सकते है.
प्रतिपदा के दिन चित्रा नक्षत्र दोपहर 03:32 के पश्चात् है, अत: उसके पूर्व ही घटस्थापना कर लेनी चाहिए.
शारदीय नवरात्रि की तिथियां
3 अक्टूबर 2024 - मां शैलपुत्री प्रतिपदा तिथि
4 अक्टूबर 2024 - मां ब्रह्मचारिणी द्वितीया तिथि
5 - 6 अक्टूबर 2024 - मां चंद्रघंटा तृतीया तिथि
7 अक्टूबर 2024 - मां कुष्मांडा चतुर्थी तिथि
8 अक्टूबर 2024 - मां स्कंदमाता पंचमी तिथि
9 अक्टूबर 2024 - मां कात्यायनी षष्ठी तिथि
10 अक्टूबर 2024 - मां कालरात्रि सप्तमी तिथि
11 अक्टूबर 2024 - मां महागौरी, दुर्गा अष्टमी
12 अक्टूबर 2024 - मां सिद्धिदात्री, दशहरा
सुबह नवमी पूजन और शाम को दशहरा
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि शारदीय नवरात्रि की नवमी तिथि 11 अक्टूबर को दोपहर 12:07 बजे आ जाएगी. जो 12 अक्टूबर को सुबह 10:59 बजे तक रहेगी. इसके बाद दसवीं तिथि आएगी इसलिए 12 अक्टूबर को सुबह नवमी का पूजन होगा और शारदीय नवरात्रि का समापन इसी दिन माना जाएगा. शाम को दशहरा यानी विजयदशमी का पर्व मनाया जाएगा. साथ ही दशहरा पर शस्त्र पूजा भी इसी दिन होगी और शाम को रावण दहन किया जाएगा. जबकि शनिवार होने की वजह से और अगले दिन रविवार को उदियात तिथि में दशमी तिथि होने की वजह से नवरात्रि का उत्थापन रविवार को होगा.
कलश स्थापना
कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि नवरात्रि में कलश स्थापना का विशेष महत्व है. कलश स्थापना को घट स्थापना भी कहा जाता है. नवरात्रि की शुरुआत घट स्थापना के साथ ही होती है. घट स्थापना शक्ति की देवी का आह्वान है. मान्यता है कि गलत समय में घट स्थापना करने से देवी मां क्रोधित हो सकती हैं. रात के समय और अमावस्या के दिन घट स्थापित करने की मनाही है. घट स्थापना का सबसे शुभ समय प्रतिपदा का एक तिहाई भाग बीत जाने के बाद होता है. अगर किसी कारण वश आप उस समय कलश स्थापित न कर पाएं तो अभिजीत मुहूर्त में भी स्थापित कर सकते हैं. प्रत्येक दिन का आठवां मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त कहलाता है. सामान्यत: यह 40 मिनट का होता है. हालांकि इस बार घट स्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त उपलब्ध नहीं है.
कलश स्थापना सामग्री
भविष्यवक्ता डॉ अनीष व्यास ने बताया कि मां दुर्गा को लाल रंग खास पसंद है इसलिए लाल रंग का ही आसन खरीदें. इसके अलावा कलश स्थापना के लिए मिट्टी का पात्र, जौ, मिट्टी, जल से भरा हुआ कलश, मौली, इलायची, लौंग, कपूर, रोली, साबुत सुपारी, साबुत चावल, सिक्के, अशोक या आम के पांच पत्ते, नारियल, चुनरी, सिंदूर, फल-फूल, फूलों की माला और श्रृंगार पिटारी भी चाहिए.
कैसे करें कलश स्थापना
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि नवरात्रि के पहले दिन यानी कि प्रतिपदा को सुबह स्नान कर लें. मंदिर की साफ-सफाई करने के बाद सबसे पहले गणेश जी का नाम लें और फिर मां दुर्गा के नाम से अखंड ज्योत जलाएं. कलश स्थापना के लिए मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज बोएं. अब एक तांबे के लोटे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं. लोटे के ऊपरी हिस्से में मौली बांधें. अब इस लोटे में पानी भरकर उसमें कुछ बूंदें गंगाजल की मिलाएं. फिर उसमें सवा रुपया, दूब, सुपारी, इत्र और अक्षत डालें. इसके बाद कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते लगाएं. अब एक नारियल को लाल कपड़े से लपेटकर उसे मौली से बांध दें. फिर नारियल को कलश के ऊपर रख दें. अब इस कलश को मिट्टी के उस पात्र के ठीक बीचों बीच रख दें जिसमें आपने जौ बोएं हैं. कलश स्थापना के साथ ही नवरात्रि के नौ व्रतों को रखने का संकल्प लिया जाता है. आप चाहें तो कलश स्थापना के साथ ही माता के नाम की अखंड ज्योति भी जला सकते हैं.