मुंबई (महाराष्ट्र): अमृता राव, एक ऐसा नाम जो गरिमा, दृढ़ता और उत्कृष्टता का पर्याय बन चुका है, ने एक बार फिर साबित कर दिया कि सच्चा जुनून और निरंतर प्रयास कभी अनदेखे नहीं रहते. 1979 से 2004 तक भारतीय घरों में एक प्रतिष्ठित समाचार वाचिका के रूप में जानी गई अमृता ने भारतीय टेलीविजन के ब्लैक एंड व्हाइट युग से लेकर आज के जीवंत डिजिटल दौर तक के परिवर्तन को प्रत्यक्ष रूप से देखा है.
अब, उन्होंने भारतीय सिनेमा में एक असाधारण उपलब्धि हासिल की है - 2023 के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में उनकी भावनात्मक रूप से समृद्ध फ़िल्म श्यामची आई को सर्वश्रेष्ठ मराठी फीचर फिल्म के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. वे एमएससी और एलएलबी की डिग्रियां रखती हैं, जो विज्ञान और विधि में उनकी मजबूत शैक्षणिक पृष्ठभूमि को दर्शाता है. चार दशकों से फैले अपने करियर में अमृता ने हमेशा अपनी रचनात्मक प्रवृत्ति का अनुसरण किया है. अपनी ईमानदारी, सौंदर्यबोध और व्यावहारिक दृष्टिकोण के लिए जानी जाने वाली अमृता मराठी फिल्म उद्योग में एक शक्तिशाली शक्ति रही हैं - अपनी कला और व्यावसायिकता के लिए सम्मानित और प्रशंसित.
श्यामची आई, स्वतंत्रता सेनानी साने गुरुजी की आत्मकथात्मक कृति पर आधारित है, जो मातृत्व और भारत की नैतिक संस्कृति को एक दिल को छू लेने वाली श्रद्धांजलि है. यह अमृता के लिए सिर्फ एक और प्रोजेक्ट नहीं था -यह उनका मिशन था, उनकी पुकार. और अंदर से वे जानती थीं कि यह फ़िल्म महानता के लिए बनी है. "मुझे इस बात में कोई शक नहीं था कि इस फ़िल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिलेगा," अमृता राव कहती हैं. "मैंने इसमें सब कुछ झोंक दिया - भावनात्मक रूप से, शारीरिक रूप से, रचनात्मक रूप से. हर निर्णय, हर विवरण, हर दृश्य साने गुरुजी के शब्दों की गरिमा को दर्शाना चाहिए, यही मेरा उद्देश्य था.”
बीसवीं सदी की शुरुआत के कोंकण क्षेत्र को पर्दे पर जीवंत करने के लिए, अमृता ने खुद एक 200 साल पुराना विरासती घर खोजा, हर आधुनिकता के निशान को हटाया और उसे उस युग के अनुरूप पुनर्स्थापित किया. एंटीक कारों, दुर्लभ तटीय लोकेशनों, विंटेज नावों से लेकर यहां तक कि कलाकारों के सिर मुंडवाने तक - अमृता ने प्रामाणिकता के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी. हर चूल्हा, हर बर्तन, हर पोशाक उनकी पैनी निगाह के तहत सावधानी से चुना गया. “आज के समय में विंटेज प्रॉप्स मिलना मुश्किल और महंगा है,” वे बताती हैं. “लेकिन मैं अडिग थी. इस कहानी को श्रद्धा और विस्तार के साथ बताया जाना चाहिए था.”
अमृता प्रसारण की उत्कृष्ट विरासत ही नहीं लातीं, बल्कि भारत की भावनात्मक और सांस्कृतिक नब्ज़ की एक सहज समझ भी उनके साथ है. उन्होंने फुलराणी, हा मी मराठा, और मनीनी जैसी मराठी फिल्मों को भी उसी जुनून के साथ संजोया है, और अब अपने यूट्यूब चैनल के माध्यम से अपने दर्शकों के साथ सिनेमा, जीवन और कला पर आधारित अपने अनुभव साझा करती हैं. श्यामची आई सिर्फ एक राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म नहीं है. यह उस महिला की गवाही है जिसने कहानी कहने के विकास को करीब से देखा है, जो मीडिया और सिनेमा के चौराहे पर खड़ी रही है, और हर बार दिल की आवाज़ को चुना है-शानदार परिणामों के साथ.
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