जयपुर : मोबाइट और डिजिटल स्क्रीन का बढ़ता उपयोग आपको और आपके बच्चों की आंखों को "बीमार" कर रहा है. चौंकिए मत ये कोई हमारा आंकलन नहीं, बल्कि जयपुर समेत प्रदेशभर के अस्पतालों में बढ़ते जा रहे नेत्ररोग के मरीज का रिपोर्ट कार्ड है. इस रिपोर्ट के मुताबिक कोविड के बाद पिछले तीन चार सालों में 40 फीसदी बच्चों में विजन प्रोब्लम देखी गई है, जिसके चलते उन्हें चश्मा लगाना पड़ा है. कई प्रकरणों में तो ब्लाइडनेंस भी रिपोर्ट की गई है. ऐसे में चिकित्सकों ने आमजन के लिए विशेष एडवाइजरी जारी की है.
सवाई मान सिंह अस्पताल की नेत्र ओपीडी के ताज़ा आंकड़ें हम सभी के लिए अलर्ट है. अस्पताल की आई स्पेशलिटी ओपीडी में पहुंचने वाले में से लगभग 40 प्रतिशत बच्चे आंखों की किसी न किसी बीमारी से पीड़ित पाए जा रहे हैं और डॉक्टरों का कहना है कि इसका सबसे बड़ा कारण मोबाइल और डिजिटल स्क्रीन का बढ़ता इस्तेमाल है. अस्पताल के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ पंकज शर्मा का कहना है कि कोरोना के दौरान ऑनलाइन पढ़ाई बच्चों के लिए मजबूरी थी. लेकिन इसके बाद भले ही कोविड खत्म हो गया हो, लेकिन अब ऐसा लगने लगा है कि इस त्रासदी ने बच्चों को मोबाइट और डिजिटल स्क्रीन के उपयोग का लाइसेंस दे दिया हो. स्थिति ये हो गई है कि चाहे पढ़ाई हो या मनोरंजन, बच्चों के लिए मोबाइल स्क्रीन पर निर्भरता काफी बढ़ गई थी. अब बच्चे दिनभर में 3 से 6 घंटे तक मोबाइल या टैबलेट का उपयोग कर रहे हैं, जिसका सीधा असर उनकी आंखों पर पड़ रहा है. चिंता की बात ये है कि ओपीडी में हर तीसरा बच्चा किसी न किसी नेत्र रोग से ग्रसित पाया जा रहा है.
अंधेरे में मोबाइल का उपयोग, तो जा सकती है आंखों की रोशनी !
-मोबाइल और डिजिटल स्क्रीन के बढ़ते प्रचलन का साइड इफेक्ट
-जयपुर समेत प्रदेशभर के अस्पतालों में बढ़ते जा रहे नेत्ररोग के मरीज
-SMS मेडिकल कॉलेज के सीनियर प्रोफेसर डॉ पंकज शर्मा बताए डेटा
-डॉ शर्मा के मुताबिक तीन-चार सालों में 40 फीसदी बच्चों में चढ़ा चश्मा
-उन्होंने बताया कि अक्सर देखने को मिलता है कि बच्चे छिपकर मोबाइल देखते है
-इसके लिए वे अंधेरे कमरे का उपयोग करते है जो सर्वाधिक घातक है
-ज्यादा समय समय तक अंधेरे में मोबाइल देखना आंखों की रोशनी कम करता है
-कई ऐसे प्रकरण भी सामने आए है, जिसमें ब्लाइडनेस भी रिपोर्ट की गई है
मोबाइल का कम से कम उपयोग !
-चिकित्सकों ने सुझाव दिया कि मोबाइल स्क्रीन का कम से कम उपयोग किया जाए
-बच्चों में टीवी इत्यादि देखने की प्रवृत्ति के बजाए आउटडोर एक्टिविटी को बढ़ाए,
-मोबाइल में ब्लू लाइट को कम करने का ऑप्शन होता है, उसको हमेशा ऑन रखें
-मोबाइल की ब्लू लाइट को कम करके यलो लाइट को बढ़ाए, ताकि प्रेशर कम हो
-इसके अलावा उन्होंने ये भी सुझाव दिया है कि सोने के आधे घंटे पहले स्क्रीन छोड़ दें
-ऐसा नहीं करने पर तनाव, अनिद्रा, माइग्रेन जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.
चिकित्सकों के मुताबिक पिछले चार सालों में तेज़ी से ऐसे बच्चे OPD में आ रहे हैं जो अलग अलग आंखों की बीमारी से जूझ रहे हैं. कोरोना से पहले इस तरह के मामले काफ़ी कम थे, कोरोना के बाद मोबाइल की लत बच्चों में काफ़ी बढ़ गई है,जिसके बाद बच्चों में कुछ ऐसी बीमारियां है जो सामान्य तौर से देखने को मिल रही हैं जिनमें- अधिक स्क्रीन के यूज़ से बच्चों में ड्राई आई- मयोपिया (कम नजर)- आंखों में जलन- सिरदर्द और स्क्रीन इंड्यूस्ड वीजुअल स्ट्रेस बढ़ गया है. विशेष रूप से 6 से 15 वर्ष आयु वर्ग के बच्चे अधिक प्रभावित है, जिनके या तो चश्मा चढ़ा है और जिनके पहले से चश्मा लगा हुआ है, तो उनके नम्बर डबल हो चुके है.