अजमेर ( शुभम जैन): अजमेर की विश्वविख्यात ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह पर भी हिंदू मंदिर होने का दावा सामने आया है. इस दावे को लेकर अजमेर की न्यायिक मजिस्ट्रेट (प्रथम वर्ग) की अदालत में सुनवाई हुई, जिसमें हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए प्रतिवादियों को सम्मन जारी किया गया है. मामले की अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी. दिल्ली निवासी हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अपनी याचिका में दावा किया कि अजमेर दरगाह का मूल स्वरूप एक हिंदू मंदिर था, जिसे ‘भगवान श्री संकट मोचन महादेव मंदिर’ के नाम से जाना जाता था.
उन्होंने तर्क दिया कि दरगाह में स्थित झालरा (जल स्रोत) और कुआं इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं. यह दावा इतिहासकार हरविलास शारदा की पुस्तक के आधार पर प्रस्तुत किया गया. याचिका में मांग की गई कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) इस स्थल का सर्वेक्षण करे ताकि इसके मूल स्वरूप का सत्यापन हो सके. वादी ने कहा कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991, यहां लागू नहीं होगा, ठीक वैसे ही जैसे अयोध्या मामले में किया गया. कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, अल्पसंख्यक मामलात विभाग, और दरगाह कमेटी को प्रतिवादी बनाते हुए सम्मन जारी किया. इस मामले में दिनभर चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने बुधवार को दावा स्वीकार कर लिया.
पृष्ठभूमि और घटनाक्रम:
1. 25 सितंबर: विष्णु गुप्ता ने एसीजेएम कोर्ट में याचिका दायर की, लेकिन क्षेत्राधिकार के चलते इसे स्थानांतरित करने को कहा गया.
2. 4 अक्टूबर: जिला एवं सत्र न्यायालय में याचिका ट्रांसफर की अपील की गई.
3. 5 नवंबर: वादी को धमकी मिलने की शिकायत दर्ज करवाई गई.
4. 25 नवंबर: अंतिम याचिका न्यायिक मजिस्ट्रेट अजमेर नगर पश्चिम की अदालत में पेश की गई.
5. 27 नवंबर : आज कोर्ट ने वाद को स्वीकार कर संबधितो को नोटिस जारी करने के आदेश जारी किए.
वादी के अधिवक्ताओं ईश्वर सिंह और योगेश सुरोलिया ने 38 पन्नों की याचिका में 38 बिंदुओं पर तर्क प्रस्तुत किए. उनका कहना है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को स्थल का सर्वेक्षण करने का आदेश दिया जाए। उन्होंने दावा किया कि यह मामला पूजा स्थल अधिनियम के दायरे में नहीं आता. दरगाह मे खादिमों की संस्था के सचिव सरवर चिश्ती ने प्रतिक्रिया दी है उन्होंने दरगाह को "आस्था और सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक" बताया और कहा कि यह विश्वभर में करोड़ों अनुयायियों की श्रद्धा का केंद्र है. सचिव ने कहा कि हमने इतिहास में कई दौर देखे हैं और ऐसे विवाद दरगाह की पवित्रता को प्रभावित नहीं कर सकते. पिछले तीन वर्षों से हिंदू सेना द्वारा इस तरह की बयानबाजी की जा रही है, जो देशहित में नहीं है। गरीब नवाज की दरगाह हमेशा रहेगी और किसी की मुरादें पूरी नहीं होंगी.
अदालत में याचिका स्वीकार होने के बाद अजमेर का खुफिया विभाग सतर्क हो गया है. जिला पुलिस और साइबर सेल सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने वालों पर विशेष नजर रखे हुए हैं. गुप्तचर विभाग दरगाह और आसपास के क्षेत्रों की निगरानी कर रहा है. इस मामले पर 20 दिसंबर को अगली सुनवाई होगी, जिसमें प्रतिवादी पक्षों को अपना जवाब दाखिल करना होगा. अजमेर दरगाह में मंदिर होने का यह दावा देशभर में चर्चा का विषय बन गया है. कोर्ट का फैसला और पुरातत्व सर्वेक्षण इस विवाद में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. प्रशासनिक और कानूनी प्रक्रिया के बीच सामाजिक सौहार्द बनाए रखना एक बड़ी चुनौती होगी.