जयपुरः हम 21वीं सदी में जैसे जैसे आगे बढ़ रहे हैं, पृथ्वी का स्वास्थ्य एक गंभीर चिंता के रूप में उभर रहा है. 22 अप्रैल को विश्व स्तर पर मनाया जाने वाला पृथ्वी दिवस, पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और टिकाऊ प्रथाओं की वकालत करने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करता है. पृथ्वी दिवस 2024 की थीम, "पृथ्वी बनाम प्लास्टिक", इको सिस्टम और मानव स्वास्थ्य दोनों की सुरक्षा के लिए प्लास्टिक के उपयोग को महत्वपूर्ण रूप से कम करने की प्रतिबद्धता बताती है. विश्व पृथ्वी दिवस पर फर्स्ट इंडिया न्यूज़ की खास रिपोर्ट:
- दुनिया भर में वन क्षेत्र प्रति वर्ष औसतन 4.7 मिलियन हेक्टेयर घट रहा है
- पर्यावरण पर सार्थक प्रभाव डालने के लिए एक पेड़ को कम से कम 10-20 साल तक जीवित रहना चाहिए
- वन विश्व की अनुमानित 80% स्थलीय प्रजातियों का घर हैं
- 2015-2020 के दौरान, हर साल दुनिया भर के जंगलों से 10 मिलियन हेक्टेयर पेड़ हटा दिए गए थे
- इसी अवधि में हर साल केवल 5 मिलियन हेक्टेयर पेड़ लगाए गए थे
- हर साल विश्व स्तर पर अनुमानित 300,000 व्हेल, डॉल्फ़िन और पोरपोइज़ (सिटासियन) की मौत होती है
- घास के मैदानों की 74% पक्षी प्रजातियाँ गिरावट में हैं - यूरोप में 5 में से 1 पक्षी प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर है
- विश्व की एक तिहाई खाद्य आपूर्ति मधुमक्खियों पर निर्भर है
- मधुमक्खियों द्वारा परागित वैश्विक फसल उत्पादन का मूल्य 577 बिलियन डॉलर है
- एक पाउंड गोमांस में अनुमानित 1,800 गैलन पानी खर्च होता है
- इतने पानी से, आप एक दिन में 105 बार आठ मिनट तक स्नान कर सकते हैं
- 30% कार्बन उत्सर्जन का कारण भोजन है
पर्यावरण संरक्षण के काम की जो लोग तनख्वाह लेते हैं, उनसे कई गुना अच्छा काम कई निजी लोगों और एनजीओ ने करके दिखाया है. कारोना काल ने हमें ऑक्सिजन की कीमत सिखा दी, पेड़ जो हमें हमारे जीवनकाल मे अरबों खरबों रुपए की फ्री ऑक्सिजन देते थे उनकी हमनें कद्र नहीं जानी, बेतहाशा और अंधाधुंध पेडों की कटाई और प्रदूषण नें हमें एक ऐसे वातावरण में ला कर खड़ा कर दिया है कि आज हवा में सांस लेना भी मुश्किल हो रहा है, सोचो, हम अपने आने वाली पीढ़ी को क्या दे रहे हैं एक प्रदूषित पृथ्वी जिस पर जीने के लिए भी संघर्ष करना पड़े. एक तरफ हम चांद तारों और मंगल पर जीवन की खोज कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ ये पृथ्वी जिसने हमें और हमारे साथ करोड़ों प्रजातियों को जीवन दिया उसे केवल मात्र मनुष्य नें अपने असीम लालच की भेंट चढ़ा दिया. जिस पैसे के लालच में हमनें पर्यावरण का नुकसान किया है, हमें पता होना चाहिए कि हमारे कफ़न के साथ धन दौलत नहीं जाती बस या तो वही चिता की लकड़ियां होती हैं या फिर 2 गज की जमीन. हमें बहुत जल्दी भूल भी जाते हैं क्या हमें याद है वो कोरोना काल का लॉक डाउन जिसमें हवा तक स्वच्छ हो गयी थी मानवीय गतिविधियां कम होने से, दूर दूर के प्राकृतिक नज़रों को हम नंगी आखों से देख सकते थे, प्रदूषण का स्तर कम हो गया था, दिल्ली से लेकर कई बड़े बडे शहरों का ए.क्यू.आई. लेवल सुधर गया था. वन्यजीव स्वछंद विचरण करने लग गए थे, नदी नाले, तालाब स्वच्छ और निर्मल हो गए थे यहां यहां तक कि पवित्र गंगा का पानी भी साफ हो गया था. लेकिन जैसे ही पाबंदियां हटी तो फ़िर हम अपने पुराने ढर्रे पर लौट आए. राजसमंद के पिपलांत्री जैसे गांव भी हमारे लिए आदर्श हैं जहां बेटी के जन्म पर 101 पेड़ लगाने की परंपरा है. क्या हफ्ते में मात्र 2 दिन हम अपने आपको घर परिवार तक सीमित नहीं कर सकते, मात्र 2 दिन वाहनों का उपयोग बंद नहीं कर सकते, मात्र दो दिन बड़ी बड़ी इंडस्ट्री को शट डाऊन नहीं कर सकते. वैसे तो हर दिन करना चाहिए लेकिन क्या हर हफ्ते में मात्र 2 दिन बिजली और पानी की बचत नहीं कर सकते. हमेशा के लिए सिंगल यूज़ प्लास्टिक का उपयोग बंद नहीं कर सकते. जंगलो में लापरवाही और लालच के कारण आग लगाना बंद नहीं कर सकते, वन्यजीवों को दिन रात परेशान करना बंद नहीं कर सकते. क्या कॉन्क्रीट के जंगल हमारी कॉलोनियों में ऑक्सी ज़ोन नहीं बना सकते. ईच वन, प्लांट वन का महत्व नहीं समझ सकते. हमें समझना होगा की प्रकृति की विनाश हमारा स्वयं का विनाश है. लेकिन अब समय आ गया है कि सरकारों को और आमजन को मिलकर प्रकृति संरक्षण के प्रयास करने होंगे नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब हमें हमारे पीठ के पीछे ऑक्सिजन सिलेंडर लटका के घूमना होगा. "प्लैनेट बनाम प्लास्टिक" के साथ, पृथ्वी दिवस 2024 से 2040 तक प्लास्टिक उत्पादन में 60% की कमी, एकल-उपयोग प्लास्टिक के उन्मूलन पर फोकस रहेगा. हमारे प्राकृतिक और शहरी पर्यावरण को खतरे में डालने वाले व्यापक प्रदूषण को कम करने के लिए ये जरुरी है.
निर्मल तिवारी फर्स्ट इंडिया न्यूज़, जयपुर