जयपुरः देश दुनिया में बेहतर साइटिंग और शानदार प्रबंधन के लिए लोकप्रिय हुए झालाना लेपर्ड रिजर्व के कमजोर प्रे बेस और मॉनिटरिंग में उदासीनता ने सब चौपट कर दिया है. झालाना और आमागढ़ रिजर्व के कमजोर प्रे बेस के चलते यहां के वन्य जीव आसपास की बस्तियों में दिख रहे हैं और कुछ भोजन पानी की तलाश में हादसों का शिकार हो रहे है. यहां पर्यटकों की संख्या में भी कमी देखने को मिल रही है. एक रिपोर्ट:
करीब 20 वर्ग किलोमीटर में फैले झालाना लेपर्ड रिजर्व में करीब 40 लेपर्ड का विचरण है. लेपर्ड्स की अधिक संख्या के चलते यहां पर्यटकों को वाइल्ड में लेपर्ड की साइटिंग के अवसर भी करीब 90 फीसदी रहते हैं. ऐसे में इसकी लोकप्रियता अपने चरम पर थी. पिछले दिनों अधिकारियों के तबादलों के बाद यहां मैनेजमेंट तेजी से गड़बड़ा गया. रिक्त पदों से भी मॉनिटरिंग और ट्रेकिंग प्रभावित हुई. हालात इतने बदतर हो गए कि झालाना के लेपर्ड और दूसरे वन्य जीव भोजन-पानी को तरस गए. कमजोर प्रे बेस के चलते लेपड आसपास की बस्तियों से कुत्ते, बिल्ली, बकरी और शुकर सहित दूसरे मवेशियों पर हमला करने लगे. पिछले दिनों एक लेपर्ड और एक हाइना वन विभाग के मुख्यालय अरण्य भवन के पास ही हादसे का शिकार हो गए. दोनों की गलती इतनी थी कि वे जंगल में भोजन न मिलने से आसपास भोजन की तलाश में निकले और सड़क हादसे में जान गंवा बैठे. लेपर्ड का लगातार एमएनआईटी, कुलिश वन में दिखाई देना चिंता का विषय है. इसी तरह 2 फरवरी को झालाना बस्ती से लेपर्ड एक कुत्ते को उठा ले गया. पाम कोर्ट कॉलोनी में भी ऐसी ही घटना हुई. विगत 20 दिसंबर को झालाना की इंदिरा कॉलोनी में लेपर्ड भोजन की तलाश में भटकते दिखे. विगत 17 नवंबर को दो लेपर्ड भोजन की तलाश में झालाना बुकिंग विंडो तक आ गए। पिछले वर्ष मई में लेपर्ड और उसका शावक भोजन पानी की तलाश में कैम्बे गोल्फ रिजॉर्ट में पहुंच गए थे। पिछले वर्ष 27 अप्रैल को सूर्या सिटी में लेपर्ड ने दो गोवंश और श्वानों का किया शिकार किया था। ऐसे दर्जनों उदाहरण है जब लेपर्ड भोजन पानी की तलाश में रिजर्व से बाहर निकला। दरअसल वन विभाग को दो वर्ष पहले ही घना से 50 चीतल लाकर झालाना छोड़ने की अनुमति मिल गई थी लेकिन आज तक चीतल नहीं लाए जा सके। यहां के लेपर्ड मोर, लंगूर, गिलहरी को अपना शिकार बना रहे हैं. अच्छा प्रे बेस न होने से झालाना की ख्याति धूमिल हो रही है। जिम्मेदार अधिकारी आचार संहिता के नाम पर पल्ला झाड़ रहे. ऐसे में आशंका खड़ी हो गई है कि गर्मी तेज होने पर यहां के लेपर्ड भोजन के इंतजाम के लिए इंसानी बस्तियों का रुख करेंगे. इसे जयपुर वासियों के लिए बड़ी थ्रेट माना जा रहा है. यही नहीं भोजन पानी की कमी के चलते यहां के कुछ लेपर्ड दूसरे जंगलों में मूव कर गए हैं. ऐसे में यहां साइटिंग भी गिरी है यही कारण है कि आमागढ़ पूरी तरह फ्लॉप हो गया है और झालाना से भी पर्यटक विमुख हो रहे हैं. आमागढ़ में डेढ़ वर्ष से पहाड़ से पत्थर गिरने के चलते किल्लनगढ़ और रघुनाथगढ़ को जोड़ने वाले रास्ते बंद हैं. ऐसे में पर्यटकों को कुछ किलोमीटर में सफारी करवाकर गुमराह किया जा रहा है। दोनों रिजर्व में 50 से ज्यादा लेपर्ड हैं लेकिन साइटिंग 5-6 लेपर्ड की ही होती है. शेष लेपर्ड कहां हैं और कैमरा ट्रेप में कबसे नहीं दिखे इसे लेकर भी रिजर्व प्रबंधन उदासीनता बरत रहा है जिसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं.