जयपुरः भारत आस्था का अनूठा संगम है और इसी आस्था पर जीवित है विश्व का सबसे प्राचीनतम धर्म. भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का हिन्दू धर्म में एक अलग स्थान है. जातक कथाओं और महाभारत के अनुसार मथुरा के कारागार में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म माँ देवकी के गर्भ से उस समय हुआ था जब चारों तरफ पाप, अन्याय और आतंक का प्रकोप था, धर्म जैसे ख़त्म सा हो गया था. धर्म को पुनः स्थापित करने के लिए ही द्वापर युग में कान्हा का जन्म हुआ था. आज भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी इसी उद्देश्य से मनाई जाती है. भारत के प्रत्येक हिस्से में जन्माष्टमी बड़े ही धूम-धाम से मनाई जाती है ख़ासकर उत्तर भारत में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी एक विशेष पर्व है. वृन्दावन की गलियाँ हो या फिर सुदूर गाँव की चौपाल या फिर शहर का भव्य मंदिर, जन्माष्टमी पर हर भक्त झूम उठता है. जितना ज़रूरी जन्माष्टमी को मनाना है उससे कहीं ज्यादा ज़रूरी इसके पीछे छुपे उद्देश्य को जानना भी है.
जन्माष्टमी पर्व को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है. यह पर्व पूरी दुनिया में पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. जन्माष्टमी को भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं. श्रीकृष्ण युगों-युगों से हमारी आस्था के केंद्र रहे हैं. वे कभी यशोदा मैया के लाल होते हैं, तो कभी ब्रज के नटखट कान्हा.
भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन 26 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता. इस दौरान घरों को संजाया जाता है और लोग अपने प्यारे कान्हा के जन्म को उत्सव मनाकर मनाते हैं. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पूरे भारत वर्ष में विशेष महत्व है. यह हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है. ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु ने धर्म की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण के रूप में आठवां अवतार लिया था. देश के सभी राज्य अलग-अलग तरीके से इस महापर्व को मनाते हैं. इस दिन क्या बच्चे क्या बूढ़े सभी अपने आराध्य के जन्म की खुशी में दिनभर व्रत रखते हैं और कृष्ण की महिमा का गुणगान करते हैं. दिनभर घरों और मंदिरों में भजन चलते रहते हैं. मंदिरों में जबरदस्त तरीके से संजाया जाता है और स्कूलों में श्रीकृष्ण लीला का मंचन होता है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का विशेष महत्त्व है. भाद्रपद महीने की अष्टमी तिथि पर पूर्णावतार योगिराज श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. इसी दिन उमा-महेश्वर व्रत भी किया जाता है. इस दिन श्रीकृष्ण का व्रत करने से पुण्य वृद्धि होती है. जन्माष्टमी पर व्रत के साथ भगवान की पूजा और दान करने से सभी प्रकार की परेशानियां दूर हो जाती है.
अमीर-गरीब सभी लोग यथाशक्ति-यथासंभव उपचारों से योगेश्वर कृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं. जब तक उत्सव सम्पन्न न हो जाए तब तक भोजन कदापि न करें. जो वैष्णव कृष्णाष्टमी के दिन भोजन करता है, वह निश्चय ही नराधम है. उसे प्रलय होने तक घोर नरक में रहना पडता है भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हमें यह सीख देता है कि जिस तरह मामा कंश की लाख कोशिशों के बाद भी माँ देवकी ने कान्हा को जन्म दिया क्यूंकि उन्हें भगवान पर भरोसा था और यह उम्मीद थी कि एक दिन ज़रूर ऐसा आएगा कि उनके भाई का अधर्म, धर्म से अवश्य हार जायेगा. इसी प्रकार हमें भी ईश्वर पर भरोसा रख अपने तन-मन-धन से धर्म को बरकरार रखना चाहिए.
जन्माष्टमी कब और क्यों मनाई जाती है:
भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का दिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. जन्माष्टमी पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, जो रक्षाबंधन के बाद भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है.श्रीकृष्ण देवकी और वासुदेव के 8वें पुत्र थे. मथुरा नगरी का राजा कंस था, जो कि बहुत अत्याचारी था. उसके अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे थे. एक समय आकाशवाणी हुई कि उसकी बहन देवकी का 8वां पुत्र उसका वध करेगा. यह सुनकर कंस ने अपनी बहन देवकी को उसके पति वासुदेवसहित काल-कोठारी में डाल दिया. कंस ने देवकी के कृष्ण से पहले के 7 बच्चों को मार डाला. जब देवकी ने श्रीकृष्ण को जन्म दिया, तब भगवान विष्णु ने वासुदेव को आदेश दिया कि वे श्रीकृष्ण को गोकुल में यशोदा माता और नंद बाबा के पास पहुंचा आएं, जहां वह अपने मामा कंस से सुरक्षित रह सकेगा. श्रीकृष्ण का पालन-पोषण यशोदा माता और नंद बाबा की देखरेख में हुआ. बस, उनके जन्म की खुशी में तभी से प्रतिवर्ष जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है.
तरह – तरह की विधाएं
आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि भारत में लोग अलग – अलग तरह से जन्माष्टमी मानते है. वर्तमान समय में जन्माष्टमी को दो दिन मनाया जाता है, पहले दिन साधू-संत जन्माष्टमी मानते है. मंदिरों में साधो – संत झूम-झूम कर कृष्ण की अराधना करते है. इस दिन साधुओं का जमावड़ा मंदिरों में सहज है| उसके अगले दिन दैनिक दिनचर्या वाले लोग जन्माष्टमी मानते है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन मौके पर भगवान कान्हा की मोहक छवि देखने के लिए सुदूर इलाको से श्रद्धालु आज के दिन मथुरा पहुंचते हैं. श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर पूरी मथुरा और वहां पहुंचे श्रद्धालु कृष्णमय हो जाते है. मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है. मथुरा और आस-पास के इलाको में जन्माष्टमी में स्त्री के साथ-साथ पुरुष भी बारह बजे तक व्रत रखते हैं. इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है. और रासलीला का आयोजन होता है.
द्वारकाधीश, बिहारीजी एवं अन्य सभी मन्दिरों में इसका भव्य आयोजन होता हैं, जिनमें भारी भीड़ होती है. भगवान के श्रीविग्रह पर हल्दी, दही, घी, तेल, गुलाबजल, मक्खन, केसर, कपूर आदि चढ़ा ब्रजवासी उसका परस्पर लेपन और छिड़काव करते हैं तथा छप्पन भोग का महाभोग लगाते है. वाद्ययंत्रों से मंगल ध्वनि बजाई जाती है. जगदगुरु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव नि:संदेह सम्पूर्ण विश्व के लिए आनंद-मंगल का संदेश देता है. सम्पूर्ण ब्रजमंडल, नन्द के आनंद भयो - जय कन्हैय्या लाल की जैसे जयघोषो व बधाइयो से गुंजायमान होता है. पुलिस लाइन्स, सेना के मुख्यालयों पर भी मनमोहक कार्यक्रम का आयोजन होता है. अतः आइये आपसी द्वेष और मनमुटाव को मिटा कर कन्धा से कन्धा मिला कर इस ख़ूबसूरत पर्व को मनाएं और अपनी आस्था को बरक़रार रखे क्यूंकि हमारा धर्म यही सीखता है कि हम सुख-दुःख में हम एक दूसरे साथ दे.
ऐसे मनाएं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा और भक्ति के लिए उपवास करें. अपने घर की विशेष सजावट करें. घर के अंदर सुन्दर पालने में बालरूप श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित करें. रात्रि बारह बजे श्रीकृष्ण की पूजन के पश्चात प्रसाद का वितरण करें. विद्वानों, माता-पिता और गुरुजनों के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लें. इसके साथ ही यह ध्यान रखें कि परिवार में कोई भी किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन बिल्कुल न करे. इस दिन के लिए आप अपने घर को संजा सकते हैं. हम पेश कर रहे हैं ऐसे कई आफर्स जहां से आप जन्माष्टमी को शानदार तरीके से मना सकते हैं.
तैयारियां:
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन मंदिरों को खासतौर पर सजाया जाता है. जन्माष्टमी पर पूरे दिन व्रत का विधान है. जन्माष्टमी पर सभी 12 बजे तक व्रत रखते हैं. इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं और भगवान श्रीकृष्ण को झूला झुलाया जाता है और रासलीला का आयोजन होता है.
दही-हांडी/मटकी फोड़ प्रतियोगिता:
जन्माष्टमी के दिन देश में अनेक जगह दही-हांडी प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है. दही-हांडी प्रतियोगिता में सभी जगह के बाल-गोविंदा भाग लेते हैं. छाछ-दही आदि से भरी एक मटकी रस्सी की सहायता से आसमान में लटका दी जाती है और बाल-गोविंदाओं द्वारा मटकी फोड़ने का प्रयास किया जाता है. दही-हांडी प्रतियोगिता में विजेता टीम को उचित इनाम दिए जाते हैं. जो विजेता टीम मटकी फोड़ने में सफल हो जाती है वह इनाम का हकदार होती है.
वाल स्टीकर्स
भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े स्टीकर आप अपने घरों की दीवालों पर लगा सकते हैं. इससे आपको घर में झांकी बनाने में मदद मिलेगी.
बच्चों के लिए ड्रेस
अगर आपके घर में छोटे बच्चे हैं तो आप उन्हें कान्हा का लुक दे सकते हैं. ऑनलाइन कई तरह की ड्रेस मिल रही हैं जो कि आपको बच्चों को कान्हा के रूप में परिवर्तित कर देंगे. इन ड्रेस को पहनकर सबको लगेगा कि आपका बच्चा कान्हा का अवतार हो गया है.
भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति
मार्केट में कई तरह की मूर्ति बाजार में आ रही है. इन मूर्तियों के बिना श्रीकृष्ण जन्माष्टमी अधूरी है. आप इनको खरीदकर अपने घर की शोभा में चार चांद लगा सकते हैं.