रिपोर्टर- दिनेश डांगी
जयपुरः राजस्थान में बतौर विपक्ष कांग्रेस भले ही इस दफा विधायकों की संख्या के लिहाज से मजबूत हो. सदन में सरकार को विभिन्न मुद्दों पर घेरने का भी कोई मौका नहीं छोड़ा. लेकिन सड़कों पर संघर्ष करने और आंदोलन करने के मामले में बैकफुट पर है. गुटबाजी, मैनेजमेंट और अन्य कईं वजह के चलते कांग्रेस 9 माह में भजनलाल सरकार के खिलाफ एक भी कोई बड़ा आंदोलन नहीं खड़ा कर पाई है.
विधानसभा चुनाव 2023 का जब रिजल्ट सामने आया तो भले ही कांग्रेस सत्ता से रुखसत हो गई थी. लेकिन अच्छी तादाद में कांग्रेस के 71 विधायक चुनकर विधानसभा की दहलीज तक पहुंचे. तब सभी एक्सपर्ट का यही आकलन था कि इस बार कांग्रेस सदन से लेकर सड़क तक सरकार की नाक में दम कर देगी. कांग्रेस ने सदन में तो जरुर जनहित के मुद्दों पर सरकार को खूब आड़े हाथों लिया और मीडिया में जमकर सुर्खियां भी बटोरी. लेकिन सदन के बाहर सड़कों पर कांग्रेस की यह परफॉर्मेंस थोड़ी फीकी दिखी. कईं ऐसे मसले थे जिनको अगर कांग्रेस एग्रेसिव तरीके से उठाती तो जनता की नजरों में छा जाती. जैसे
गर्मियों में बिजली कटौती-पेयजल सप्लाई का मुद्दा
लगातार बढता राज्य में अपराध
गहलोत सरकार की स्कीम बंद करना या नाम बदलना
किरोड़ी मीणा का मंत्री पद से इस्तीफा प्रकरण
कईं तरह के चार्ज बढाते हुए बिजली महंगी करना
इसके अलावा मुख्यमंत्री चिरंजीवी जैसे कईं योजनाएं थी जिसको लेकर अगर कांग्रेस मुखरता से सड़कों पर संघर्ष करती या आवाज बुलंद करती तो जनता का भी भरपूर सपोर्ट मिल सकता था. लेकिन कांग्रेस नेता सिर्फ मीडिया में बयान देने या फिर सोशल मीडिया में राय जाहिर करने तक ही सीमित हो गए. कांग्रेस का यह लचीला स्टैंड अच्छा संख्या बल होने के बावजूद उसके मजबूत और स्थापित विपक्ष होने पर सवालिया निशान खड़े करता है.
दरअसल राजस्थान कांग्रेस अब भी कईं धड़ों में बंटी हुई है. गुटबाजी के चलते बड़ा प्रदर्शन करने में भीड़ जुटाना एक चैलेंज बन चुका है. इसके अलावा अशोक गहलोत स्वस्थ नहीं थे तो सचिन पायलट गुट अपनी अलग राह पर है. ऐसे में विधायक भी दूरियां बनाए हुए है. यही वजह है कि भजनलाल सरकार के खिलाफ 9 माह में कांग्रेस कोई यादगार आंदोलन अब तक नहीं चला पाई. यही वजह है कि कांग्रेस मुखिया अब संगठन का पुनर्गठन करते हुए उसको धार देने में जुट गए है.