जयपुरः देश में लोकसभा चुनाव की चौसर बिछ चुकी है. राजस्थान के शेखावाटी के झुंझनूं जिले में भी सियासत अब चरम पर आने लग गई है. वीरो और सेठ-साहूकारों की इस धरती पर इस बार मुकाबला भाजपा के शुभकरण चौधरी और कांग्रेस के बृजेन्द्र ओला के बीच है. दोनों ही प्रत्याशी इस बारे नए हैं, लेकिन इनकी राजनीतिक विरासत पुरानी है. कांग्रेस के दबदबे वाली झुंझुनूं सीट पर पिछले दो बार से भाजपा काबिज है. कांग्रेस इस सीट को फिर अपने पास लाने के लिए जुटी है, तो भाजपा मोदी की नाव में सवार होकर जीत की हैट्रिक लगाने को कोशिश में है. आखिर क्या है इस बार शूरवीरों की इस धरती मिजाज ? आईये देखते हैं हमारे ब्यूरो चीफ नरेश शर्मा की इस रिपोर्ट में
झुंझुनूं लोकसभा क्षेत्र. यह वहीं धरती है, जिसने दुनिया को उद्योग जगत के सितारे और बिज़नेस टाइकून ख़ूब दिए. वीरों की इस भूमि की धमक ब्रिटिश किंगडम को भी थर्राती रही है. यह वहीं जिला है, जो महिला शिक्षा में राजस्थान में अग्रणी रहा है. कभी निरक्षर और रूढ़िवादी रहे इलाके में शिक्षा और विवेकशीलता की लौ स्वामी दयानंद सरस्वती और उनके शिष्य स्वामी नित्यानंद ने जलाई थी. देश् के बड़े सेठ साहूकार घनश्यामदास बिड़ला, जुगलकिशोर बिड़ला पिलानी से थे, तो डालमिया चिड़ावा से, मफतलाल झुंझुनूं से तो सिंघानिया सिंघाना से. मोरारका और पोद्दार नवलगढ़ से तो गोयनका मुकुंदगढ़ से. परसरामपुरिया परसरामपुर से. पीरामल परिवार भी झुंझुनूं से है. इन परिवारों की औद्योगिक सफलता की कहानियां सबको मालूम हैं. कहते हैं कि झुंझुनूं से निकले झूठ, भरूंट और रंगरूट का मुक़ाबला कोई नहीं कर सकता! तो ऐसे में अगर बात राजनीति की हो, तो यहां से निकले नेताओं का भी क्या ही कहना. मौजूदा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, शीशराम ओला, कैप्टन अयूब, राजस्थान के पहले विधानसभा अध्यक्ष नरोत्तमलाल जोशी जैसे नेताओं की कर्मस्थली भी यहीं भूमि रही है. राजनीतिक रूप से कभी कांग्रेस के दबदबे वाला इस सीट पर दो बार से कमल खिल रहा है. आईये एक नजर डाल लेते हैं, देश की सबसे बड़ी पंचायत में अब तक झुंझुनूं का प्रतिनिधित्व करने वालो पर, इस सीट पर अब तक 17 बार हुए चुनावों में कांग्रेस का दबदबा रहा हैं.
झुंझुनूं के अब तक के सांसद
1952 : पन्नालाल बारूपाल कांग्रेस
1952 : आरआर मुरारका कांग्रेस
1957 : आरआर मुरारका कांग्रेस
1962 : आरआर मुरारका कांग्रेस
1967 : आरके बिड़ला स्वतंत्र पार्टी
1971 : शिवनाथ सिंह कांग्रेस
1977 : कन्हैयालाल भारतीय लोकदल
1980 : भीमसिंह जनता पार्टी
1984 : मुहम्मद अय्यूब खान कांग्रेस
1989 : जगदीप धनखड़ जनता दल
1991 : मुहम्मद अय्यूब खान कांग्रेस
1996 : शीशराम ओला इंदिरा कांग्रेस (तिवाड़ी)
1998 : शीशराम ओला इंदिरा कांग्रेस (सेकुलर)
1999 : शीशराम ओला कांग्रेस
2004 : शीशराम ओला कांग्रेस
2009 : शीशराम ओला कांग्रेस
2014 : संतोष अहलावत भाजपा
2019 : नरेंद्र कुमार भाजपा
झुंझुनूं जिले के राजनीतिक भूगोल में जाए, तो यहां की आठ विधानसभा सीटों में से छह पर कांग्रेस का कब्जा है. झुंझुनूं लोकसभा सीट में झुंझुनूं, मंडावा, फतेहपुर, नवलगढ़, उदयपुरवाटी, पिलानी, सूरजगढ़ और खेतड़ी विधानसभा क्षेत्र आते हैं. झुंझुनूं से कांग्रेस के बृजेन्द्र ओला, सूरजगढ़ से श्रवण कुमार, पिलानी से पितराम सिंह काला, उदयपुरवाटी से भगवानाराम सैनी, मंडावा से रीटा चौधरी और फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र से हाकम अली विधायक हैं. जबकि खेतड़ी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के धर्मपाल गुर्जर और नवलगढ़ से विक्रम सिंह जाखल विधायक हैं. खास बात है फतेहपुर. प्रशासनिक दृष्टि से यह सीकर जिले में आता है, लेकिन लोकसभा चुनाव में फतेहपुर की गिनती झुंझुनूं में होती है. झुंझुनूं लोकसभा क्षेत्र में कुल 20 लाख 61 हजार 889 मतदाता हैं. इनमें 29 हजार 576 सर्विस वोटर्स हैं. जबकि 10 लाख 77 हजार 370 पुरुष और 9 लाख 84 हजार 519 महिला मतदाता है. झुंझुनूं लोकसभा क्षेत्र के जातिगत समीकरण की बात करे, तो झुंझुनूं लोकसभा क्षेत्र जाट बाहुल्य है. यहां मोटे तौर पर जाट मतदाताओं की संख्या 4 लाख 33 हजार के करीब मानी जाती है. वहीं राजपूत मतदाताओं की संख्या 2 लाख 12 हजार और 1 लाख 15 हजार ब्राह्मण मतदाता बताए जाते हैं. यहां अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या 2 लाख 99 हजार, माली 1 लाख 92 हजार, मुस्लिम 1 लाख 90 हजार, गुर्जर 92 हजार, कुम्हार 72 हजार, यादव 61 हजार, अनुसूचित जनजाति 45 हजार, खाती 38 हजार और वैश्य 35 हजार मानी जाती है. यह राजस्थान का एकमात्र ऐसा लोकसभा क्षेत्र है, जिसने मुस्लिम सांसद दिया और उसे दो बार लोकसभा भेजा. इसके अलावा और कहीं से भी कभी कोई मुस्लिम सांसद नहीं जीता. चुनाती बिसात बिछ चुकी है, तो स्थानीय मुददे भी उठने लगे है. हालांकि लोकसभा चुनाव इन मुद्दों के बिना ही लड़ा जा रहा है, लेकिन जब फर्स्ट इंडिया ने जनता से मुद्दे जाने तो यह सामने आए.
झुंझुनूं लोकसभा के ये हैं बड़े मुद्दे
– पेयजल की समस्या और क्षतिग्रस्त सडकें
– 4 साल से अधूरे रेलवे ओवेरब्रिज का निर्माण
– कुंभाराम नहर लिफ्ट परियोजना का पानी नहीं मिलना
– ग्रामीण इलाकों में यातयात के साधनों का अभाव
– फतेहपुर, मंडावा और बिसाऊ सहित बड़े कस्बों में जलभराव की समस्या
– खेतड़ी और उदयपुरवाटी इलाके में अवैध खनन
– 1994 में हुए समझौते के अनुसार यमुना के पानी की मांग
कहते हैं झुंझुनूं के चिड़ावा के पेड़े हों या यहां की राजनीति प्रतिभाएं, सबका अपना ऐसा स्वाद है कि वह भूला ही नहीं जाता. नवलगढ़ की हवेलियां हों या खेतड़ी कॉपर माइंस या बिट्स पिलानी या फिर उद्योगपति बिड़ला के चुनाव हारने जैसी राजनीतिक घटनाएं लोगों के जहन से दूर हटती ही नहीं है. अब 2024 का चुनावी मंच सज गया है. मुकाबला काँग्रेस के विधायक व पूर्व मंत्री विजेंद्र ओला और भाजपा के शुभकरण चौधरी के बीच है. कांग्रेस में जब कोई चुनाव लड़ने को तैयार नहीं था, तब विजेंद्र ओला ने चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया. विधानसभा के हिसाब से देखें तो संतुलन काँग्रेस के पक्ष में है; क्योंकि आठ विधानसभा सीटों में से छह पर काँग्रेस के विधायक हैं, जबकि भाजपा सिर्फ दो पर है. विजेंद्र ओला के पास शीशराम ओला की राजनीतिक विरासत है. लेकिन काँग्रेस के भीतर हालात सहज नहीं. भाजपा में भी हालात आसान नहीं है हैं. भाजपा ने मौजूदा सांसद नरेंद्र सिंह की टिकट इसलिए काट दी, क्योंकि वे विधानसभा चुनाव हार गए. अब नरेंद्र की जगह टिकट शुभकरण को दी है, जो दो बार विधानसभा चुनाव हार गए. उनके पक्ष में एक ही बात है कि पूर्व सांसद संतोष अहलावत जो नरेंद्र से पहले सांसद रह चुकी है, आपस में समधी है. बिजेंद्र तो ओला की राजनीतिक विरासत के आधार पर चुनाव लड़ रहे है, तो शुभकरण को मोदी लहर का भरोसा है. विजेंद्र के पक्ष में एक बात ये भी है कि अगर वे जीत जाते हैं तो झुंझुनूं विधानसभा सीट खाली हो जाएगी. ऐसे में खाली होने वाली सीट पर जीत की ललचाहट जितनी काँग्रेस के नेताओं के हिस्से आती है, उतनी ही भाजपा के नेताओं के हिस्से में भी होगी.
झुंझुनूं की जनता मतदान करे इससे पहले आइये भाजपा व कांग्रेस के उम्मीदवारों के बारे में थोड़ा और जान लेते हैं. कांग्रेस प्रत्याशी बृजेंद्र ओला की संपत्ति 4 महीने 27 लाख बढ़ गई है. लेकिन नकदी 10 हजार रुपए घट गई है. ओला करोड़पति हैं, लेकिन उनके पास कोई वाहन नहीं है. जबकि उनकी पत्नी के पास दो कारें हैं.
नामांकन पत्र में दी गई जानकारी के अनुसार ओला और पत्नी राजबाला दोनों करोड़पति हैं. ओला के पास 60 हजार रुपए नकद, 50 ग्राम सोना, बचत खातों में 30.90 लाख, 90 लाख रुपए की अचल संपत्ति व 333 बोर की एक राइफल व 32 बोर की एक रिवॉल्वर है. पत्नी राजबाला के पास 80 हजार रुपए नकद, 800 ग्राम सोने व 500 ग्राम चांदी के जेवरात जिनकी कीमत 30 लाख 36 रुपए है. उनके बचत बैंक खाते में 48 लाख 34 हजार रुपए हैं. 90 लाख रुपए की अचल संपत्ति है. बृजेन्द्र सिंह ओला के पास कुल 2.69 करोड़ रुपए व पत्नी राजबाला के पास 5.78 करोड़ रुपए की संपत्ति है. ओला के खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं है. भाजपा प्रत्याशी शुभकरण चौधरी की संपत्ति 4 महीने में 14 लाख रुपए घट गई है. विधानसभा चुनाव 2023 में चौधरी के पास 4.58 करोड़ रुपए की संपत्ति थी. अब 4.44 करोड़ रुपए हो गई. चौधरी के पास बैंक में 1.46 लाख रुपए जमा हैं, जबकि 60 लाख 55 हजार रुपए बचत योजनाओं में जमा करा रखे हैं. 50 हजार नकद भी है शुभकरण के पास.
कांग्रेस के बृजेंद्र ओला 70 साल के हैं और एलएलबी पास है. वे चौथी बार कांग्रेस के विधायक है. भाजपा के शुभकरण चौधरी की उम्र 63 साल है और वे 12वीं पास है. 2013 में विधायक बनने के बाद शुभकरण लगातार दो चुनाव हार गए. इस बार उनको लोकसभा प्रत्याशी बनाया गया है. उनको नरेंद्र कुमार की जगह टिकट दिया गया है. नरेंद्र 2013 में निर्दलीय विधायक बने और अगली बार 2018 में उन्हें भाजपा ने टिकट दे दिया. इसके बाद लोकसभा चुनाव हुआ तो उन्हें उसमें उतारा गया और वे जीत गए। नरेंद्र कुमार की पुत्रवधू हर्षिनी कुल्हेरी फिलहाल झुंझुनूं की जिला प्रमुख हैं.
आइये नजर डालते हैं झुंझुनूं लोकसभा सीट के पिछले दो चुनाव परिणाम पर
2014 में हुए आम चुनाव के दौरान झुंझुनूं में 1697470 मतदाता दर्ज थे
BJP की संतोष अहलावत ने कुल 488182 वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी
संतोष को उस चुनाव में डाले गए वोटों में से 48.4 प्रतिशत वोट मिले थे
दूसरे स्थान पर कांग्रेस की उम्मीदवार राज बाला ओल को 254347 वोट मिले
लोकसभा सीट के कुल वोटों का 25.22 प्रतिशत हिस्सा राजबाला को मिला
2014 में इस संसदीय सीट पर जीत का अंतर 233835 रहा था
लोकसभा चुनाव 2019 में इस सीट पर कुल 1937882 मतदाता थे
2019 के चुनाव में BJP प्रत्याशी नरेंद्र कुमार को जीत हासिल हुई थी, उन्हें 738163 वोट हासिल हुए थे
नरेंद्र कुमार को इस सीट पर डाले गए वोटों में से 61.32 प्रतिशत वोट मिले थे
इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी श्रवण कुमार दूसरे स्थान पर रहे थे, जिन्हें 435616 वोट मिले थे
श्रवण कुमार को कुल डाले गए वोटों में से 36.19 प्रतिशत वोट मिले थे
इस सीट पर आम चुनाव 2019 में जीत का अंतर 302547 रहा था.
एक दशक से झुंझुनूं में कमल खिला हुआ है, लेकिन इस बारे उसके सामने हाथ भी मजबूत है. इनके सब के बीच झुंझुनूं की सियासत भी क़माल है. यहाँ हर सियासत दाँ का अज़्म इतना बुलंद है कि किसी को भी पराए शोलों का डर नहीं. हर किसी को अपनी ही आतिशे-गुल का ख़ौफ़ है कि कहीं यहीं से चमन न जल जाए! लाल डायरी से देश में मशहूर होने वाले राजेंद्र गुढ़ा की ओर से शुभकरण चौधरी के खिलाफ निकाली जाने वाली यात्रा को पोस्टर भी काफी रोचक बनाया गया है. इस पोस्टर में लिखा है कि 'मोदी तुमसे बैर नहीं, जातिवादी जनप्रतिनिधि शुभकरण चौधरी तेरी खैर नहीं.